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Sexual Harassment Cases: बच्चों और महिलाओं को समय पर नहीं मिल रहा है इंसाफ

  • Edited By vasudha,
  • Updated: 19 Jun, 2023 11:47 AM
Sexual Harassment Cases: बच्चों और महिलाओं को समय पर नहीं मिल रहा है इंसाफ

आए दिन एसिड अटैक, हत्याएं-बलात्कार और  दहेज उत्पीड़न की घटनाएं सुनने को मिल रही है। कुछ मामलों में को लेकर आवाज उठती है विरोध होता है लेकिन सवाल यह है कि इंसाफ कितनों काे मिलता हे? आपको ये जानकर हैरानी होगी कि भारत में महिलाओं के यौन उत्पीड़न और बच्चों के खिलाफ इसी तरह के अपराधों के दर्ज मामलों में से लगभग दो-तिहाई मामलों में सजा नहीं होती है।


महिला पहलवानों का भी नहीं मिला इंसाफ

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों ने सोचने काे मजबूर कर दिया है। इसमें बताया गया है कि सजा की दर वर्षों से 50 प्रतिशत से नीचे स्थिर है। पिछले कुछ दिनों से महिला पहलवान भी यौन शोषण के खिलाफ आवाज तो उठा रही हैं, लेकिन अभी भी उनके हाथ खाली हैं। दिल्ली पुलिस  ने नाबालिग पहलवान के कथित यौन उत्पीड़न मामले में BJP सांसद बृजभूषण शरण सिंह को क्लीन चिट दे दी है। 

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 बृजभूषण को मिली क्लीन चीट

पुलिस ने 7 पहलवानों के यौन उत्पीड़न के आरोपों में दो अदालतों में बृजभूषण के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की है. एक चार्जशीट 6 बालिग महिला पहलवानों द्वारा दर्ज कराई गई FIR पर रॉउज एवन्यू कोर्ट में दाखिल की गई है। जबकि दूसरी चार्जशीट पटियाला हाउस कोर्ट में नाबालिग पहलवान की FIR पर दाखिल की गई है। FIR में नाबालिग लड़की के पिता ने आरोप लगाया था कि बृजभूषण शरण सिंह ने उनकी बेटी को जबरन अपनी ओर खींचा और उसका यौन उत्पीड़न किया। हालांकि कुछ रोज बाद बाद यौन शोषण का केस दर्ज कराने वाली नाबालिग महिला पहलवान ने अपना बयान बदल दिया था। 


 केसों के निपटारे की दर बहुत कम

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की साल 2020 की रिपोर्ट के अनुसार देश में बाल यौन शोषण के 47,221 मामले दर्ज किए गए थे, इन मामलों में अधिकतर पीड़ित लड़कियां ही थीं। देशभर में 2014 से 2017 तक हर साल पोक्सो एक्ट के तहत लगभग 33000 केस दर्ज हुए।  साल 2014 से 2018 के बीच इन केसों के निपटारे की दर 24 फीसदी रही। 2018 की एक रिपोर्ट बताती है कि दुष्कर्म से जुड़े 12,000 मामले सिर्फ इसलिए लंबित हैं, क्योंकि नमूनों की जांच के लिए पर्याप्त प्रयोगशालाएं नहीं हैं।

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महिला अत्याचार के खिलाफ कड़े कानून


घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम 2005

कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013

भारतीय दंड संहिता में महिलाओं के प्रति होने वाले अपराधों अर्थात हत्या, आत्महत्या हेतु प्रेरण, दहेज मृत्यु, बलात्कार, अपहरण आदि को रोकने का प्रावधान है। उल्लंघन की स्थिति में गिरफ्तारी एवं न्यायिक दंड व्यवस्था का उल्लेख इसमें किया गया है। इसके अतिरित्तफ़ महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के भी अनेक प्रयास किये गए हैं ताकि वे अपने विरुद्ध होने वाले अत्याचार का मुकाबला के सकें। नाबालिग बच्चों के साथ होने वाले अपराधों के मामलों में कार्रवाई करने और उन्हें यौनउत्पीड़न, यौन शोषण और पोर्नोग्राफी जैसे गंभीर अपराधों से सुरक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से लैंगिक उत्पीड़न से बच्चों के संरक्षण का अधिनियम 2012 (Protection of Children from Sexual Offences Act – POCSO) पारित किया गया है। 18 साल से कम उम्र के नाबालिग बच्चों के साथ किया गया किसी भी तरह का यौन व्यवहार इस कानून के अन्तर्गत आता है। पॉक्सो एक्ट लड़के और लड़कियों को समान रूप से सुरक्षा प्रदान करता है। वहीं इस कानून के तहत रजिस्टर मामलों की सुनवाई विशेष अदालत में होती है।

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 5 साल में 30 फीसदी बढ़े पॉक्सो के मामले

बाल यौन शोषण भारत में एक गंभीर और व्यापक मुद्दा बना हुआ है। आपको ये बात जानकर हैरानी होगी कि POCSO मामलों की संख्या 2016 और 2020 के बीच 30% से अधिक बढ़ गई। NCRB के आंकड़ों के अनुसार,  2019 और 2020 में 47,000 से अधिक मामले दर्ज किए गए।  यह POCSO के तहत रिपोर्ट किए गए। POCSO अधिनियम के तहत दर्ज किए गए विभिन्न अपराधों में, धारा 4 और 6 (बलात्कार) के तहत रिपोर्ट किए गए मामलों में 2016 और 2019 के बीच प्रत्येक वर्ष लगभग 54% का गठन किया गया। बलात्कार के मामलों की हिस्सेदारी 2020 में बढ़कर 59.4% हो गई। 

 

POCSO के तहत जल्द हाे रहा है निपटान 

पुलिस द्वारा POCSO के तहत मामलों की चार्जशीट दर 2016 में 94.2% थी, जो 2020 तक बढ़कर 94.7% हो गई। पुलिस के पास POCSO मामलों की लंबित दर 2016 में 31.8% से घटकर 2020 में 28.8% हो गई है। 2020 एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार, महिलाओं के खिलाफ बलात्कार के मामलों में चार्जशीट दर और पोक्सो के तहत क्रमशः 82.2% और 96.3% थी।  इसी तरह, यौन उत्पीड़न के मामलों में, महिलाओं के लिए IPC के तहत चार्जशीट और POCSO के तहत क्रमशः 85.5% और 93.1% थी, जबकि महिलाओं के खिलाफ हमले के IPC मामलों के लिए 28.7% और POCSO के तहत 28.1% लंबित थे। यह इंगित करता है कि महिलाओं के खिलाफ अपराधों की तुलना में POCSO के तहत मामलों का पुलिस निपटान थोड़ा तेज है।
 

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