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गुरु का फर्ज निभा रही हैं दिशा धीर, गरीब बच्चों के लिए चलाती हैं फ्री स्कूल

  • Edited By khushboo aggarwal,
  • Updated: 05 Sep, 2019 11:39 AM
गुरु का फर्ज निभा रही हैं दिशा धीर, गरीब बच्चों के लिए चलाती हैं फ्री स्कूल

एक विद्यार्थी के जीवन में शिक्षक का बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान होता है। शिक्षक ही होता है जो स्टूडेंट्स को उनके लक्ष्य तक पहुंचने में मदद करते है। आज शिक्षक दिवस के मौके पर हम आपको फ्री को- एजुकेशन मिशन स्कूल की चेयरपर्सन दिशा धीर के बारे में बताएंगें तो कि आर्थिक रुप से कमजोर बच्चों को शिक्षा देती हैं। पिछले साल इनके स्कूल में 240 व इस साल 120 बच्चे पढ़ रहे हैं। इन बच्चों को पूरा खर्च यह खुद ही उठाती हैं। 

7 लड़कियां कर चुकी है बीए

यह स्कूल पूरी तरह से नॉन गर्वमेंट स्कूल है। इसके लिए सरकार की ओर से किसी भी तरह का फंड नही लिया जाता है। अब तक इस स्कूल से 300 बच्चे बाहरवीं व 7 लड़कियां बीए कर चुकी हैं। इस स्कूल का सारा खर्च हम ही उठाते है। यहां पर बच्चों को शिक्षा के साथ कोशिश की जाती है कि हर शनिवार बच्चों को नहलाया जाए। इतना ही उन्हें हफ्ते में दो बार खाना दिया जाए। बच्चों को नोटबुक्स, पैसिंल हर चींज दी जाती हैं। बच्चे फ्री की इन चीजों का मुल्य समझे उन्हें खराब न करें इसलिए नियम बनाया गया है कि पहले वह भरी हुई नोटबुक्स, या छोटी पेसिंल लेकर आएं तभी उन्हें नई दी जाएगी।

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1998 में की थी स्कूल की शुरुआत

दिशा धीर ने बताया कि 17 दिसंबर 1998 में उनकी मां स्वर्गीय कविता सिंह ने बर्ल्टन पार्क में इसकी शुरुआत की थी। उसके बाद 2008 में वहां पर पटाखा मार्किट शिफ्ट हो गई थी, जिस कारण स्कूल को नगारा गांव में शिफ्ट कर दिया गया हैं। यहां पर बच्चों के लिए क्लासरुम बनाए गए है जहां पर उन्हें पढ़ाया जाता हैं। 

मिलकर होता है सब काम 

बच्चों को शिक्षक के साथ नैतिक मूल्यें भी सिखाएं जाते है। स्कूल में किसी भी तरह का काम करने वाला व्यक्ति नही हैं। स्कूल की साफ सफाई व खाना सब बच्चे व हम मिलकर बनाते हैं। स्कूल का सारा काम बच्चे व हम मिलकर करते हैं। जो खाना बच्चे खाते है वहीं हम करते हैं।स्कूल के गेट पर कभी भी ताला नही लगा होता है क्योंकि उनका मानना है कि स्कूल एक पब्लिक प्रापर्टी है कोई भी कभी भी यहां पर आ सकता हैं। 

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स्कूल से पहले काम पर जाते है कुछ बच्चे

इस स्कूल में आने वाले बच्चे आर्थिक रुप से कमजोर परिवार से होते है, ऐसे में उनके पेरेंट्स एजुकेशन को लेकर ज्यादा जागरुक नही होते है। ऐसे में कुछ बच्चे स्कूल आने से पहले सुबह घरों में अखबार फेंक कर आते है तो कुछ बच्चे किसी दुकान या ठेले पर काम  करके आते हैं। इससे वह अपने घर चलाने के साथ एजुकेशन भी हासिल करते हैं। स्कूल में आने वाले बच्चों के लिए किसी भी तरह का ड्रेस कोड नही रखा गया है। बीमार होने पर बच्चों को फ्री दवाई भी दी जाती हैं।

 

 

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