कहते हैं कामयाबी का कोई जेंडर नहीं होता लेकिन हर मुल्क, मजहब और वर्ग में महिलाओं को हमेशा से ही कमजोर समझा जाता है। यही कारण है कि आज जब कोई महिला पुरुषों वाला काम करता है तो उसे हैरानी और निंदा भरी नजरों से देखा जाता है। हालांकि बावजूद ऐसी बहुत-सी औरतें हैं, जिन्होंने अपने काम से समाज का नजरिया बदला। ऐसी ही एक कहानी है संध्या मारावी की...
65 पुरुष के बीच अकेली महिला कुली
हम हमेशा से पुरुषों को ही कुली का काम करते देखते आए हैं लेकिन मध्य प्रदेश के कटनी रेलवे स्टेशन पर कुली बन काम कर रही संध्या समाज की इन सभी धारणाओं को तोड़ रही है। संध्या 65 पुरुष के बीच अकेली महिला कुली है, जो उनकी हिम्मत और जज्बे को दिखाता है।
पति की मौत के बाद उठाया परिवार का जिम्मा
खबरों के मुताबिक, 2015 तक संध्या की जिंदगी में लगभग सबकुछ ठीक चल रहा था और वह अपने पति व बच्चों के साथ हंसी-खुशी दिन काट रही थी। लेकिन एक दिन अचानक उनके पति बीमार पड़ गए और फिर अचानक उनकी मौत हो गई। इनके पति पेशे से मजदूर थे। उनकी मौत के बाद 3 बच्चों की परवरिश और घर खर्च चलाने के लिए संध्या को नौकरी की जरूरत थी। इसके बाद उन्होंने कुछ लोगों ने संपर्क किया, जहां उन्हें कुली की नौकरी के बारे में पता चला।
बूढ़ी सास की भी कर रही सेवा
कटनी रेलवे स्टेशन पर लाल कुर्ते में भारी-भरकम सामान उठाती संध्या का बैच नंबर 36 है। मुकद्दर के आगे घुटने टेकने की बजाए संध्या ने कुली की नौकरी करके ना सिर्फ अपने बच्चों को पढ़ाया-लिखाया बल्कि अपनी बूढ़ी सास की भी सारी जिम्मेदारी उठाई।
बच्चों का भविष्य बनाना चाहती हैं बेहतर
नौकरी के लिए संध्या रोज कुंडम से कटनी स्टेशन तक 45 कि.मी. की यात्रा करती हैं, ताकि वह अपने बच्चों का भविष्य बेहतर बना सके। उनकी इस हिम्मत व जज्बे को देखते हुए फेमस प्रमुख फार्मास्युटिकल कंपनी, मैनकाइंड फार्मा ने उन्हें ईमान देकर सम्मानित भी किया था।
वाकई, संध्या की कहानी हर उस महिला के लिए प्रेरणा हैं, जो किसी ना किसी वजह से हिम्मत हार जाती है और मुसीबतों के आगे घुटने टेक लेती हैं।