नारी डेस्क: हिंदू धर्म में भगवान गणेश को प्रथम पूज्य माना जाता है, जिन्हें लंबोदर, सिद्धि विनायक, और एकदंत जैसे नामों से भी जाना जाता है। उनका एक दांत टूटने की कथा न केवल धार्मिक है, बल्कि जीवन के महत्वपूर्ण सबक भी सिखाती है। आइए जानते हैं कि गणेश जी का एक दांत किसने और क्यों तोड़ा, जिससे वे "एकदंत" कहलाने लगे।
शिव जी की राम कथा
गणेश पुराण के अनुसार, एक बार माता पार्वती ने भगवान शिव से राम कथा सुनाने का आग्रह किया। शिव जी ने इस आग्रह को स्वीकार कर लिया और दोनों कैलाश पर्वत पर स्थित अंतःपुर में गए। इस दौरान, भगवान शिव ने गणेश जी को दरवाजे पर खड़ा कर दिया और कहा कि जब तक वह न कहें, कोई भी अंदर नहीं आ सकता। गणेश जी अपने पिता की आज्ञा का पालन कर रहे थे, और इसीलिए वे किसी को भी अंदर आने से रोक रहे थे।
परशुराम जी का आगमन
कुछ समय बाद, परशुराम जी कैलाश पर्वत पर पहुंचे और नंदी से भगवान शिव के बारे में जानकारी ली। नंदी ने उन्हें बताया कि शिव जी का स्थान नहीं मालूम। इस उत्तर को सुनकर परशुराम जी क्रोधित हो गए और शिव जी को खोजने लगे। जब उन्हें गणेश जी दिखे, तो वे बिना अनुमति महल में प्रवेश करने लगे। लेकिन गणेश जी ने उन्हें रोक दिया, जिससे परशुराम जी और भी क्रोधित हो गए।
युद्ध की शुरुआत
गणेश जी ने कहा कि वे अपने पिता की आज्ञा का पालन कर रहे हैं। परशुराम जी ने गणेश जी को बालक कहकर उन्हें अपमानित किया और कहा कि वे अपने आराध्य से मिलने आए हैं। इस पर दोनों के बीच युद्ध शुरू हो गया। दोनों एक-दूसरे पर बाण चलाने लगे, और युद्ध धीरे-धीरे भयंकर हो गया।
एकदंत बनने की कथा
जब परशुराम जी ने देखा कि वे गणेश जी को नहीं हरा सकते, तो उन्होंने अपने परशु से उन पर प्रहार किया। यह प्रहार गणेश जी के एक दांत पर लगा, जिससे वह दांत कटकर गिर गया। इसी घटना के बाद गणेश जी को "एकदंत" कहा जाने लगा।
युद्ध का अंत और क्षमा
जब भगवान शिव अंतःपुर से बाहर आए, तो उन्होंने युद्ध को समाप्त करवाया। परशुराम जी ने माता पार्वती और भगवान शिव के साथ-साथ गणेश जी से भी क्षमा मांगी। भगवान शिव के कहने पर, गणेश जी ने परशुराम जी को क्षमा कर दिया, और इस प्रकार यह कथा समाप्त हुई।
गणेश जी की यह कथा हमें यह सिखाती है कि धर्म और आस्था के प्रति निष्ठा रखनी चाहिए। "एकदंत" बनने की घटना न केवल भगवान गणेश के लिए, बल्कि सभी भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश देती है कि कठिनाइयों में धैर्य और क्षमा का गुण अपनाना आवश्यक है। गणेश जी की यह कथा हमें यह भी याद दिलाती है कि सच्चाई और भक्तिभाव हमेशा विजय प्राप्त करते हैं।