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नुसरत साहब को पिता नहीं बनाना चाहते थे गायक, जानिए उनके 'कव्वाली बादशाह' बनने का सफर

  • Edited By khushboo aggarwal,
  • Updated: 19 Aug, 2019 10:17 AM
नुसरत साहब को पिता नहीं बनाना चाहते थे गायक, जानिए उनके 'कव्वाली बादशाह' बनने का सफर

‘किंग ऑफ़ किंग्स ऑफ़ कव्वाली’ के नाम से पहचान बनाने वाले नुसरत साहब ने 16 अगस्त 1997 में अपनी आखिरी सांस ली थी। उनके बाद उनके गाए हुए गाने ‘मेरे रश्के कमर’ को उनके भतीजे राहत फतेह अली खान ने फिल्म बादशाहों के लिए अपनी आवाज दी थी। 2017 के बाद से यह गाना हर किसी की जुबान पर छाया रहा है। इस गीत को पंजाबी सूफी संत बुल्लेशाह ने लिखा व फेमस किया था पाकिस्तान के  ‘नुसरत फ़तेह अली खान’ साहब ने। यहां एक तरफ भारत व पाकिस्तान के बीच युद्ध का माहौल रहता वहीं यह संगीत व खान साहब की गजलें, कव्वालियां दोनों देशों के बीच शांति का पैगाम पहुंचा काम करती थी। संगीत की इस दुनिया में महारत हासिल करने से पहले नुसरत साहब को उनके पिता की ओर ही क्षेत्र में ले जाना चाहते थे। चलिए आज उनकी जिदंगी की सफर के बारे में बताते है। 

हाथ में हरमोनियम नही, सुई देखना चाहते थे पिता

फतेह अली खान के पिता पहले कभी नही जानते थे कि उनका बेटा 'कव्वाली' के क्षेत्र में आगे बढ़े, इसका कारण था पाकिस्तान में उस समय संगीत को सम्मान नही दिया जाता था, न ही उन्हें अधिक पैसे मिलते थे। इसके साथ ही उनका सोचना था कि कव्वाली गाने के लिए इधर उधर बहुत जाना पड़ता है नुसरत भारी शरीर होने के कारण जा नही पाएंगें। इसलिए फतेह अली खान चाहते थे कि उनका बेटा डॉक्टर बने। तब से वह अपने बेटे की पढ़ाई की काफी जोर डालने लगे।

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घर में संगीत के माहौल में सीखा हरमोनियम

एक तरफ पिता ने नुसरत पर पढ़ाई का जोर डाला हुआ था, वहीं दूसरी तरफ वह खुद हरमोनियम बजाना सीखते थे। एक बार उनके पिता ने उन्हें देख लिया तो उन्हें इस शर्त पर हरमोनियम सीखने की अनुमति दी गई कि वह अपनी पढ़ाई को खराब नही होने देगें। नुसरत साहब के खून में ही संगीत छिपा हुआ था, इसका कारण था कि उनका परिवार पिछले 600 साल से संगीत के ही क्षेत्र में था। नुसरत ने बचपन में हरमोनियम बजाना सीख लिया व उनकी रुचि भी म्यूजिक में दिखने लगी थी। 

बेटे ने जीत कर बदला पिता का सपना

जब फतेह नुसरत को डॉक्टर बनाने के सपने देख रहे थे कि तब उनकी जिदंगी में ऐसी घटना हुई कि फतेह ने खुद नुसरत को संगीत के क्षेत्र में आने की अनुमति दी। तब ‘बड़े गुलाम अली’ साहब के बेटे  ‘मुनावर अली ख़ान’ पाकिस्तान आए लेकिन उन्होंने फतेह को बताया कि वह यहां से निराश हो कर जा रहे है क्योंकि उन्हें पाकिस्तान में एक अच्छा तबला वादक नही मिला जिस कारण वह पाकिस्तान के दर्शकों को खुश नही कर पाएं है तो फतेह ने नुसरत की ओर इशारा किया। मुनावर ने उन्हें देख कर अपना मुंह सिकोड़ लिया था। तब उनके पिता ने कहा कि फतेह देखने में मोटा है लेकिन दिमाग काफी तेज है। उन्होंने नुसरत का ट्रायल लेने की बात कही गई। नुसरत को पता था कि उनके पास यही मौका है जब पढ़ाई से पीछा छुड़वा कर वह म्यूजिक के क्षेत्र में आगे बढ़ सकते है। उस समय तबले पर चलती हुई उनकी ऊंगलियों को देख कर सब हैरान हो गए। उस समय एक पिता हार गया जिसके बाद उन्होंने अपने बेटे को डॉक्टर बनाने के प्लान बदल कर उन्हें  संगीत सिखाने पर जोर दिया।

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इस तरह बने कव्वाली के बादशाह

कव्वाली के बादशाह बनना नुसरत साहब के लिए आसान नही था। इस पहचान के साथ उन्होंने कई तरह के अवार्ड व सम्मान भी हासिल किए। एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि वह दिन में 10- 10 घंटे रियाज करते है। अगर वह रात को 10 बजे रियाज शुरु करते है तो अगल दिन के 10 बजे तक रियाज चलता है, वहीं अगर दिन में शुरु करते है तो वह रात तक चलता है। अपनी इसी मेहनत के कारण नुसरत साहब न केवल कव्वाली के राजाओं के राजा नही बने बल्कि उन्हें 2 ग्रैमी अवार्ड के लिए नॉमिनेट किया गया। इसके साथ ही यूनेस्को म्यूजिक अवार्ड, पाकिस्तान के प्रेसिडेंट  अवार्ड मिल चुका है। इसके साथ ही नुसरत साहब के नाम पर गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड भी दर्ज है। 

गाना कम्पोज करने के लिए रखी थी यह शर्त 

पाकिस्तान के साथ नुसरत भारत में भी काफी मशहूर थे। उस समय वह राजकपूर के बुलाने पर एक ही बार में भारत आ गए थे, यहां पर उन्होंने कई बॉलीवुड फिल्मों में गाने कम्पोज किए। जब फिल्म कच्चे धागे के लिए उन्हें गाना कम्पोज करने के लिए कहा गया तो उन्होंने शर्त रख दी। शर्त यह थी कि वह म्यूजिक तभी कम्पोज करेंगे जब कम से कम एक गाना लता मंगेश्वर गाएंगी। इसके बाद लता व नुसरत दोनों ने मिलकर एक गाना भी गया। 

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