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महामारी नहीं लाचारी: आर्थिक तंगी के चलते सेरोगेट बनने को मजबूर महिलाएं

  • Edited By Anu Malhotra,
  • Updated: 03 Sep, 2021 05:46 PM
महामारी नहीं लाचारी: आर्थिक तंगी के चलते सेरोगेट बनने को मजबूर महिलाएं

कोरोना महामारी अपने साथ केवल बीमारी और वायरस ही नहीं  ब्लकि कई तरह की समस्याएं भी साथ लेकर आई। कोरोना महामारी की वजह से पुरी दुनिया समेत भारत में भी लाॅकड़ाउन लगाया गया ताकि कोरोना की बढ़ती चेन को तोड़ा जा सके लेकिन इस बीच जहां लोग इस वायरस से बचने में कामयाब रहे वहीं लाॅकडाउन से देश के लाखों लोग बेरोजगार हो गए यहां तक दिहाड़ी दार मज़दूरों को खाने के लाले तक पड़ गए, ऐसे में कई मीडिल क्लास फैमिली पर भी गहरा असर पड़ा। इतना ही नहीं दिल्ली, गुजरात और महाराष्ट्र जैसे बड़े शहरों में कई महिलाओं ने घर पालने के लिए अपनी कोख तक किराए पर दे दी यानि कि कुछ महिलाएं सरोगेसी बनने पर मजबूर हो गई। ऐसे ही एक परिवार ने अपने इस सफर के बारे में जानकारी दी, आईए जानते हैं इसके बारे में-

पिछले साल जब महामारी ने देश में दस्तक दी तो महाराष्ट्र के एक ऑटो-पार्ट्स सप्लाई कारोबारी को अपने इस व्यवसाय को बंद करना पड़ा, ऐसे में उनकी पत्नी शीतल को घर चलाने के लिए कर्जा लिया जिसे बाद में चुकाने के लिए उन्होने अपने सोने के जेवर को गिरवी रख दिया। देश में कोविड -19 मामलों में कमी आने के बाद इस दंपति को उम्मीद दी कि दोबारा से काम टीक हो जाएगा और आय बढ़ेगी लेकिन इस बीच फिर दूसरी लहर हिट हुई।

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इस बार, शीतल के पास बेचने या गिरवी रखने के लिए कुछ भी नहीं बचा था। शीतल के मैकेनिक पति राहुल ने कहा कि परिवार के भरण-पोषण के लिए उनका वेतन मुश्किल से पर्याप्त होता था। इतना ही नहीं वे अपने 8 साल के बेटे की स्कूल की फीस भी नही दे पाते थे। 

फिर उन्होंने बताया कि हमने उन क्लीनिकों के बारे में सुना था जहां कोई महिला सरोगेट बन सकती है। हमने इस पर चर्चा की और शीतल ने सरोगेसी मदर बनने का फैसला किया। उन्होंने सोचा कि जब तक चीजें बेहतर नहीं हो जाती, तब तक यहां से कमाए हुए पैसों से हम घर चला सकेंगे।  राहुल ने बताया कि अभी उनकी 37 वर्षीय पत्नी तीन महीने की गर्भवती  है और हैदराबाद के किरण इनफर्टिलिटी सेंटर में रहती हैं।

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महामारी में सरोगेट बनने के लिए आने वाली महिलाओं में तेजी से वृद्धि दर्ज की 
किरण के कार्यकारी निदेशक और भ्रूण विज्ञानी डॉ. समित शेखर के अनुसार, महामारी के बाद से हैदराबाद के इस सेंटर में  सरोगेट बनने के लिए आने वाली महिलाओं में तेजी से वृद्धि दर्ज की है। इतना ही नहीं उन्होंने बताया कि महामारी के दौरान सरोगेट बनने की इच्छुक महिलाओं की पूछताछ भी10 गुना तक बढ़ गई है। पहले हमें औसतन एक दिन में दो महिलाएं पूछताछ के लिए मिलती थी लेकिन अब हर रोज 10 महिलाएं सरोगेट बनने के लिए आती है। 

शेखर ने कहा कि पिछले साल केंद्र में 100 महिलाओं के एक सर्वेक्षण से पता चला था कि उनमें से अधिकांश अपने पति की आय के नुकसान की भरपाई के लिए सरोगेट्स बनना चाहती हैं।

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कितना कमाती है सरोगेट माताएं ?
इस सुविधा में, सरोगेट माताएं 5 लाख से 6.5 लाख के बीच कमाती हैं और अपनी गर्भावस्था की अवधि के लिए क्लिनिक में रहती हैं ताकि उनके स्वास्थ्य की निगरानी की जा सके और उन्हें पोषण आहार प्रदान किया जा सके। सरोगेसी सेवाओं की मांग करने वाले दंपति के लिए पूरी प्रक्रिया में 25 लाख रुपए तक का खर्च आ सकता है।

शीतल के बाद गीता और छाया ने भी लिया सरोगेट मदर बनने का सहारा
डॉ. समित शेखर ने बताया कि यह केवल एक शीतल की ही कहानी नहीं है हमारे पास ऐसी कई महिलाओं की कहानी हैं जो महामारी के दौरान सरोगेट मदर बनीं इनमें से दिल्ली की गीता भी शामिल है  शीतल की तरह, गीता ने भी कोविड के कारण दिल्ली के पास एक राजमार्ग पर अपने पति के ढाबे के बंद होने के बाद सरोगेसी का सहारा लिया। 

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बता दें कि गुजरात को भारत की सरोगेसी राजधानी कहा जाता है। यहां की 29 वर्षीय छाया दूसरी बार सरोगेट बन गई है। दो बच्चों की मां  छाया ने बताया कि पिछले साल उनके पति की वेटर की नौकरी छूट जाने के बाद उनके परिवार पर संकट आ गया।  जिसके बाद मैंने सरोगेट बनने कै फैसला किया। 

भारत में है व्यावसायिक सरोगेसी पर प्रतिबंध लगाने का प्रस्ताव 
जानकारी के लिए बता दें कि भारत में व्यावसायिक सरोगेसी पर प्रतिबंध लगाने का प्रस्ताव है। सरोगेसी (विनियमन) विधेयक 2019 केवल परोपकारी सरोगेसी की अनुमति देता है जहां मां दंपति की "करीबी रिश्तेदार" होती है। वहीं, आकांक्षा अस्पताल की चिकित्सा निदेशक डॉ नयना पटेल ने कहा कि राज्यसभा में पारित होने की प्रतीक्षा में विधेयक, अनुमानित $ 400 मिलियन उद्योग को सीमित कर देगा। 
 

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