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Struggling Story: मुश्किलों के आगे भी नहीं हारी सरिता, पढ़ाई पूरी कर बनी बीएड टीचर

  • Edited By khushboo aggarwal,
  • Updated: 12 Nov, 2019 04:02 PM
Struggling Story: मुश्किलों के आगे भी नहीं हारी सरिता, पढ़ाई पूरी कर बनी बीएड टीचर

इस समाज में महिलाओं को अपनी पहचान बनाने के लिए न केवल पुरुषवादी समाज बल्कि उसे जीवन में आ रही आर्थिक मुश्किलों का भी सामना करना पड़ता है। वहीं कुछ महिलाएं इन तमाम मुश्किलों का सामना करते हुए जीवन में तय किए हुए अपने मुकाम को हासिल कर लेती है। इन्हीं में से एक है रांची के सिमरिया गांव की सरिता तिर्की। सरिता को जीवन में कई तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ा लेकिन उसने हार नहीं मानी और आज रांची वुमेंस कॉलेज में बीएड टीचर है।


चलिए बताते है आपको सरिता तिर्की के संघर्ष भरे जीवन के बारे में ...

सरिता तिर्की के माता - पिता दिहाड़ीदार मजदूर है। उनके पास जितनी जमीन है उतनी में वह अनाज उगा कर मुश्किल से ही अपने परिवार का पेट भर पाते है ऐसे में बच्चों को पढ़ाना उनके लिए मुश्किल था। सरिता जब 5 साल की थी तब उन्होंने उसे एक स्थानीय मिशनीर स्कूल में दाखिल करवा दिया जहां पर किसी भी तरह की फीस नहीं लगती थी। 

 

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4 साल तक परिवार से रही दूर 

स्कूल में सरिता पढ़ाई में काफी तेज थी। पढा़ई में उसका रुझान देखते हुए उसके पिता ने 7 वीं कक्षा में उसे केंद्रीय विद्यालय में दाखिल करवा दिया जहां पर उसे 10 वीं पढ़ाई पूरी तरह से फ्री थी लेकिन इन 4 सालों में उसके परिवार का कोई भी सदस्य उसे मिलने नहीं आया था। जब उसके शिक्षक व सहेलियां इस बारे में पूछती तो वह कहती कि उसके परिवार वाले खूंटी से बेड़ो तक आने-जाने का खर्च उठा नहीं सकते इसलिए वह उससे मिलने नहीं आते । इस कारण कई बार उसे स्कूल में तानों का सामना भी करना पड़ता। 


टिकट न होने पर कंडक्टर ने दिया था धक्का 

इसके बाद किसी तरह सरिता ने खूंटी के कॉलेज में एडमिशन लिया लेकिन घर से कॉलेज 42 किलोमीटर दूर था। जिस कारण उसे आने-जाने में दिक्कत होती थी। उसके घर के पास से एक बस निकलती थी जिसमें वह रोज बैठ कर जाने लगी लेकिन एक दिन बस कंडक्ट्रर ने उसे धक्का देकर बस से निकाल दिया क्योंकि बस कंडक्टर को पता लग गया था कि वह रोज बिना टिकट के बस में आती थी।

 

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टिकट के लिए खेतों में किया था काम 

बस से उतार दिए जाने के बाद सरिता ने कुछ दिन पढ़ाई छोड़ कर खेतों में काम किया ताकि वह टिकट के लिए पैसे जोड़ सकें। इसके बाद जब उसके बहन की शादी हुई तो उसके जीजा ने उसे गिफ्ट में साइकिल दिया। जिसकी मदद से वह आराम से कॉलेज आने- जाने लगी। 

बिना किताबों के किया टॉप

घर में जरुरी काम हो या सरिता को बुखार लेकिन वह कॉलेज से कभी छुट्टी नहीं करती थी। इसका कारण यह था कि सरिता के पास किताबें नही थी। जिस कारण उसे रोज कॉलेज जाकर अपने नोट्स बनाना बहुत ही जरुरी होता था। सिर्फ क्लास मेें पढ़ाई करके और बिना किताबों के सरिता ने न केवल भूगोल में पहली डिवीजन में ग्रेजुएशन पास की बल्कि कॉलेज की टॉपर भी बनी।

मजदूरी और मेड कर काम करके पूरी की अपनी एमए

ग्रेजुएशन के बाद अपनी आगे की शिक्षा के लिए सरिता रांची अपने भाई के पास आ गए। यहां पर उसका भाई एक गार्ड का काम करता और गैरेज में रहता था सरिता भी वहीं रहने लगी। कुछ दिनों बाद अपनी एमए की फीस के लिए सरिता ने खेतों में दिहाड़ी पर काम करना शुरु कर दिया। इस दौरान सरिता ने 2 दिन तक पानी पीकर दिन निकाला क्योंकि उसके पास खाने के लिए पैसे नहीं थे। मजदूरी से पैसे बचा कर सरिता ने रांची यूनिवर्सिटी में एमए का फॉर्म भरा और टॉप 10 में अपनी जगह बना ली। इसके साथ ही सरिता ने एनसीसी ज्वाइन कर ली लेकिन भूगोल के प्रैक्टिकल के लिए उसे मजदूरी छोड़नी पड़ी। ऐसे में खेतों का काम छोड़ कर सरिता ने घर मेड का काम करना शुरु कर दिया। सुबह कॉलेज जाने से पहले और कॉलेज से आकर वह घर में काम करती और बाकी दिन कॉलेज में निकालती। 

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मकान मालकिन ने की मदद 

एमए पूरी करने के बाद सरिता बीएड करना चाहती थी लेकिन पैसे नहीं थे। तब उसकी मकान मालकिन जिन्हें वह प्यार से दादी मां कहती थी उन्होंने उसे 10 हजार रुपए दिए ताकि वह दाखिला ले सकें। उसके बाद उन्होंने सरिता की जितना हो सके उतनी मदद की। इसके बाद सरिता एमएड करना चाहती थी जिसके लिए तकरीबन 1 लाख रुपए चाहिए थे। तब सरिता को बैंक लोन के बारे में पता लगा उसने लोन के लिए बैंक में अप्लाई किया। तब उसे पता लगा एमएड के लिए लोन नहीं मिलता है। सरिता ने बैंक में काफी मिन्नते की तब बैंक वालों ने उसकी शिक्षा के रिकॉर्ड और आर्थिक स्थिति को देखते हुए 1 लाख का लोन दिया। सरिता ने जमशेदपुर वुमेंस कॉलेज में दाखिला लिया और फर्स्ट डिवीजन विद डिस्टिंकशन के साथ एमएड पास की। 

शादी की जगह पढ़ाई पर करें खर्च

इस समय सरिता की बहन  रांची के ही एक प्राइवेट बीएड कॉलेज में और भाई सेंट जेवियर्स कॉलेज से ग्रेजुएशन कर रहा है। उन दोनों के अलावा एक अन्य लड़की अनिता भी उनके साथ रहती है। सरिता उसकी पढ़ाई का भी खर्च उटा रही है। सरिता का कहना है कि पेरेंट्स को अपनी लड़कियों की शादी पर पैसा खर्च करने की जगह पढ़ाई पर करना चाहिए। इससे दोगुना रिटर्न वापिस मिलेगा। एक तो लड़की शिक्षित होकर आत्मनिर्भर बनेगी दूसरा अपने लिए अच्छा जीवनसाथी ढूंढ पाएगी। 

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