पेड मेंस्ट्रुअल लीव्स को लेकर दुनिया भर में बदलाव देखने को मिल रहा है। स्पेन, यूनाइटेड किंगडम, चीन, वेल्स, जापान, ताइवान , इंडोनेशिया, दक्षिण कोरिया जैसे देशों में तो मेंस्ट्रुअल लीव्स को लीगल कर दिया गया है। भारत में भी करेल और बिहार ही दो ऐसा राज्य है जहां स्टूडेंट्स और वर्किंग वुमन को मेंस्ट्रुअल लीव्स देने की बात पर मोहर लगा दी गई है। पिछले कुछ समय से इसे पूरे देश में लागू करने की बात चल कही है और इसे लेकर 24 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होनी थी। जो याचिका दर्ज की गई थी, उसमें कामकाजी महिलाओं और छात्राओं को पीरियड्स के दौरान छुट्टी देने की बात कही गई थी। इस बारे में कोर्ट को कल अपना फैसला देना था, लेकिन उन्होनें फैसला देने से इनकार कर दिया।
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को सौंपा जिम्मा
मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की डेस्क ने ये कहा कि 'इस पर निर्णय लेने के लिए महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को प्रतिनिधित्व करना चाहिए'। इसी के साथ, कहा गया कि 'कोर्ट में इसका फैसला लेना सही नहीं है। अब अगर यातिकाकर्ता चाहें तो वो महिला एवं बाल विकास मंत्रालय में इसकी पैरवी कर सकते हैं और वहीं से किसी नई पॉलिसी की उम्मीद कर सकते हैं'।
मेंस्ट्रुअल लीव का इशू हो रहा है वाइड
पिछले हफ्ते स्पेन में पीरियड लीव्स को लीगल किया गया है और उस देश में हर महीने तीन से पांच दिनों की लीव्स देने की बात कही गई है। इसे लेकर पूरी दुनिया में उनकी तारीफ हो रही है।
आखिर क्यों किया फैसला देने से इंकार?
पीरियड पेन हार्ट अटैक की तरह होता है और इसके बारे में पहले भी कई सारी रिपोर्ट्स आ चुकी हैं और महिलाओं को इस तरह के दर्द में काम करवाना गलत है ये बात हर कोई समझ सकता है, लेकिन शायद कोर्ट नहीं इसलिए उन्होनें महिलाओं के करियर को अहम बताते हुए फैसला देने से इंकार किया है। दरअसल, कोर्ट का कहना है कि अगर हर महीने दो दिन की पेड लीव्स महिलाओं को मिलने लगेगी तो ऐसा हो सकता है कि कई कंपनियां महिला कर्मचारी को नौकरी देने से कतराएं। याचिका में ये कहा गया था कि पहले ही कई देशों में पीरियड लीव्स को लीगल माना गया है और ऐसे में हम महिलाओं को उनका हक दे सकते हैं।
क्या कहता है संविधान?
याचिका में कहा गया था कि 1961 का अधिनियम महिलाओं के सामने आने वाली लगभग सभी समस्याओं के लिए प्रावधान देता है, जिसे इसके कई प्रावधानों से समझा जा सकता है, जिसने नियोक्ताओं के लिए प्रेग्नेंसी के दौरान कुछ दिनों के लिए महिला कर्मचारियों को वेतन के साथ अवकाश देना जरुरी कर दिया है। इसी तरह मिसकैरेज, ट्यूबेक्टॉमी ऑपरेशन के लिए या किसी भी मेडिकल कॉम्पलिकेशन में छुट्टी के लिए कहा गया है।
क्या वाकई में पीरियड्स लीव्स देने से रुक सकता है महिलाओं का एम्लॉयमेंट
वैसे अगर कंपनियों के हिसाब से देखा जाए तो शायद कोई भी खुले तौर पर इसे स्वीकार नहीं करेगा। अभी भी महिलाओं को मैटरनिटी लीव्स को लेकर वर्कप्लेस में भेदभाव का सामना करना पड़ रहा था। जब मैटरनिटी लीव्स को 4 महीने से बढ़ाकर 6 महीने किया गया था तब ऐसी कई रिपोर्ट्स सामने आई थीं जिनमें ये कहा गया था कि महिलाओं को एम्प्लॉयमेंट में दिक्कत हो रही है। जिनकी शादी होने वाली है उन्हें कंपनियां अपने यहां काम पर रखने से कतराती हैं ताकि उन्हें 6 महीने की पेड लीव्स ना देनी पड़े।