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जॉब के साथ पार्टनर और बच्चे का भी रखें ख्याल, अपनाएं स्मार्ट टिप्स

  • Edited By Anjali Rajput,
  • Updated: 18 Feb, 2019 05:08 PM
जॉब के साथ पार्टनर और बच्चे का भी रखें ख्याल, अपनाएं स्मार्ट टिप्स

आजकल शादी के बाद हर महिला घर में रहने से अच्छा वर्किंग वुमेन होना ज्यादा पसंद करती है लेकिन कई बार काम के साथ-साथ पार्टनर और पेरेंटिंग में संतुलन बनाए रखना बहुत मुश्किल हो जाता है। बाहर काम करना अपने में ही एक चैलेंज होता है और आजकल तो हर फील्ड में कॉम्पिटिशन भी बहुत बढ़ गया है। 9 से शाम 6 बजे तक की जॉब करने के बाद पार्टनर और बच्चों के साथ क्वॉलिटी टाइम बिताना किसी चैलेंस से कम नहीं होता। महिला चाहें कितनी भी बिजी क्यों ना हो लेकिन हर हालत में वह यहीं चाहती है कि वह अपने पति और बच्चों को पूरा समय दे सकें और उनका ख्याल रख सकें। अपने काम के साथ-साथ घर को सम्भालना भी बहुत बड़ी बात है लेकिन कुछ तरीके ऐसे हैं जो अगर आपने सीख लिए तो ये काम आपके लिए बहुत आसान हो जाएगा। 

 

क्या होते हैं पेरेंटिंग चैलेंजिज

माता-पिता ही बच्चे के बारे में सबसे ज्यादा सोचते है। हर माता-पिता की ख्वाहिश होती है कि उसकी संतान खुश रहे, तरक्की करे और उसे वह सब कुछ मिले, जिसकी उसे चाह हो। इसके लिए वह बच्चों को बेहतर परवरिश देना चाहते हैं। कई बार पत्नी-पत्नी के बीच झगड़ा भी हो जाता है लेकिन उनका मुद्दा बच्चों को बेस्ट देने का ही होता है। 

 

टाइम-मैनेज करना है जरूरी

जब कोई कपल पेरेंट्स बनता है तो पूरा घर उसी बच्चे के इर्द-गिर्द घूमने लगता है। बच्चा को अच्छी केयर के लिए माता-पिता का भरपूर समय और ध्यान भी चाहिए। बड़े-बड़े शहरों में नौकरीपेशा कपल के पास समय लिमिटि़ड होता है। इस वजह से जब बच्चा घर में आ जाता है तो हर चीज को मैनेज करके बच्चे की केयर के लिए भी समय निकालना मुश्किल होता है। इस वजह से कई बार बहस भी शुरू हो जाती है और बहस इस हद तक बढ़ जाती है कि रिश्ते में दरार आ जाती है। ऐसे में समझदारी की सख्त जरूरत होती है।

 

कैसे करें टाइम मैनेजमेंट

टाइम मैनेजमेंट में जरूरी कामों की तरह पार्टनर और बच्चे के लिए टाइम निकालें। वीक डेज पर समय न हो तो वीकेंड पर खुद को फ्री करें। यह समय बच्चे और फैमिली के लिए हो। महीने में एक-दो बार पार्टनर के साथ समय बिताएं। माता-पिता, रिश्तेदार या एक्सटेंडेड फैमिली आसपास हो तो बच्चे को उनके पास छोड़ें और कपल टाइम एंजॉय करें।

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कैसा हो स्मार्ट पेरेंटिंग स्टाइल?

