भारत में एक तरफ महिलाओं को सैनिटरी नैपकिन इस्तेमाल करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है वहीं दूसरी तरफ यहां के स्टूडेंट्स की ओर से महिलाओं की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए सुरक्षित सैनिटरी नैपकिन पेपर बनाए जा रहे है। भारत में अधिकतर महिलाएं यूज एंड थ्रो नैपकिन पेपर का इस्तेमाल करती है, जो कि उनकी सेहत के साथ पर्यावरण के लिए भी नुकसानदायक होता है।
पर्यावरण व महिलाओं की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए आईआईटी दिल्ली के स्टार्टअप में हैरी सहरावत और अर्चित अग्रवाल स्टूडेंट्स ने मिलकर केले के फाइबर से सैनिटरी नैपकिन बनाया हैं। यह रि- यूजेबल नैपकिन दो साल तक चलेगा टीम द्वारी इसके पेटेंट के लिए भी फाइल कर दिया गया हैं।
पर्यावरण के लिए है फायदेमंद
ज्यादातर सैनिटरी नैपकिन सिंथेटिक मेटेरियल व प्लास्टिक से बनते है जिस कारण उन्हें नष्ट होने में 50 से 60 साल लग जाते है। हर साल काफी ज्यादा मात्रा में मेस्टुअल वेस्ट को लैंडफिल में डंप किया जाता हैं या उसे खुले में फेंक दिया जाता हैं। पानी में बहाने से पानी गंदा होता है वहीं अगर इन्हें खुले में जला दिया जाता है तो हवा प्रदूषित होती हैं। जिससे पर्यावरण को काफी नुक्सान पहुंचता हैं। वहीं यह नैपकिन पेपर पर्यावरण के लिए पूरी तरह से सुरक्षित हैं।
इस तरह होगा दोबारा प्रयोग
इस सैनिटरी नैपकिन की कीमत बाकी नैपकिन पेपर के मुकाबले काफी सस्ती हैं। एक बार में नैपकिन लेकर महिलाएं इसे 120 बार प्रयोग कर सकती हैं। जिसकी कीमत उन्हें सिर्फ 199 रुपए पड़ेगी। इतना ही नही प्रयोग करने के बाद इसे डिटर्जेंट के साथ ठंडे पानी से धो कर इसे कई बार इस्तेमाल किया जा सकता हैं। इसमें विभिन्न कपड़ों की चार परतें बनी हुई हैं।
महिलाओं के बनाया स्टैंड एंड पी डिवाइस
इससे पहले छात्राओं ने महिलाओं की सुविधा को ध्यान में रखते हुए ‘stand and pee' डिवाइस तैयार किया था। जिसकी मदद से महिलाएं गंदे पब्लिक वाशरुम में खड़े होकर टॉयलट कर सकती हैं। वन टाइम यूज होने वाले इस डिवाइस की कीमत 10 रुपए हैं। इस्तेमाल करने के बाद इसे कचरे में फेंक सकते है, यह पूरी तरह से बायोडिग्रेडेबल मेटेरियल से बना हुआ हैं। जिस कारण काचरा नही बढ़ता हैं। इतनी ही नही महिलाएं इसे पीरियड के दौरान भी इस्तेमाल कर सकती हैं।
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