औरत के लिए मां बनना एक अलग ही अनुभव है जिसे हर औरत पाना भी चाहती है लेकिन कई बार कुछ मुश्किलों के चलते महिला मां नहीं बन पाती वहीं ऐसा भी माना जाता है कि अगर महिला की उम्र 45 से ऊपर हो गई है तो उसके लिए मां बनना काफी मुश्किल हो जाता है लेकिन हाल ही में ऐसा गलत साबित कर दिखाया है 74 साल की महिला ने जिन्होंने एक नहीं बल्कि जुड़वा बच्चों को जन्म दिया। जी हां, आंध्र प्रदेश के गुंटूर जिले में रहने वाली 74 वर्षीय वाई मंगायम्मा ने दो जुड़वा बच्चों को जन्म दिया।
दरअसल, यह मुमकिन हो पाया है आईवीएफ का सहारा लिया था। वह लगातार चिकित्सकों की निगरानी में रही और उन्होंने सिजेरियन ऑपरेशन के जरिए दो जुड़वा बच्चियों को जन्म दिया है। महिला के पति वाई राजा राव ने बताया कि शादी के कई सालों बाद भी वह संतानहीन रहे। इसके लिए उन्हें कई बार रिश्तेदारों के ताने भी सुनने पड़ते थे लेकिन फिर आईवीएफ तकनीक से उन्हें यह खुशी नसीब हो गई। 57 वर्षों बाद बच्चों की किलकारी सुनकर उनकी खुशी का ठिकाना न रहा।
तो चलिए आपको यह तकनीक बताते हैं जिसकी मदद से निःसंतान लोग भी संतान का सुख पा सकते हैं।
आईवीएफ यानि की टेस्ट ट्यूब बेबी तकनीक महिलाओं के लिए किसी वरदान से कम नहीं है। इस तकनीक में महिलाओं के गर्भाश्य में सामान्य से ज्यादा अंधिक अंडे बनाए जाते हैं। फिर सर्जरी से अंडों को निकाल कर कल्चर डिश में तैयार कर इन्हें पति के शुक्राणुओं के साथ मिलाकर निषेचन (Fertilization) के लिए लैब में 2-3 दिन रखा जाता है। इस प्रक्रिया के लिए अल्ट्रासाउंड का यूज किया जाता है। जांच के बाद भ्रूण को वापिस महिला के गर्भ में इम्प्लांट किया जाता है। IVF की प्रक्रिया में 2-3 हफ्ते का समय लग जाता है। बच्चेदानी में भ्रूण इम्प्लांट करने के बाद 14 दिनों में ब्लड या प्रेगनेंसी टेस्ट के जरिए इसकी सफलता और असफलता का पता चल जाता है।
70 प्रतिशत होते है महिला के मां बनने के चांसेज
40 से 44 उम्र की महिलाओं में गर्भधारण की क्षमता 10% से भी कम रह जाती है क्योंकि इस उम्र तक महिला के माहवारी अनियमित या बंद हो जाती है, जिसके बाद प्रेग्नेंसी मुश्किल होती है। वहीं अधिक उम्र में अगर कंसीव हो भी जाए तो गर्भपात का खतरा बना रहा है लेकिन फिर भी यह तकनीक बेहतरीन जरिया है। इससे महिला के मां बनने के संभावना करीब 70% तक होती है।
जहां माहवारी के बाद प्रेग्नेंसी के चांस ना के बराबर हो जाते हैं वहीं आईवीएफ के जरिए बंद माहवारी में भी मातृत्व को प्राप्त किया जा सकता है। पीरियड दवाइयों के जरिए एक बार फिर से शुरू किए जाते हैं या फिर डोनर एग/ आईवीएफ का सहारा लिया जा सकता है।
हैल्दी ही होते हैं बच्चे
कुछ लोगों को मानना है कि इस तकनीक द्वारा पैदा हुए बच्चे दूसरों के मुकाबले असामान्य होते हैं जबकि यह धारणा बिल्कुल गलत है। बच्चे का स्वस्थ होना मां की सेहत पर निर्भर करता है। IVF से जन्म लेने वाले बच्चे सामान्य बच्चों जितने ही हेल्दी होते हैं। इस तकनीक की मदद से बहुत सी महिलाओं को मां बनने का सुख मिला है।
आईवीएफ के बारे में लोगों की धारणाएं
कुछ लोग समझते हैं कि आईवीएफ प्रक्रिया में बच्चा आपका नहीं होता लेकिन यह गलत धारणाएं हैं। इसमें अंडा पत्नी और शुक्राणु पति के ही होते हैं। इस ट्रीटमेंट से पैदा होने वाला बच्चा पति-पत्नी का ही होता है।
IVF के बाद कुछ सावधानियां बरतना जरूरी
आईवीएक तकनीक के जरिए निसंतान दंपतियों को मां-बाप बनने का सुख मिलता है लेकिन इस प्रक्रिया के बाद कई तरह की सावधानियां बरतनी बेहद जरूरी है ताकि प्रक्रिया में किसी तरह की कोई रुकावट ना हो
-प्रेगनेंट होने के बाद इंटरकोर्स से बचें
-ज्यादा वजन ना उठाएं।
-बाथ टब से बाथ ना लें।
-हैवी व्यायाम करने से बचें
-अनहैल्दी चीजें खाने से बचें।
आईवीएफ विज्ञान का दिया खूबसूरत तोहफा है जो लोग बच्चे के सुख के लिए तरसते हैं।