जिस जगह पर महिलाएं मिलकर काम करती है वह न केवल उस जगह को खास बनाती बल्कि उसका नाम भी रोशन कर देती है। बस उन्हें जरुरत होती है साथ व उन लोगों की जो उन्हें हिम्मत दें काम करने की स्वतंत्रता दें। तमिलनाडु राज्य के कोयंबटूर के कनियुर गांव को भी वहां की महिलाओं ने खास बना दिया है। इस काम में उनका साथ एक कंपनी ने दिया हैं। जिसे पूरी तरह से महिलाओं के हवाले कर दिया गया हैं। इसमें काम करके महिलाएं इस कंपनी को ही नही खुद को भी संवार रही हैं।
' महिला मिशन ' के तहत महिलाओं को दिया काम
किर्लोस्कर ब्रदर्स लिमिटेड कंपनी जिसकी फैक्ट्री में छोटे पंप बनाए जाते है। यहां की खास बात यह है कि इसमें होने वाले हर चरण महिलाओं के निरक्षण में किया जाता है। महिला मिशन 20 के तहत इसे 2010 में स्थापित किया गया था चूकिं छोटें पंपों का इस्तेमाल घरेलू महिलाएं ज्यादा करती है, इसलिए इस काम में सभी महिलाओं को ही रखा गया। इस समय 200 महिलाओं की फैक्टरी ने पंप बनाने में लगने वाली समय को 17 सैकेंड तक कम किया जो लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज है। इस रिकॉर्ड के कारण कंपनी ने अपनी नीतियों में बदलाव किया व ज्यादा से ज्यादा महिलाओं को मौका दिया हैं।
200 महिलाएं और एक मिशन
फैक्टरी में लगभग 200 महिला कर्मचारी हैं, जिनमें से कई अधिक परफेक्ट है लेकिन बाकी सभी का सहयोग भी कुछ कम नहीं। सभी महिलाएं एक इकाई की तरह कार्य करती हैं। चूंकि यह अपने आप में एक अनूठा प्रयोग है, ऐसे में लोग इस फैक्टरी को देखने के लिए आते रहते हैं, परंतु महिलाएं इस बात से बेपरवाह दिखाती है कि कोई उन्हें देख रहा है और वे बस अपना काम करती रहता हैं।
स्थानीय और युवा महिलाएं ज्यादा
फैक्ट्री में काम करने वाली महिलाओं में से अधिकतर 25 से 30 साल की हैं। अधिकतर महिलाएं स्थानीय हैं जो कि अपने परिवार को आर्थिक सहायता देने की इच्छा रखती है। इन्हें किसी तरह के ट्रेनिंग नहीं थी परंतु वे यहां आई और अपने काम पारंगत होती गई। एक जुटता और उपकार की यह भावना महिलाओं का नैसर्गिक गुण है। छोटे- छोटे स्तरों पर महिलाएं मिलजुल कर की काम आसानी से कर लिया करती है। आचार, पापड़, बड़ी, मंगोड़ी और न जाने क्या- क्या मिलकर बनाती है और उसे बेचती है ताकि उनके परिवार की जिंदगी संवर सके।
एक साल में बनते है 8 से 9 लाख पंप
ज्यादातर महिलाएं दूसरी शिफ्ट में काम करती हुई 14 से 17 प्रकार के छोटे पंप बनाना पसंद करती हैं। कंपनी के कुल आउटपुट का लगभग 6% यानी 132 करोड़ रुपये है। दो शिफ्टों में काम करके महिलाएं साल भर में लगभग 8-9 लाख पंप बनाती हैं। यानी हर महीने लगभग 70 से 80 हजार पंप।
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