दुनियाभर में विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस 2 अप्रैल को मनाया जाता है। 'वर्ल्ड ऑटिज्म अवेयरनेस डे' का मकसद लोगों को इस बीमारी के बारे में जागरूक करना है। आमतौर पर लोग ऑटिज्म के शिकार बच्चों को मंदबुद्धि कहते हैं, जबकि यह एक दिमागी विकार है। ऑटिज्म एक एेसी बीमारी है, जिसके लक्षण बचपन में ही दिखाई देने लगते है लेकिन पेरेट्स उन्हें अनदेखा कर देते है जिसके कारण उन्हें बाद में मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। ऐसे में आज हम ऑटिज्म डे के अवसर पर आपको इस बीमारी के बारे में पूरी जानकारी देंगे, जिससे आप बच्चों को इस बीमारी से बचा सकते हैं।
क्या है ऑटिज्म?
ऑटिज्म स्पेक्ट्रम एक ऐसा न्यूरोलॉजिकल डिस्ऑर्डर है, जिसमें दिमाग के अलग-अलग हिस्से एक साथ काम नहीं कर पाते हैं। इसके कारण बच्चों को परिवार के साथ घुलन-मिलने और समझने में परेशानी होती है। हर बच्चें में इसके लक्षण भी अलग-अलग होते हैं। कुछ बच्चों को सीखने-समझने में परेशनी होती है, वहीं कुछ बच्चे बात तो समझ जाते हैं लेकिन उस पर प्रतिक्रिया नहीं दे पाते और अपनी बात नहीं रख पाते हैं। इस डिस्ऑर्डर को ठीक तो नहीं किया जा सकता लेकिन थोड़ी सावधानी व थोड़े से प्यार-दुलार की बदौलत इसे काफी हद तक कंट्रोल किया जा सकता है।
क्यों होती है यह बीमारी?
इस बीमारी का कोई एक कारण नहीं है। कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि अगर प्रेग्नेंसी के समय मां को थाइरॉइड हो बच्चा ऑटिस्टिक हो सकता है। वहीं कुछ वैज्ञानिक बिगड़ते पर्यावरण और गलत लाइफस्टाइल को इस बीमारी का कारण मानते हैं।
किन बच्चों को होता है ऑटिज्म?
-लड़कियों की तुलना में ऑटिज्म का खतरा लड़कों को ज्यादा होता है।
-26 हफ्ते से पहले पैदा होने वाले बच्चों को भी ऑटिज्म होने का खतरा रहता है।
-अगर परिवार के एक बच्चे को ऑटिज्म है तो दूसरा बच्चा भी ऑटिस्टिक हो सकता है।
-अगर प्रेग्नेंसी के दौरान मां को थायराइड हो तो भी बच्चे को यह बीमारी हो सकती है।
ऑटिज्म के लक्षण
ऑटिज्म के शुरुआती लक्षण 1 से 3 साल के बच्चों में नजर आ जाते हैं लेकिन अगर जन्म के 9 महीने बाद बच्चा ना तो मुस्कुराता है और न ही कोई प्रतिक्रिया देता है तो डॉक्टर से सलाह लें।
बच्चे मां या आस-पास मौजूद लोगों का चेहरा देखकर प्रतिक्रिया देते हैं पर ऑटिज्म पीड़ित बच्चे ऐसा नहीं कर पाते।
ऑटिज्म से पीड़ित बच्चे आवाज सुनने के बावजूद रिएक्शन नहीं देते।
इस बीमारी से पीड़ित बच्चों को बोलने में भी दिक्कत होती है।
ऐसे बच्चे अपनी भावनाओं को ठीक से जाहिर नहीं कर पाते।
लगातार हिलते रहना।
अपने आप में खोए रहना
एक ही चीज को लगातार करते रहना।
इलाज
वैसे तो ऑटिज्म का कोई इलाज नहीं है लेकिन स्पीच थेरेपी व मोटर स्किल जैसी तकनीक अपनाकर इसे कंट्रोल किया जा सकता है। इसके अलावा ऐसे बच्चों पर गुस्सा करने की बजाए उन्हें हर बात प्यार से समझानी चाहिए।
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