हर इंसान के सोचने,समझने और काम करने का तरीका अलग-अलग होता है। पत्नी-पत्नी भी जरूरी नहीं कि हर बात पर सहमत हो। ऐसे में स्मार्ट पेरेंटिंग स्टाइल को अपनाना चाहिए। कई माता-पिता बच्चों के साथ दोस्तों की तरह रहते है तो कुछ सख्त-मिजाज के होते हैं। कई बार वाइफ बच्चों के लिए बहुत ज्यादा पॉसेसिव होती है जो पति को अखरता है। ऐसे में जरूरी है कि पेरेंट्स विचार, अनुभवों और ज्ञान के आधार पर पेरेंटिंग रूल्स बनाएं। 

 

अच्छी पेरेंटिंग के लिए करें ये काम

बच्चे के भविष्य को देखते हुए संयुक्त रूप से पेरेंटल स्टाइल डेवलप करने की जरूरत होती है इसलिए बच्चे के भविष्य से जुड़ी इच्छाओं-अपेक्षाओं के बारे में आपस में बात करें और पेरेंटिंग रूल्स सुनिश्चित करें। जो आदतें या अनुशासन संबंधी नियम बच्चे के लिए निर्धारित कर रहे हैं, उनका खुद भी पालन करें।

 

एक-दूसरे को टोकना छोड़ें

शादी के बाद पार्टनर की छोटी-छोटी बातों पर उसे टोकना कई बार आदत बन जाती है लेकिन बच्चा होने के बाद भी अगर यहीं आदत बनी रहें तो इससे बच्चें पर बुरा असर पड़ता है। जब उसे लगता है कि पापा मां को डांटते रहते हैं तो वह खुद भी मां को फॉरग्रांटेड लेने लगता है। अगर पेरेंटिंग को लेकर पार्टनर के रवैये या विचार से असहमत हैं तो उसे बच्चे के सामने डांटने या टोकने से बेहतर है कि अकेले में बात करें। इस बात का जरूर ध्यान रखें कि बच्चें के सामने बुरा व्यवहार ना करें।

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जिम्मेदारियां मिलकर निभाएं

भले ही आज महिलाएं घर से बाहर निकल कर काम कर रही हैं, मगर घर के काम आज भी आमतौर पर उन्हीं की जिम्मेदारी समझी जाती है। ऑफिस और घर को साथ-साथ मैनेज करना महिला के लिए बहुत मुश्किल होता है जिससे वह चि़ड़चिड़ापन, गुस्से का शिकार हो जाती है। ऐसे में घर के रिश्ते सबसे पहले प्रभावित होते है। ज्यादा थकान या प्रेशर की वजह से ऐसा होना आम ही है इसलिए घर के कामों में पति को भी हाथ बंटाना चाहिए। अगर पत्नी किचन में काम कर रही है तो पति बच्चों की केयर कर सकता है। इससे बच्चों में भी मदद के संस्कार आएंगे और वह जिम्मेदार बनेंगे।

 

हर बात पर ब्लेम करना

जरूरी नहीं कि आप जो फैसला लें, वो सही हो। अगर बच्चे के लिए लिया गया कोई फैसला सही न रहा हो तो पार्टनर को ताने मारने से अच्छा है कि आगे बढ़ें और सही फैसले लें। पार्टनर को ब्लेम करते रहने से हालात बिगड़ सकते हैं। किसी पर भी ब्लेम करने से पहले बात को समझना बहुत जरूरी है। अगर कोई फैसला गलत रहा हो तो इस बात पर विचार करें कि आगे उसे कैसे सही किया जा सकता है।

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बेडटाइम फाइट

भारतीय घरों में प्राइवेसी का कॉन्सेप्ट अभी उतना नहीं है। बच्चा आमतौर पर माता-पिता के साथ सोता है क्योंकि उसे दोनों के स्पर्श की जरूरत होती है। छोटे बच्चे के साथ कई बार जागना पड़ता है। बड़ा होने पर भी वह माता-पिता के साथ सोना चाहता है, जिससे पति-पत्नी को एक-दूसरे के लिए समय नहीं मिल पाता। इससे समस्याएं हो सकती हैं। एक उम्र के बाद बच्चों को अलग सोने के लिए प्रेरित करें। शुरुआत में बच्चे का बेड अपने बेडरूम में ही लगाएं। सोते समय उनके साथ रहें। जब बच्चा चार-पांच साल का हो जाए तो उसके लिए अलग कमरा तैयार करें।

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