नारी डेस्क: गणेश, जिन्हें गणपति या विनायक के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म के सबसे प्रमुख और प्रिय देवताओं में से एक हैं। उन्हें विशेष रूप से नए कार्यों की शुरुआत और बाधाओं को दूर करने वाले देवता के रूप में पूजा जाता है। गणेश की मूर्तियाँ कई विभिन्न मुद्राओं में पाई जाती हैं, और प्रत्येक मुद्रा का अपना विशेष अर्थ और प्रतीकवाद होता है। इस लेख में, हम गणेश की विभिन्न मूर्ति मुद्राओं के महत्व पर चर्चा करेंगे।
बैठने की मुद्राएं
गणेश चतुर्थी के उत्सव में, गणपति बप्पा की मूर्तियों की विविध मुद्राएँ न केवल उनके दिव्य गुणों को दर्शाती हैं बल्कि हमें आंतरिक शांति और स्थिरता की ओर भी मार्गदर्शन करती हैं। हर मुद्रा का विशेष महत्व होता है और यह भगवान गणेश की विभिन्न शक्तियों और गुणों को उजागर करती है। पद्मासन या कमल मुद्रा, गणेश जी की सबसे लोकप्रिय बैठने की मुद्रा है। इसमें भगवान गणेश अपने पैरों को मोड़े हुए और हाथों को घुटनों पर रखे हुए बैठे होते हैं। यह मुद्रा आंतरिक शांति और स्थिरता का प्रतीक है, जो हमें जीवन में संतुलन और ध्यान की ओर प्रेरित करती है। ललितासन में गणेश एक पैर मोड़े हुए और दूसरे पैर को ज़मीन पर रखे होते हैं, जो आराम और विश्राम को दर्शाता है।
एक पैर वाले गणेश जी की बैठी हुई मुद्रा
गणेश चतुर्थी के खास मौके पर, अगर आप अपने घर के लिए गणेश प्रतिमा की तलाश में हैं, तो ललिता मुद्रा की मूर्ति पर ध्यान दें। इस मुद्रा में गणेश एक पैर मोड़े हुए और दूसरे पैर को खुला छोड़कर बैठे होते हैं, जो घर में सुरक्षा और सद्भाव का प्रतीक है। यह मुद्रा दर्शाती है कि गणेश जी आपके घर में शांति और समृद्धि लाते हैं, और सभी परिवार के सदस्य किसी भी गलत काम या खतरनाक स्थिति से सुरक्षित रहते हैं। इस प्रकार की मूर्ति घर में सकारात्मक ऊर्जा भरती है और हर सदस्य की सुरक्षा सुनिश्चित करती है।
नृत्य गणपति मुद्रा और तांडव गणपति मुद्रा
गणेश चतुर्थी के इस खास अवसर पर, भगवान गणेश की नृत्य मुद्राओं का आकर्षण विशेष रूप से ध्यान देने योग्य है। नृत्य गणपति मुद्रा में भगवान गणेश एक पैर मोड़कर और दूसरे पैर को फैलाकर नृत्य करते हुए नजर आते हैं, और उनके हाथ में विभिन्न संगीत वाद्ययंत्र होते हैं। यह मुद्रा रचनात्मकता और खुशी का प्रतीक है। वहीं, तांडव गणपति मुद्रा में गणेश विभिन्न हथियारों के साथ शक्तिशाली और भयंकर ऊर्जा के साथ नृत्य करते हैं, जो ब्रह्मांड की रक्षा का संकेत देती है। ये नृत्य मुद्राएँ न केवल गणेश की शक्ति और सौंदर्य को दर्शाती हैं, बल्कि उनके गहरे प्रतीकात्मक अर्थों के माध्यम से हमें उनकी दिव्यता और मार्गदर्शन की ओर प्रेरित करती हैं।
दोनों पैर मोड़कर बैठे भगवान गणेश
गणेश चतुर्थी के इस खास अवसर पर, गणेश मूर्तियों की विभिन्न मुद्राओं की बात करें, तो 'दोनों पैर मोड़कर बैठे भगवान गणेश' की मुद्रा पर विशेष ध्यान देना चाहिए। इस मुद्रा में भगवान गणेश दोनों पैर मोड़कर ध्यान की गहराई में बैठे होते हैं, जो गहरी आंतरिक शांति और ध्यान की स्थिति को दर्शाती है। जब इस मुद्रा में गणपति की मूर्ति आपके घर में होती है, तो यह न केवल घर में शांति और सुकून सुनिश्चित करती है, बल्कि सभी समस्याओं को समाधान प्रदान करने की अपार शक्ति भी प्रदान करती है। यह मुद्रा घर के हर कोने में एक सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती है, जिससे सभी परिवार के सदस्य मानसिक और आत्मिक रूप से संतुलित महसूस करते हैं।
पशु सवारियां बैठे भगवान गणेश का अर्थ
भगवान गणेश की मूर्तियों में पशु सवारिया उनके विभिन्न गुणों और शक्तियों का प्रतीक होती हैं। चूहे पर सवार गणेश ज्ञान और चतुराई का प्रतीक हैं, सर्प पर सवार होना उनकी गहरी समझ और बाधाओं को पार करने की क्षमता को दर्शाता है, जबकि शेर पर सवारी उनका साहस और शक्ति को उजागर करती है। हंस पर सवारी उनकी पवित्रता और आध्यात्मिक ज्ञान को दर्शाती है। इन पशुओं के साथ गणेश की विभिन्न मुद्राएँ उनके शांति और स्थिरता के गुणों को भी दर्शाती हैं। गणेश की बैठी हुई मुद्रा शांति और ध्यान की स्थिति को प्रकट करती है, जो उनके भक्तों के जीवन में सुकून और समस्याओं का समाधान लाने का संकेत देती है।
इन मुद्राओं के माध्यम से भगवान गणेश का दिव्य स्वरूप और उनके अद्वितीय गुण उजागर होते हैं। गणपति की मूर्तियों को इन मुद्राओं के साथ सजाना न केवल आपके पूजा स्थल को सुंदर बनाता है बल्कि आपके जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और आंतरिक शांति भी लाता है। आपको कौन सी मुद्रा पसंद आई हमे जरूर बताए।