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5 हजार से शुरू किया स्टिचिंग का बिजनेस, अब दूसरीं औरतों को भी दे रहीं काम

  • Edited By Anjali Rajput,
  • Updated: 17 Sep, 2020 01:46 PM
5 हजार से शुरू किया स्टिचिंग का बिजनेस, अब दूसरीं औरतों को भी दे रहीं काम

भारत भले ही चांद पर पहुंच गया हो लेकिन आज भी लोग महिलाओं को किचन और सिलाई-कढ़ाई के ही योग्य समझते हैं। मगर, किचन में खाना बनाने और सिलाई -कढ़ाई वाले हाथ जब घर से बाहर कदम रखते हैं तो पुरुषों को भी पीछे छोड़ जाते हैं। इसी मिसाल है रंजना कुलशेट्टी, जिन्होंने सिलाई-कढ़ाई के हुनर से ही खुद का बिजनेस खड़ा कर लिया।

पति की मदद के लिए शुरू किया काम

पुणे के देहरिगाओ गांव की रहने वाली रंजना कुलशेट्टी की शादी एक परिवार में हुआ जहां के सदस्य 'कामकाजी महिलाओं' के खिलाफ थे। रंजना ने अपनी आधी जिंदगी घरेलू कामों में बिता दी। उनके पति परिवार में अकेले कमाने वाले थे, जिसके कारण घर खर्च चलाने में मुश्किल आती थी। ऐसे में रंजना ने पति की आर्थिक मदद के लिए खुद पैसे कमाने का फैसला कर लिया।

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परिवार के सुनने पड़े तानें

हालांकि उनके ऐसा सोचने भर से उन्हें परिवार के ताने सुनने पड़े। यही नहीं, अपना विरोध जाहिर करते हुए उनके पति तो उन्हें सिलाई मशीन के साथ घर से बाहर निकालते थे लेकिन रंजना की जिद्द के आगे किसी की नहीं चली। इसके बाद कई फॉर्मल और इनफॉर्मल ट्रेनिंग सेशन लेने के बाद रंजना ने ब्लाउज सिलाई का काम शुरु किया।

ब्लाउज की सिलाई होने वाली कमाई से वह एक घर ले पाई। साथ ही वह इससे अपने 2 बच्चों की शिक्षा का समर्थन करने के लिए भी पैसे जुटा पाई। एक उद्यमी होना रंजना की जिंदगी में एक नया परिवर्तन लाया। उनका कहना है कि इस बिजनेस से सिर्फ उन्हें कौशल दिखाने का अवसर ही नहीं मिला बल्कि यह रंजना को चुनौतीपूर्ण समाज में रहने का आत्मविश्वास भी देता है।

बचत के पैसों से शुरू किया सिलाई का काम

वह डिजाइनिंग और सिलाई का पक्का कोर्स करना चाहती थी। ऐसे में उन्होंने एक स्थानीय बिजनेस वुमन मनीषा वर्मा के साथ चॉकलेट रैपर पर स्टिकर लगाने काम किया। 1Kg चॉकलेट पर स्टीकर लगाने के लिए उन्हें 2 रु मिलते थे। इससे उन्होंने 500 रु की बचत की। इसके बाद रंजना ने पुणे के वारजे गांव में ही एक दर्जी के यहां नौकरी की, जहां व हाथ से सिलाई का काम करती थी। प्रत्येक ब्लाउज की सिलाई पर उन्हें 1.5 रु मिलते थे। एक साल काम सीखने और पैसे जमा करने के बाद रंजना ने 1999 में खुद का बिजनेस शुरु किया।

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फाउंडेशन से ली मदद

रंजना ने महज 5000 रुपए से अपने बिजनेस की शुरूआत की थी। शुरूआत में वह एक ब्लाउज सिलने के 25 रु लेती थी। मगर, 2015 में उन्हें Amdoc की CSR में मन-देसी फाउंडेशन के बारे में पता चला जो महिला उद्यमियों को सपोर्ट करती थीं। उन्होंने रंजना को सीड फंडिंग के रूप में धन दिया। डेढ़ साल के लिए 20,000 रु का कर्ज लेने के बाद रंजना काम करने लगी। बचत करने के साथ उन्हें आधार और पैन कार्ड के जरिए 1,300 रु किस्त का भुगतान भी करना पड़ता था। इस दौरान उन्होंने बिजनेस रणनीति, डिजिटल मार्केटिंग, लक्ष्य योजना के बारे में जाना। आज, वह 8 सिलाई मशीनों की मालिक है और 3 महिलाओं की टीम के साथ अपना काम देखती हैं।

वॉल हैंगिंग, लैपटॉप बैग, प्लांट होल्डर्स बनाने में भी माहिर

इसके बाद उन्होंने ब्लाउज 250 में सिलना शुरू किया। इसके साथ ही वह कपड़े, मास्क और जूट प्रोडक्ट्स जैसे वॉल हैंगिंग, लैपटॉप बैग, प्लांट होल्डर्स बनाने शुरू किया। वह इन चीजों को पुणे के साथ महाराष्ट्र में भी बेचने लगी। साथ ही मन देसी की मदद से उनके प्रोडक्ट्स विदेशों में भी पहुंचे।

कोरोना काल में भी नहीं रुके कदम

हालांकि कोरोना के दौरान उन्हें काफी नुकसान झेलना पड़ा। वह अपनी प्रशिक्षण कक्षाओं का भी संचालन करने के लिए भी नहीं जा पा रही थीं। मगर, फिर भी वह कोरोना काल में मातोश्री वृद्धा आश्रम और दृष्टिबाधित छात्रों के साथ मिलकर रंजना ने वृद्धाश्रम के लिए मास्क बनाए। साथ ही उन्होंने करीब 80,000 मास्क बेचें, जिसकी कीमत सिर्फ 5 रु और 25 रु थी।

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