छठ पर्व की शुरुआत हो चुकी है। यह पर्व बीते दिन नहाय खास से शुरु हो चुका है। वहीं इसका समापन 19 नवंबर को छठ पूजा के दिन शाम को अर्घ्य देकर किया जाएगा। छठ पर्व पर कोसी भराई की परंपरा भी चली आ रही है। कोसी भरने का काम मुख्य तौर पर महिलाओं द्वारा किया जाता है। यह परंपरा क्या है और इसका महत्व क्या है आज आपको इसके बारे में बताएंगे आइए जानते हैं....
कोसी भरने का महत्व
मान्यताओं के अनुसार, छठ पर्व में श्रद्धाभाव से की गई पूजा-अर्चना से साधक के जीवन में सुख-समृद्धि बनी रहती है। साथ ही संतान को दीर्घआयु और स्वस्थ जीवन की प्राप्ति भी होती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, किसी मनोकामना की पूर्ति या फिर किसी रोग से मुक्ति पाने के लिए कोसी भरने की परंपरा का संकल्प लिया जाता है। जब व्यक्ति की मनोकामना पूरी हो जाती है तो वह छठ पूजा के दौरान कोसी भरकर मां छठी के प्रति आभार व्यक्त करता है।
कैसे भरी जाती है कोसी?
कोसी बनाने के लिए सबसे पहले छट पूजा की टोकरी को एक स्थान पर रखा जाता है। फिर इसे चारों ओर से चार या सात गन्ने की मदद से एक छत्र बनाया जाता है। गन्ने को खड़ा करने से पहले उसके ऊपरी हिस्से पर एक लाल कपड़े में ठेकुआ और फल भी रखे जाते हैं। इसके बाद अंदर मिट्टी का हाथी रखा जाता है और उसके ऊपर एक घड़ा रखा जाता है। फिर इसे हाथ से सिंदूर लगाया जाता है।
इसके बाद घड़े में फल और ठेकुआ, सुथनी, मूली और अदरक आदि सामग्री रखी जाती है। इस दौरान कुछ लोग कोसी के अंदर 12 या 24 दीपक भी जलाते हैं। इसके बाद महिलाएं पारंपरिक छठ के गीत गाती हैं। अंत में कोसी में धूप आदि रखकर हवन किया जाता है और छठी मां से मनोकामना की पूर्ति के लिए कामना की जाती है।