हस्तशिल्प कला भारत की खास पहचान है। आजकल के मशीनी युग में प्राचीन कलाएं लुप्त होती जा रही हैं लेकिन कुछ जगहों पर अब भी हस्तशिल्प के खूबसूरत रंग देखने को मिल जाते हैं। ओडिशा का नाम इसके लिए सबसे पहले लिया जाता है। अगर आप भी इस तरह की चीजें खरीदने के शौकीन हैं तो ओडिशा एकदम सही जगह है। वहां पर आपको डैकोरेटिव सामान के साथ-साथ पेंटिंग्स, ज्वैलरी, मूर्तियां आदि बनाई जाती हैं। इस राज्य में काम करने के लिए 1.3 दस्तकार मौजूद हैं लेकिन उनके काम करने के लिए चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इन मुश्किलों को आसान करने के लिए दो बहनें, शिप्रा और मेघा अग्रवाल इन कामगारों की बहुत मदद कर रही हैं।
इन दोनों ने शिल्प बाजार पर साकारात्मक प्रभाव बनाने के लिए साल 2016 में कलाघर (KalaGhar) की स्थापना की। कलाघर ऐसा ई प्लेटफॉर्म है जो ‘arte util’ के कॉन्सेप्ट से प्रभावित है। ‘arte util’ का मतलब स्पैनिश में उपयोगी कला होता है। यह दस्तकारों के साथ काम करता है और उनके द्वारा बनाए गए उत्पादों को सही बाजार मुहैया करवाया जाता है।
कैसे हुई इस मुहिम की शुरुआत
शिप्रा और मेघा मारवाड़ी परिवार में पैदा हुई। दोनों बहनें कुछ ऐसा करना चाहती थीं, जिससे सामाज का सुधार हो सके। पहले मेघा 'मिलाप' नाम के एक संगठन के साथ काम कर रही थीं, यह लोगों को ऋण उपलब्ध कराने वाला स्टार्टअप है। यह काम करते हुए वे गांव की महिलाओं और कई स्वयं सहायता समूह से मिलती रही। जिससे उन्हें कई परेशानियों का पता चला। इस बात से उन्हें स्वयं सहायता समूह, एनजीओ और कारीगरों को एक साथ जोड़ने का विचार आया। उनका पुरातन कला से बचपन से बी बहुत प्यार है और दोनों बहनों का मुख्य मकसद कला के जरिए गुणवत्तापूर्ण उत्पादों कि निर्माण करना है न कि अधिक संख्या में उत्पादों को बनाना।
कला घर कर रहा है उत्पादों को बेहतर बनाने का काम
कला घर का काम उत्पादों को मार्किट तक पहुंचाना ही नहीं बल्कि इसे पहले से भी ज्यादा बेहतर करना है। आदिवासी लोगों द्वारा की जाने वाली सबाई घास की कला से बेहतर कलाकारी दिखाते हुए वे नए उत्पादों का निर्माण करते हैं। दोनों बहनों का मानना है कि यह कला आने वाले समय में ओडिशा को एक नए मुकाम तक ले जाएगी।