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वो एक्ट्रेस जिसने खोले औरतों के लिए मायानगरी के दरवाजे, बड़े रईस परिवार में हुई थी शादी लेकिन...

  • Edited By Sunita Rajput,
  • Updated: 17 Jan, 2021 06:35 PM
वो एक्ट्रेस जिसने खोले औरतों के लिए मायानगरी के दरवाजे, बड़े रईस परिवार में हुई थी शादी लेकिन...

इसमें कोई शक नहीं कि आज फिल्म इंडस्ट्री में फीमेल एक्टर्स का बोलबाला मेल एक्टर के बराबर हैं। मगर एक समय था जब भारतीय सिनेमा में महिला किरदारों को भी पुरुष कलाकार या फिर कोठे पर काम करने वाली ही निभाया करती थीं उस समय एक औरत फिल्मों में अपनी मौजूदगी दर्ज करवाकर एक बड़ा बदलाव लाई। हम बात अभिनेत्री दुर्गा खोटे हैं जिन्होंने इंडस्ट्री में आने की पहल की और महिलाओं के लिए इंडस्ट्री के दरवाजे खोल दिए। 

बॉलीवुड में एक्ट्रेस के लिए आइडल बन चुकीं दुर्गा खोटे एक प्रतिष्ठित परिवार से थीं। इसलिए उनके इस कदम ने पूरी बॉलीवुड में हड़कंप मच गया था। फिल्मों में आने के लिए दुर्गा को कई तरह के बातें सुननी पड़े लेकिन वो अपने इरादे की पक्की निकलीं। दुर्गा की 18 साल की उम्र में एक बेहद अमीर खानदान में शादी हो गई। दुर्गा के पति का नाम विश्वनाथ खोटे था जोकि मैकेनिकल इंजीनियर थे। दोनों की शादीशुदा जिंदगी में ठीक चल रही थी। दोनों के 2 बेटे भी हुए लेकिन पति की निधन की मौत के बाद दुर्गा की जिंदगी में सब बदल गया। इसके बाद उन्हें आर्थिक तंगी से जूझना पड़ा। 

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दरअसल, दुर्गा अपने बेटों के साथ ससुराल में रहती थीं लेकिन कुछ समय बाद दुर्गा को लगने लगा कि उन्हें खुद ही कुछ काम करने की जरूरत है, वो कब तक ससुराल पर बोझ बनी रहेगी। दुर्गा पढ़ी-लिखी थीं जिसके बाद दुर्गा ने पैसे कमाने के लिए सबसे पहले ट्यूशन का सहारा लिया लेकिन फिर एक दिन उन्हें फिल्म ‘फरेबी जाल’ में काम का ऑफर मिला। पैसों की मजबूरी के चलते दुर्गा ने रोल स्वीकार कर लिया। हालांकि, दुर्गा ने इस फिल्म में महज 10 मिनट का रोल निभाया बाकी उन्हें फिल्म की कहानी बिल्कुल मालूम नहीं थी जिस वजह से फिल्म रिलीज होने के बाद गुर्गा को सामाजिक आलोचना का समाना करना पड़ा। 

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हालांकि, पहले फिल्म में दुर्गा के पैर लड़खड़ा गए और उन्होंने अपने पैर पीछे खींच लिए। फिर 'इत्तेफाक' से इस फिल्म से निर्देशक वी शांताराम की नजर दुर्गा पर पड़ी। उन्होनें अपनी फिल्म ‘अयोध्येचा राजा’ में उन्हें मुख्य पात्र ‘तारामती’ का किरदार उन्हें ऑफर किया। हालांकि, दुर्गा ने इस फिल्म का ऑफर ठुकरा दिया लेकिन शांताराम के समझाने पर दुर्गा ने खुद को दूसरा मौका दिया । फिल्म के रिलीज से पहले दुर्गा बहुत ही घबराई हुई थीं। उन्हें डर था कहीं पहली फिल्म की तरह उन्हें इसके लिए भी आलोचनाओं का सामना न करना पड़े। हालांकि, इस फिल्म में लोगों को दुर्गा का किरदार काफी पसंद आया। इसी फिल्म ने उन्हें रातों-रात स्टार बना दिया। 

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मगर फिल्मी करियर के दौरान ही दुर्गा के एक बेटे हरिन का निधन हाे गया जिससे दुर्गा को गहरा सदमा लगा। इसके बाद दुर्गा ने फिल्म निर्माण में भी अपना हाथ आजमाया। दुर्गा ने अपने दूसरे पति राशिद खान के साथ ‘फैक्ट फिल्म्स’ प्रोडक्शन हाऊस’ के लिए कई शॉर्ट फिल्में बनाई। दुर्गा हमेशा से विदेशी फिल्म फेस्टिवल में जाती थीं। इस कारण उनके अंदर एक अच्छी फिल्म का निर्माण करने की समझ आ गई।

दुर्गा ने 50 साल के फिल्मी करियर में करीब 200 फिल्में की और दादासाहेब फाल्के अवॉर्ड से भी सम्मानित हुई। फिल्म 'मुगल-ए-आजम' में जोधबाई का किरदार यादगार रहा। इसके अलावा उन्होंने ज्यादातर मां के किरदार सिल्वर स्क्रीन पर निभाए। मगर खराब सेहत के चलते उन्होंने 1991 में दुनिया को अलविदा कह दिया।

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