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शहर छोड़कर जा बसी गांव, औरतों की मदद के लिए बनाई माण फांउडेशन

  • Updated: 14 Jun, 2018 05:13 PM
शहर छोड़कर जा बसी गांव, औरतों की मदद के लिए बनाई माण फांउडेशन

समाज सेवा करना का जजबा लेकर बहुत सी महिलाएं समाज में काम कर रही हैं। जो अपने दर्द को भूलाकर पूरी मेहनत से समाज में रहने वाली दूसरी औरतों के मदद कर रही हैं। आज हम जिस वुमेन हीरों की बात कर उनका नाम है  चेतना गाला सिंहा। जिन्होंने शहर को छोड़कर गांव में रहने का फैसला किया ताकि गांव के लिए कुछ काम किया जाए। यह नाम नया नहीं हैं, अगर आप केबीसी यानि कौन बनेगा करोड़पति शो देखते आए हैं तो साल 2017 में चेतना को आयुष्मान खुराना के साथ इस शो में देखा होगा। चेतना ने गांव की महिलाओं को प्रेरणा देने के लिए शहर छोड़ने का फैसला लिया और 'माण फाउंडेशन' की नींव रखी।

मुंबई की रहने वाली चेतना ने कॉमर्स और अर्थशास्त्र में पढ़ाई की। वह 1970 के दशक में जयप्रकाश नारायण के छात्र आंदोलन जुड़ी रहीं, इस दौरान वह गरीब और पिछड़े वर्ग के लोगों से संपर्क में रहीं। उन्होंने सामाजिक कार्यकर्ता और कृषक से शादी की। शादी के बाद चेकना महाराष्ट्र के सतारा जिले के म्हसवड गांव में आकर रहने लगी। 

जब उन्होने गांव में आकर रहना शुरू किया तो वहां का रहन-सहन बिल्कुल अलग था। वहां अवसरों की पूरी तरह से अभाव था। मंगलसूत्र न पहनने जैसी बातों को लेकर उसे बहुत कुछ सुनना पड़ा। इसके अलावा पानी और पैसो की कमी से भी उसकी जिंदगी में परेशानियां बढ़ने लगी। उसने मुसीबत से परेशान होने की बजाए इसे अवसर के रूप में देखा। 

जब उन्होंने माण फांउडेशन की नींव रखी तो पहले-पहले गांव वालों को उन पर यकीन करने में वक्त लगा। लोग धीरे-धीरे उनके पास अपनी मुश्किले लेकर आने लगे। एक बार 
चेतना को तब बहुत हैरानी हुई जब उनके पास एक महिला आई और कहा कि बैंक वालों ने उनके पैसे जमा करने से मना कर दिया और इसके पीछे की वजह बैंक वालों ने कम पैसे होने की वजह बताई। इस कारण 1997 में चेतना ने  'माण देशी बैंक' खोला' जिसमें महिलाएं कम पैसे भी आसानी से जमा करवा सकती है। यह बैंक आज भी महिलाओं का, महिलाओं द्वारा और महिलाओं के लिए काम कर रहा है। 

इस बैंक को खोलने केे लिए भी चेतना के सामने कई मुश्किले आई। पहली बार उसके बैंक खोलने के प्रस्ताव को आरबीआई के अधिकारियों ने खारिज कर दिया। इसकी वजह प्रस्ताव पर महिलाओं के दस्तखत की जगह अंगूठे के निशान थे। फिर दोबार 6 महीने बाद फिर प्रस्ताव लेकर महिलाएं आरबीआई के दफ्तर पहंची। इस समय उन्होने प्रस्ताव पर दस्तखत किए। यह बैंक खुला और आज यह बैंक महाराष्ट्र के सबसे बड़े Micro Finance Banks में से एक है। इस बैंक में स्मार्ट कार्ड की व्यवस्था की गई। महिलाओं को लोन लेने की भी सुविधा मिलनी शुरू हुई। 

इसके बाद चेतना ने गांव की महिलाओं को शिक्षित करने का बीड़ा उठाया और माण देशी फाउंडेशन ने ऑडियो-विजुअल कक्षाए शुरू की। इस फाउडेशन से न सिर्फ  महिलाओं को शिक्षित किया बल्कि उन्हें अपने पैरों पर खड़े होने की हिम्मत भी दी। बच्चियों को शिक्षा प्राप्त करने की भी इससे प्रेरणा मिलने लगी।  इसी तरह चेतना ने लोगों की परेशानी को देखते हुए पशुओं का कैंप स्थापित करने का निर्णय लिया। इसमें मुश्किलें तो आईं लेकिन देखते ही देखते यह काम भी संभव हो गया और लोग इससे जुड़ने लगे। आज उनका काम कई औरतों के लिए प्रेरणा बन गया है। 


 

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