एक समय ऐसा था जब महिलाओं को घर में ही रखा जाता था। आज महिलाएं इस मुकाम तक पहुंच गई हैं कि उन्हें किसी और की जरुरत नहीं है। ये बात बिहार के एक छोटे से गांव में रहने वाली अनीता गुप्ता ने इस बात को साबित कर दिया है कि महिलाएं कुछ भी कर सकती हैं। आज के इस स्टोरी में हम आपको 45 साल की अनिता गुप्ता जो बिहार के आरा जिले में रहने वाली है, उनकी बहादुरी का किस्सा बताने वाले हैं। चलिए जानते हैं उनसे जुड़ी कुछ बातें...
20 हजार महिलाओं को बनाया आत्मनिर्भर
अनीता गुप्ता ने अब तक 20 हजार से ज्यादा महिलाओं को आत्मनिर्भर बना दिया है। बता दें कि उन्होनों अब तक 300 'स्वंय सहायता समूहों' का गठन कर दिया है और 20 हजार महिलाओं को रोजगार से जोड़ा है। उनकी यह बात सुनकर सभी लोग हैरान हैं। सब जानना चाहते हैं कि एक छोटे से गांव में रहने वाली महिला ने ऐसा कैसे कर दिया, चलिए जानते हैं।
बचपन में ही हो गई थी पिता की मौत
बचपन उनका काफी मुश्किल भरा था। लेकिन अनीता ने हार नहीं मानी और अपनी गरीबी को ही अपनी ताकत बना लिया। अनिता बहुत छोटी थी जब उनके पिता की मौत हो गई। इसके बाद उन्होनें और उनकी मां ने करीब 6 भाई-बहनों का ख्याल रखना था। वो अपने भाई बहनों में सबसे बड़ी थी। ऐसे में उन्हें बहुत ही कम उम्र में जिम्मेदारी मिल गई थी।
दो लड़कियों से शुरु की थी सिलाई-कढ़ाई की क्लास
1993 में अनीता ने सिर्फ 2 लड़कियों के साथ ही सिलाई-कढ़ाई सीखाना शुरु किया था। उनके चाचा और परिवार वाले नहीं चाहते थे कि वो काम करें। चाचा सिर्फ परिवार में सभी लड़कियों को शादी करवा देना चाहते थे। साल 2000 में उन्होनें 'भोजपुर महिला कला केंद्र' का रजिस्ट्रेशन कराया। इसके बाद वो 'इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज और डीसी हस्तशिल्प', भारत सरकार के साथ सूचीबद्ध किया गया था।
20 हजार महिलाओं को दिया रोजगार
वहीं कुछ महीने के बाद ही उन्हें काम मिलना शुरु हो गया। बता दें कि यहां महिलाएं सिलाई, कढ़ाई, ज्वैलरी मेकिंग इत्यादि जैसे काम किया करती थी। 45 साल की अनीता ने बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल की लगभग 20 हजार महिलाओं को सिलाई, कढ़ाई और ज्वैलरी मेकिंग जैसे काम सिखाया है और उन्हें काम पर रखा हैं। उन्हें कई सारे पुरस्कार के साथ नवाजा गया है। अनीता गुप्ता को प्रतिष्ठित नारी शक्ति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।