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पोस्टर वुमनः कहीं बिना बिजली आया हजारों का बिल तो कोई गैस मिलने के बाद भी कर रही धुएं से संघर्ष

  • Edited By Anjali Rajput,
  • Updated: 27 May, 2019 12:43 PM
पोस्टर वुमनः कहीं बिना बिजली आया हजारों का बिल तो कोई गैस मिलने के बाद भी कर रही धुएं से संघर्ष

बी.बी.सी. रिपोर्टर सरोज सिंह: महिलाओं की सुविधाओं के लिए सरकार कोई ना कोई सकीम निकालती रहती हैं। आज हम आपको बीबीसी द्वारा कवर की गई ऐसी ही चार महिलाओं की कहानी बताने जा रहे हैं, जिन्हें इन सकीम का लाभ उठाने का मौका मिला।

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'पोस्टर वुमन' सिरीज कहानी है उन महिलाओं की जो मोदी सरकार की योजनाओं की शुरुआत का जरिया बनीं, वो महिलाएं जिनकी तस्वीर सरकारी योजनाओं का पोस्टर बन गई। बीबीसी ने ऐसी चार योजनाओं की लाभार्थी महिलाओं से मिल कर उनके जीवन में आए बदलाव की कहानी जाननी चाही। हमारी सोच थी कि उन महिलाओं की कहानी, उन चेहरों की कहानी, उन्हीं की जुबानी जनता तक पहुंचाए।

 

इस सिरीज की पहली कहानी है-

आगरा की रहने वाली मीना देवी की है। मीना देवी, प्रधानमंत्री आवास योजना की पहली लाभार्थी हैं। मीना देवी के घर पर चार बच्चे, 10 बकरियां और 1 भैंस हैं। ये सब रहते हैं 25 वर्ग मीटर के एक कमरे में जो उन्हें योजना के तहत मिला है। उसी कमरे के साथ में लगी एक रसोई है, जिसमें गैस चूल्हा भी है लेकिन उस पर खाना नहीं पकता। उसी के साथ लगा हुआ है एक स्नान घर है जिसमें बकरियां रहती है। शौचालय है लेकिन पानी की व्यवस्था नहीं है और इन सबके बीच सबसे ज्यादा हैरान करने वाली बात ये है कि उनके घर पर लगा बिजली का मीटर अभी तक चालू नहीं हुआ है, फिर भी उनके घर में मार्च के महीने में 35 हज़ार रुपए का बिजली बिल आ गया है। मीना देवी योजना में घर मिलने पर प्रधानमंत्री मोदी की शुक्रगुज़ार हैं लेकिन बुनियादी जरूरतों के लिए अब भी उनको इंतजार है।

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इस सिरीज की दूसरी कहानी है-

इस सिरीज़ की दूसरी कहानी है उन महिलाओं की है जिनके पैर प्रधानमंत्री मोदी ने कुंभ में धोए थे। 24 फरवरी 2019 को कुंभ मेले में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पांच सफ़ाईकर्मियों के पांव धोए थे। उनमें दो महिलाएं भी थीं। एक चौबी और दूसरी ज्योति। उनकी तस्वीरें देशभर की टीवी स्क्रीनों पर दिखाई गईं। पर उसके बाद सब उन्हें भूल गए। जब मीडिया का शोर थम गया तब बीबीसी ने उत्तर प्रदेश के बांदा की रहने वाली इन महिलाओं से मुलाक़ात की और ये पता लगाया कि आख़िर 24 फ़रवरी के बाद उनकी ज़िंदगी में क्या बदलाव आए? प्रधानमंत्री मोदी से मिलने के बाद भी उन्हें अपने इलाके में अब भी छुआ-छूत झेलना पड़ रहा है। उब उनकी उम्मीदें बढ़ गईं है। उन्हें सरकारी नौकरी चाहिए. लेकिन मोदी सरकार की इन दोनों पोस्टर वुमन को शौचालय तक की सुविधा मिली है। इनमें से एक को उज्ज्वला योजना की गैस का अब भी इंतजार है।

चौबी की तस्वीर

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ज्योति की तस्वीर

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इस सिरीज की तीसरी कहानी है- 

उज्ज्वला योजना की पोस्टर वुमन से जुड़ी। भारत सरकार ने 2016 में उत्तर प्रदेश के बलिया से प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना की शुरुआत की। उज्ज्वला योजना का मकसद था घर-घर रसोई गैस पहुंचाना लेकिन योजना के तीन साल बीत जाने के बाद हक़ीक़त ये है कि जिन घरों में सिलेंडर और गैस चूल्हा पहुंचा, उनमें से कई घरों में अब भी मिट्टी के चूल्हे जल रहे हैं। बीबीसी की टीम पहुंची बलिया, उन महिलाओं के घर, जिन्हें प्रधानमंत्री ने सबसे पहले दिया था उज्ज्वला स्कीम के तहत गैस कनेक्शन। गुड्डी देवी ने तीन साल में 11 सिलेंडर भरवाए, वहीं मऊ की जरीना ने तीन साल में 14 सिलेंडर भरवाए.जबकि सरकार एक साल में एक परिवार को 12 सिलेंडर देती है।

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इस सिरीज की चौथी कहानी है-

आयुष्मान भारत योजना से जुड़ी। इस योजना की पहली लाभार्थी है करिश्मा, जो हरियाणा के करनाल में रहती है। हरियाणा में करनाल के कल्पना चावला अस्पताल में करिश्मा 15 अगस्त 2018 को पैदा हुई थी।उस वक्त 'आयुष्मान भारत योजना' का ट्रायल चल रहा था। करिश्मा के माता-पिता ने कल्पना चावला अस्पताल इसलिए चुना था, ताकि बच्चे के जन्म में ख़र्च कम आए। क्योंकि उनका पहला बेटा बड़े ऑपरेशन से पैदा हुआ था और परिवार को कर्ज़ लेने की नौबत आ गई थी। लेकिन जब करिश्मा पैदा हुई, तो उसके माता-पिता को एक रुपए भी खर्च नहीं करना पड़ा। सरकार ने इस बारे में अपनी खूब पीठ ठोंकी। लेकिन हकीकत ये थी कि अगर ‘आयुष्मान भारत’ योजना न भी होती तो भी वो करिश्मा के पैदा होने पर कोई माता-पिता को कोई पैसा नहीं देना पड़ता। इस योजना से फायदा करिश्मा के माता-पिता को नहीं अस्पताल को हुआ, जिनको सरकार की तरफ से 9000 रुपए मिले।

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