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देश की वो महिला IAS ऑफिसर, जिनकी नेत्रहीनता भी नहीं रोक पाई उनकी उड़ान

  • Edited By Sunita Rajput,
  • Updated: 06 Jul, 2018 05:45 PM
देश की वो महिला IAS ऑफिसर, जिनकी नेत्रहीनता भी नहीं रोक पाई उनकी उड़ान

कामयाबी के रास्ते पर चलते हुए अपनी शारीरिक कमजोरी को हिम्मत बना लेना किसी तारीफ से कम नहीं। अगर हौसले बुलंद हो तो कोई कमी होने पर भी कामयाबी को हासिल करने से कोई नहीं रोक सकता। हम आज जिस महिला एचीवर्स की बात कर रहे हैं वह हैं  देश की पहली दिव्‍यांग आईएएस अधिकारी प्रांजल पाटिल, जिन्होंने अपनी नेत्रहीनता को भी अपनी मंजिल के बीच नहीं आने दिया। आईएएस बन लोगों के सामने एक अलग मिसाल कायम की। 2017 में अपने संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा में 124वां रैंक हासिल करने के बाद प्रांजल ने केरल की एरनाकुलम की नई उप कलेक्‍टर का पदभार सम्‍भाला है। आपको बता दें कि प्रांजल पाटिल, केरल कैडर की पहली नेत्रहीन महिला आईएएस अधिकारी हैं। हालांकि उन्हें इस मुकाम को हासिल करने के लिए काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ा लेकिन उन्होंने खुद को कभी कमजोर नहीं होने दिया और सभी मुश्किलों का डटकर सामना किया। शायद यहीं वजह है कि आज प्रांजल पाटिल इतने बड़े पद्य पर मौजूद हैं।

 


प्रांजल, तब सिर्फ छह साल की थी जब उनकी आंख खराब हो गई थी। दरअसल, प्रांजल के एक क्लॉसफेलो ने उनकी आंख में पेंसिल मालकर उन्हें घायल कर दिया था, जिस वजह से प्रांजल की एक आंख की रोशनी हमेशा के लिए चली गई लेकिन बदकिस्मती ने उनकी दूसरी आंखों की दृष्टि लेकर ही सांस लिया। प्रांजल के माता-पिता ने कभी नेत्रहीनता को उनकी शिक्षा के बीच नहीं आने दिया। उन्होंने इसके बाद प्रांजल को नेत्रहीनों के लिए बने स्कूल में भेजा, जहां से प्रांजल ने 10वीं और 12वीं की परीक्षा काफी अच्छे नंबरों से पास की। इतना ही नहीं, उन्होंने 12वीं में पहला स्थान हासिल किया।

 

साल 2016 में अपने पहले प्रयास में संघ लोक सेवा आयोग के एग्जाम में उन्होंने 733वां रैंक हासिल किया था। प्रांजल को उस समय भारतीय रेलवे लेखा सेवा (आईआरएएस) में नौकरी का ऑफर दिया गया था, लेकिन ट्रेनिंग के दौरान रेलवे मंत्रालय ने उन्हें नौकरी देने से इंकार कर दिया, जिसकी वजह उन्होंने प्रांजल की नेत्रहीनता को बताया। इसके बाद प्रांजल ने यूपीएससी का एग्जाम पास किया और 124वां रैंक हासिल करके एरनाकुलम की उप कलेक्‍टर बनी। 

 


एग्‍जाम की चुनौतियों के बारे में प्रांजल ने बताया 'ये सिर्फ मेरे लिए ही नहीं, हर किसी के लिए चुनौतीपूर्ण होता है। परीक्षा की तैयारी के लिए सही कंटेंट और उसकी उपलब्धता ही असल चुनौती है। मेरे लिए मेरा पेपर लिखने वाला एक भरोसेमंद लेखक ढूंढ़ना भी किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं था।'प्रांजल का कहना है कि उनकी कामयाबी के पीछे माता-पिता के अलावा उनके पति का भी योगदान है, जिन्होंने हर कदम पर उनका साथ दिया। 

 


उप कलेक्‍टर बनने के बनने के बाद अब प्रांजल का लक्ष्‍य कम से कम समय में कई मलयालम शब्दों को सीखना है। प्रांजल का कहना है कि सफलता मिलने में समय लग सकता है, लेकिन हमें इस बीच हार नहीं माननी चाहिए। 
 

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