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प्रैग्नेंसी में ये 3 गलत आदतें बढ़ाती हैं सिजोफ्रेनिया का खतरा, ऐसे करें बचाव

  • Edited By Anjali Rajput,
  • Updated: 26 Jun, 2019 04:15 PM
प्रैग्नेंसी में ये 3 गलत आदतें बढ़ाती हैं सिजोफ्रेनिया का खतरा, ऐसे करें बचाव

प्रैग्नेंसी के दौरान महिलाओं को तमाम शारीरिक व मानसिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। वहीं इस दौरान महिलाओं के शरीर में कई हार्मोनल बदलाव भी आते हैं, जिसके कारण सिजोफ्रेनिया का खतरा भी बढ़ जाता है। महिलाओं को इसके लक्षण जल्दी समझ नहीं आते, जिसके कारण यह बीमारी खतरनाक रूप ले लेती हैं। इसका एक कारण जहां गर्भावस्था में खाई जाने वाली दवाइयों का साइड-इफैक्ट हैं, वहीं आपकी कुछ गलत आदतें भी इसका खतरा बढ़ाती हैं। चलिए आज हम आपको ऐसी कुछ आदतें बताते हैं, जो प्रैग्नेंसी में आपके लिए खतरनाक हो सकती हैं।

 

क्‍या है सिजोफ्रेनिया?

सिजोफ्रेनिया एक ऐसा गंभीर मानसिक विकार (साइकेटिक डिसऑर्डर) है, जिसमें व्यक्ति काल्पनिक और वास्तविक वस्तुओं में फर्क नहीं कर पाता, जिसके कारण वह अपनी काल्पनिक दुनिया में रहने लगता है। इससे सोचने-समझने की क्षमता पर भी असर पड़ता है, जिससे पेशंट जिंदगी की जिम्मेदारियों को संभालने में असमर्थ रहता है।

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प्रैग्नेंसी में खतरनाक है सिजोफ्रेनिया

प्रैग्नेंसी में सिजोफ्रेनिया होना बेहद खतरनाक है क्योंकि इसके चलते महिला अपनी सेहत की देखभाल तक करना भूल जाती हैं। साथ ही सिजोफ्रेनिया का सीधा असर बच्‍चे की सेहत पर भी पड़ता है। वहीं अगर महिला प्रसव के एक महीने पहले इस बीमारी से पीड़ित है तो इसके कुछ संभावित खतरे हो सकते हैं।

सिजोफ्रेनिया के कारण
बहुत ज्यादा तनाव लेना

गर्भावस्था के दौरान कई बार महिलाएं काफी तनाव से गुजरती हैं। मगर बहुत ज्यादा तनाव लेने से भी एक तरह का पागलपन है, जिसके चलते आप सिजोफ्रेनिया की चपेट में भी आ सकते हैं। ऐसे में गर्भवती महिला को हमेशा खुश रहना चाहिए। साथ ही दोस्तों, रिश्तेदारों और पति के साथ बातचीत करती रहें।

खतरनाक है धूम्रपान की लत

धूम्रपान से ना सिर्फ भूर्ण के विकास पर असर पड़ता है बल्कि इससे इस मानसिक विकार का खतरा भी बढ़ जाता है। कई बार इसके चलते जन्म के बाद बच्चे का वजन भी कम हो जाता है। ऐसे में बेहतर होगा कि आप इस दौरान स्मोकिंग ना करें।

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बिना सलाह दवाओं लेना हानिकारक

कई बार प्रैग्नेंसी में छोटी-मोटी प्रॉब्लम से बचने के लिए बिना डॉक्टरी सलाह लिए दवा ले लेती हैं लेकिन ऐसा करना ना सिर्फ आपके बल्कि बच्चे के लिए भी हानिकारक है। ऐसे में बेहतर होगा कि आप डॉक्टर से पूछे बिना कोई दवाई ना लें।

जेनेटिक या वायरल इंफैक्शन

अगर परिवार में किसी को सिजोफ्रेनिया हो तो इस बीमारी से ग्रस्त होने का खतरा ज्यादा रहता है। वहीं वायरल इंफैक्शन के कारण भी महिलाओं में यह बीमारी विकसित हो सकती है।

अधिक उम्र में बच्चे को जन्म देना

अगर प्रैग्नेंसी के समय माता-पिता की उम्र बहुत ज्यादा है तो होने वाला बच्चा सिजोफ्रेनिया की चपेट में आ सकता है इसलिए प्रैग्नेंसी के समय सभी जरूरी टेस्ट करवाना ना भूलें।

कैसे करें बीमारी की पहचान?

इस बीमारी में अलग-अलग शख्स के संकेत भी अलग-अलग होते हैं। कुछ लोगों में इसके लक्षण धीरे-धीरे दिखाई देते हैं तो किसी में जल्दी नजर आ जाते हैं।

-असामान्य व्यवहार
-पीड़ित व्यक्ति में उदासीनता
-आम लोगों की तरह सुख-दुख महसूस ना कर पाना
-किसी से बातचीत ना करना
-भूख-प्यास का ख्याल नहीं रख पाते
-लिखने और बोलने में परेशानी
-सोने में दिक्कतें आना
-हल्लुसिनेशन होना
-किसी चीज का डर

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सिजोफ्रेनिया से बचाव

अगर शुरूआती समय पर ही इस बीमारी का इलाज कर दिया जाए तो समस्या पकड़ में आ जाती है। इसका इलाज मनोवैज्ञानिक थेरेपी द्वारा किया जाता है, जिसमें महिला के साथ उनके परिवार को भी काउंसिलिंग दी जाती है। इसमें उन्हें रोगी की देखभाल के तरीके समझाए जाते हैं।

परिवार का सहयोग जरूरी

गर्भावस्था के दौरान अगर महिला में सिजोफ्रेनिया के लक्षण दिखाई दें तो उसका खास-ख्याल रखें क्योंकि इससे ही आप इस स्थिति से बाहर निकल सकती हैं। मरीज के परिवार को चाहिए कि वह महिला का पूरा साथ दें और उसकी भावनाओं को समझें। साथ ही ज्यादा से ज्यादा समय उनके साथ बिताएं। उन्हें हमेशा उसे व्यस्त रखें और तनाव व परेशानियों से भी दूर रखने की कोशिश करें। मजबूत इच्छा शक्ति और अपनों के प्यार की मदद से वो इससे उभर सकती हैं।

क्‍या खाएं और क्‍या न खाएं?

अगर आपके परिवार का कोई सदस्य इस बीमारी से पीड़ित है तो इस बात का ख्याल रखें कि वह किसी भी तरह के नशीले पदार्थ का सेवन ना करें। साथ ही उन्हें ओमेगा-3 फैटी एसिड से भरपूर फूड्स जैसे सोयाबीन, पालक, स्ट्राॅबेरी, खीरा आदि आदि खाने के लिए दें। इसके अलावा डाइट में विटामिन्स को शामिल करें और रोगी को रोजाना व्यायाम करने के लिए भी कहें।

योग का लें सहारा

मानसिक विकार को दूर करने का सबसे अच्छा तरीका है योग इसलिए रोजाना खुली हवा में कम से कम 20-25 मिनट योग जरूर करें। इसके लिए आप प्रणायाम, कपालभाति, सूर्य नमस्कार जैसे आसनों का सहारा ले सकती हैं।

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