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कौन थी भारत की आयरन लेडी 'दुर्गा भाभी', जिनका नाम सुनते ही अंग्रेजों के निकल जाते थे पसीने

  • Edited By Anjali Rajput,
  • Updated: 24 Aug, 2021 03:37 PM
कौन थी भारत की आयरन लेडी 'दुर्गा भाभी', जिनका नाम सुनते ही अंग्रेजों के निकल जाते थे पसीने

ब्रिटिश राज में लोग अंग्रेजों के सामने सिर उठाने से भी डरते थे। हालांकि कुछ स्वतंत्रता सैनानी भारत को आजादी दिलाने के लिए उनके खिलाफ एक जंग लड़ रहे थे। उन्हीं में से एक थी दुर्गा भाभी, जिन्हें भारत की "आयरन लेडी" के नाम से भी पुकारा जाता है। दुर्गा भाभी से तो अंग्रेज भी खौफ खाते थे। उनपर देश की आजादी का जुनून इस कद्र सवार थी कि वो अकेले ही भगत सिंह की मदद करने लाहौर चली गई थी। शायद ही कोई जानता हो कि चंद्र शेखर आजाद ने जिस पिस्तौल से खुद को गोली मार ली थी वो दुर्गा भाभी ने ही उन्हें दी थी।

चलिए स्वतंत्रता दिवस के मौके पर हम आपको बताते हैं कि आखिर कौन थी हिन्दुस्तान की आजादी में अपनी अहम भूमिका निभाने वाली दुर्गा भाभी...

देश की आजादी था लक्ष्य

7 अक्टूबर 1907 को उत्तर प्रदेश के शहजादपुर गांव में जन्मी दुर्गा भाभी का असली नाम दुर्गावती देवी थी। वह उन कुछ महिला क्रांतिकारियों में से एक थीं, जिन्होंने सत्तारूढ़ ब्रिटिश राज के खिलाफ सशस्त्र क्रांति में सक्रिय रूप से भाग लिया। वह भगत सिंह के साथ ट्रेन यात्रा में जाने के लिए जानी जाती हैं, जिसमें उन्होंने सॉन्डर्स की हत्या के बाद भेस में भाग लिया था। चूंकि वह हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) के सदस्य भगवती चरण वोहरा की पत्नी थीं, इसलिए एचएसआरए के अन्य सदस्यों ने उन्हें "दुर्गा भाभी" कहकर बुलाते थे और बाद में वह इसी नाम से मशहूर हो गई।

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दुर्गावती देवी का विवाह 11 साल की उम्र में भगवती चरण वोहरा से हुआ था। दुर्गा देवी तब आगे आईं जब सभा ने 16 नवंबर 1926 को लाहौर में करतार सिंह सराभा की शहादत की 11वीं वर्षगांठ मनाने का फैसला किया। देवी ने J.P सॉन्डर्स की हत्या के बाद भगत सिंह व शिवराम राजगुरु को भागने में मदद करने में अहम भूमिका निभाई थी।

क्रांतिकारियों की मदद के लिए हमेशा आगे रहीं

उन्होंने जतिंद्र नाथ दास के अंतिम संस्कार का नेतृत्व किया जो 63 दिनों की जेल भूख हड़ताल में शहीद हो गए थे। 1929 के विधानसभा बम फेंकने की घटना के लिए भगत सिंह के आत्मसमर्पण के बाद दुर्गावती देवी ने लॉर्ड हैली की हत्या करने की कोशिश की लेकिन वो बच निकला। हालांकि उसके कई साथी मर गए। उसे पुलिस ने पकड़ लिया और तीन साल की कैद हुई। मुकदमे के तहत भगत सिंह और उनके साथियों को छुड़ाने के लिए 3,000 जुर्माना देना था, जिसके लिए उन्होंने अपने गहने बेच दिए।

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पिस्तौल चलाने तो बम बनाने में थी माहिर

दुर्गा देवी ना सिर्फ बरछी, ढाल, कृपाण, कटार, पिस्तौल के अलावा बम बनाना भी जानती थीं। उनका काम क्रांतिकारियों के लिए पिस्तौल, बम और बारूद लाना था। इसके अलावा देवी ने अपने पति के साथ, दिल्ली के कुतुब रोड पर 'हिमालयन टॉयलेट्स' (बम बनाने के एजेंडे को छिपाने के लिए एक स्मोकस्क्रीन) नामक बम फैक्ट्री चलाने में एचएसआरए सदस्य विमल प्रसाद जैन की मदद की। इस कारखाने में, उन्होंने पिक्रिक एसिड, नाइट्रोग्लिसरीन और पारा के फुलमिनेट को संभाला।

भगत सिंह को बचा लाईं थीं दुर्गा भाभी

सांडर्स की हत्या के बाद 2 दिन बाद राजगुरु ने दुर्गा भाभी से मदद मांगी और वह तैयार हो गई। भगत सिंह को लाहौर से निकलना था लेकिन हर तरफ पुलिस का पहरा था। ऐसे में दुर्गा भाभी ने भगत सिंह की पत्नी बन उन्हें लाहौर से निकालने में मदद की। उस वक्त उनके पुत्र शचीन्द्र उनकी गोद में थे।

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भारतीय स्वतंत्रता के बाद दुर्गा देवी ने गाजियाबाद में चुपचाप गुमनामी और एक आम नागरिक के रूप में रहना शुरू कर दिया। बाद में उन्होंने लखनऊ में गरीब बच्चों के लिए एक स्कूल खोला। 92 साल की उम्र में 15 अक्टूबर 1999 को दुर्गावती देवी का निधन हो गया।

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