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23% नई माएं 'पोस्टपार्टम डिप्रेशन' का शिकार, जानें क्या है यह बीमारी

  • Edited By Anjali Rajput,
  • Updated: 29 Mar, 2019 11:32 AM
23% नई माएं 'पोस्टपार्टम डिप्रेशन' का शिकार, जानें क्या है यह बीमारी

जब घर में नन्हीं किलकारियां गूंजती हैं तो यकीनन पूरा घर खुशी से सराबोर हो जाता है, लेकिन उस नन्हीं सी जान को दुनिया में लाने के लिए एक महिला को कई तरह की कठिनाईयों से दो-चार होना पड़ता है। मां बनना यकीनन महिला का दूसरा जन्म होता है। डिलीवरी के बाद एक महिला के भीतर सिर्फ शारीरिक परिवर्तन नहीं होते, बल्कि हार्मोनल बदलाव होने के कारण उसका असर महिला के दिमाग पर भी पड़ता है। यही कारण है कि डिलीवरी के बाद कई बार महिला डिप्रेशन से गुजरती है। डिलीवरी के बाद का डिप्रेशन दो तरह का होता है- पहला डिप्रेशन बेबी ब्लूज होता है और दूसरा डिप्रेशन पोस्टपार्टम डिप्रेशन होता है।

 

क्या है अंतर?

बेबी ब्लूज और पोस्टपार्टम डिप्रेशन में थोड़ा अंतर होता है। वैसे बेबी ब्लूज को अगर पोस्टपार्टम डिप्रेशन की शुरुआती अवस्था कहा जाए तो गलत नहीं होगा। बेबी ब्लूज में महिला को मूड स्विंग्स होते हैं व कभी-कभी रोने का मन करता है। हालांकि बेबी ब्लूज एक दो दिन या एक दो सप्ताह में खुद ब खुद ठीक हो जाता है। वहीं जब यही लक्षण लंबे समय तक हों और गंभीर रूप ले लें तो उसे पोस्टपार्टम डिप्रेशन कहा जाता है। यह कई हफ्तों से लेकर एक वर्ष तक रह सकता है। भारत में करीबन 15.3 प्रतिशत से 23 प्रतिशत के बीच नई मांओं को मानसिक विकार जैसे पोस्टपार्टम डिप्रेशन का सामना करना पड़ता है।

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पहचानें लक्षण 

पहले से यह तय कर पाना बेहद मुश्किल होता है कि किस महिला को डिलीवरी के बाद डिप्रेशन का सामना करना पड़ेगा, लेकिन इसके लक्षणों के आधार पर इसकी पहचान की जा सकती है-

भूख में कमी
अनिद्रा
चिड़चिड़ापन व गुस्सा
बहुत अधिक थकान का अहसास
संभोग में रूचि का कम होना
मन में निराशा, अपराध या अपर्याप्तता का भाव
गंभीर मूड स्विंग्स
बच्चे के प्रति अरूचि व उसकी ओर ध्यान न देना
परिवार व दोस्तों से दूरी बनाना
खुद को या बच्चे को किसी भी तरह के नुकसान पहुंचाने के विचार

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जानें कारण

बच्चे के जन्म के बाद एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन हार्मोन में गिरावट
थाॅयराइड ग्रंथि द्वारा निर्मित हार्मोन का तेजी से गिरना
रक्तचाप, प्रतिरक्षा प्रणाली व मेटाबाॅलिज्म में परिवर्तन 
नींद में कमी
नवजात की देखभाल को लेकर चिंता 
भावनात्मक अस्थिरता
परिवार या जीवनसाथी का सपोर्ट न मिलना
अकेलेपन का अहसास
करियर को लेकर चिंता
डिप्रेशन की समस्या

 

ये भी है गंभीर कारण

भारत में अभी भी कई घरों में लोग लड़का होने की आस करते हैं और लड़की के जन्म के बाद महिला को मानसिक तौर पर परेशान किया जाता है, जिससे वह डिप्रेशन का शिकार हो जाती है। एक शोध के अनुसार, शिशु का लिंग, बेटों के लिए वरीयता, सामाजिक व भावनात्मक सहयोग की कमी, सामाजिक व आर्थिक कठिनाइयां और हिंसा के अनुभव पोस्टपार्टम डिप्रेशन में महत्वपूर्ण कारक होते हैं।

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हो सकता है घातक

अगर इसका इलाज न किया जाए तो सामान्य पोस्टपार्टम डिप्रेशन क्रोनिक डिप्रेसिव डिसऑर्डर में बदल जाता है। कभी-कभी तो महिला जीवनभर के लिए डिप्रेशन का शिकार हो जाती है। वहीं, जब पोस्टपार्टम डिप्रेशन बढ़ जाता है तो इससे महिला स्वयं को या अपने नवजात शिशु को बेहद गंभीर रूप से चोट पहुंचा सकती है। इतना ही नहीं, इसके कारण महिला को नींद लेने व खाने में भी कठिनाई होती है, जिसके कारण धीरे-धीरे उसका स्वास्थ्य बुरी तरह प्रभावित होने लगता है। इसके अतिरिक्त जब महिला पोस्टपार्टम डिप्रेशन से गुजरती है तो वह बच्चे का भी अच्छे से ख्याल नहीं रख पाती जिससे बच्चे की हेल्थ पर भी बुरा असर पड़ता है।


ऐसे करें इलाज

अगर महिला पोस्टपार्टम डिप्रेशन की प्रारंभिक अवस्था में है तो दवाईयों के बिना भी उसका इलाज किया जा सकता है। वहीं अगर स्थिति गंभीर होती है तो उसके लिए दवाईयों का सहारा लेना जरूरी हो जाता है। इलाज की शुरुआत में महिला को यह समझाना होता है कि वह बीमार है और उसे इलाज की जरूरत है। कई बार महिला के पति व घर के दूसरे सदस्यों को भी स्थिति की पूरी जानकारी देनी पड़ती है क्योंकि ज्यादातर भारतीय घरों में लोग इस प्रॉब्लम को गंभीरता से नहीं लेते। 

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