दुनिया से लड़कर खुद की अलग पहचान बनाना कोई आसान काम नहीं है। अगर बात ट्रांसजेडर की हो तो उसे अपने घर वालों की भी लड़ाई करनी पड़ती है। सरकारी औहदे को हासिल करना इस तरह के लोगों के लिए बहुत मुश्किल हो जाता है। हम बात कर रहे हैं स्वाति बरुआ की, जो पैदा तो लड़का हुई थी लेकिन उसकी इच्छाएं लड़की की तरह जिंदगी जीने की थी। इसी बात को लेकर उसने एक दिन औरत बनने का फैसला लिया।
साल 2012 में वह सेंस चेंज करवाने के लिए अप्रेशन करवाना चाहता था। परिवार के लिए उसके इस फैसले को मानना मुश्किल था। वह नहीं चाहते थे कि बेटी अपना जेंडर चेंज करवाए। उनकी सख्ती के लिए स्वाति को कोर्ट का सहारा लेना पड़ा। मुंबई हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने के बाद उसने अपना नाम स्वाति रख लिया।
अब फिर स्वाति सुर्खियों में है, इस बार इसकी वजह बहुत खास है। वह अब असम की पहली ट्रांसजेंडर जज बनी है। वहीं, उनसे पहले बंगाल की जोयिता मंडल और महाराष्ट्र से विद्या काम्बले भी ट्रांसजेंडर जज रह चुकी है। इनके बाद स्वाति तीसरी जज हैं। स्वाति की नियुक्ति कामरूप 'डिस्ट्रिक्ट लीगल सर्विस ऑथोरिटी' ने की है।
स्वाति गुवाहाटी की रहने वाली हैं और शहर के नेशनल लोक अदालत में आए केस देखेंगी। वहीं, साल 2014 को सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसजेंडर्स को तीसरे जेंडर के तौर पर स्वीकारा था। जिसके बाद ट्रांसजेंडर को भी सरकारी ओहदों में जगह मिलनी शुरु हो गई थी। इसके बाद भी राज्य सभा ने भी ‘राईट ऑफ ट्रांसजेंडर बिल’ पास कर दिया था। लोगों का नजरिया अब इन लोगों की तरफ भी बदलना शुरू हो गया है।
दुनिया से लड़कर खुद की अलग पहचान बनाना कोई आसान काम नहीं है। अगर बात ट्रांसजेडर की हो तो उसे अपने घर वालों की भी लड़ाई करनी पड़ती है। सरकारी औहदे को हासिल करना इस तरह के लोगों के लिए बहुत मुश्किल हो जाता है। हम बात कर रहे हैं स्वाति बरुआ