ऑटिज्म एक मानसिक विकार है, जिसमें रोगी बचपन से ही परिवार, समाज व बाहरी माहौल से जुड़ने की क्षमताओं को गंवा देता है। 6 साल की उम्र में ही यह पनपनी शुरू हो जाती है लेकिन जागरूकता की कमी के चलते बीमारी का देर से पता चलता है। इस बीमारी से जूझ रहे बच्चे जल्दी से दूसरों से कॉन्टेक्ट नहीं कर पाते। साथ ही इन्हें सीखने व पढ़ने में मुश्किल होती है। ऐसे में इन्हें स्पैशल केयर की जरूरत होती है। चलिए 'वर्ल्ड ऑटिज्म अवेयरनेस डे' के मौके पर हम आपको बताते हैं कि कैसे इस तरह की बच्चों की केयर करनी चाहिए।
ऑटिज्म के लक्षण
-बच्चे जल्दी से दूसरों से आई कॉन्टेक्ट नहीं कर पाते।
-बच्चे किसी की आवाज सुनने के बाद भी रिएक्ट नहीं करते।
-भाषा को सीखने-समझने में इन्हें दिक्कत आती है।
-बच्चे अपनी ही धुन में अपनी दुनिया में मग्न रहते हैं।
-ऐसे बच्चों का मानसिक विकास ठीक से नहीं हुआ होता तो ये बच्चे सामान्य बच्चों से अलग ही दिखते और रहते हैं।
-ऑटिज्म को पहचानने का सही तरीका यही है कि अगर बच्चा बचपन में आपकी चीजों पर रिएक्ट नहीं कर रहा या फिर कुछ नहीं बोल रहा तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।
एेसे करें ऑटिस्टिक बच्चे की देखभाल
धीरे-धीरे सिखाएं
ऑटिस्टिक बच्चों को कुछ सिखाने के लिए जल्दबाजी न करें। उन्हें धीरे-धीरे बात समझाने की कोशिश करें और फिर उन्हें बोलना सिखाएं। साथ ही उनके सामने आसन शब्दों में बात करें, ताकि वह आसानी से समझ सकें।
इशारों में करें बात
अगर बच्चे को बोलने में प्रॉब्लम होती है तो उनसे इशारों में बात करें। इशारों के जरिए उन्हें एक-एक शब्द सिखाएं। आप चाहें तो इसके लिए उन्हें स्पैशल स्कूल में डाल सकते हैं। आप चाहें तो उन्हें फोटो के जरिए भी चीजें समझा सकते हैं।
सब्र से लें काम
अक्सर बच्चे को समझ ना आने पर पेरेंट्स गुस्सा दिखाने लगते हैं लेकिन ऐसा ना करें क्योंकि इससे बच्चों के दिमाग पर ज्यादा बुरा असर पड़ सकता है। ऐसे में जरूरी है कि आप अपने बच्चे से प्यार से बात करें।
रखें तनावमुक्त
बच्चे को तनावमुक्त रखने की कोशिश करें। इसके लिए आप उन्हें कभी-कभार घूमाने भी लेकर जा सकते हैं। इसके अलावा बच्चे के सामने सामान्य बच्चों की तुलना ना करें।
आउटडोर गेम्स
बच्चों को शारीरिक और आउटडोर गेम्स खिलाएं और आप खुद भी उनके साथ खेल में शामिल हों। इससे बच्चे का कॉन्फिडेंस बढ़ेगा।
हर वक्त रखें नजर
हर वक्त इन पर नजर रखना बहुत जरूरी है। किसी बात पर वे गुस्सा हो जाए तो उन्हें प्यार से शांत करें।
टाइम-टू-टाइम दें दवाइयां
अगर परेशानी बहुत ज्यादा हो तो मनोचिकित्सक द्वारा दी गई दवाइयों का इस्तेमाल करें। साथ ही उन्हें दवाइयां टाइम-टू-टाइम दें।