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पति के मरने के 57 बाद अम्मा ने उतारी अपनी मांग, दिल छू लेगी वजह

  • Edited By Sunita Rajput,
  • Updated: 06 Mar, 2019 05:51 PM
पति के मरने के 57 बाद अम्मा ने उतारी अपनी मांग, दिल छू लेगी वजह

अगर आज हम आपने घरों में सुरक्षित बैठे हैं तो इसका पूरा श्रेय हमारी भारतीय सेना को जाता है। मगर क्या आपने कभी सोचा है कि उनका भी परिवार होगा, जो बॉर्डर पर बैठकर हमारी रक्षा कर रहे हैं। जब सीमा पर कोई जवान शहीद होता है लोग भी कुछ दिनों में भूल जाते हैं। जरा सोचिए, जवान शहीद के परिवार पर क्या बीतती होगी, जो हर पल इस एहसास के साथ जीते हैं। आज हम आपको ऐसे ही एक शहीद जवान के परिवार की कहानी बताने जा रहे हैं, जिनकी पत्नी ने उनके मरने की खबर सुनने के बाद भी मांग का संदूर नहीं हटाया। 

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जी हां, बात हम राजस्थान के जोधपुर में पीपाड़ तहसील खांगटा गांव में रहने वाली महिला गट्टू देवी की कर रहे है जिन्होंने पति के शहीद होने के कई साल बाद सुहाग की निशानी उतारी। दरअसल, गट्टू के पति भीकाराम ताडा भारतीय सेना में थे जो 1962 में हुई भारत-चीन जंग में शहीद हो गए थे। आपको जानकर हैरानी होगी कि गट्टू देवी ने पति के शहीद होने के 57 साल सुहाग की निशानी नहीं उतारी। दरअसल, गट्टू के पति 1962 की जंग में शहीद हुए लेकिन उनकी बॉडी नहीं मिली। ऐसे में वो कैसे मान लेेती कि उनके पति जिंदा नहीं है। बस इसी उम्मीद में वह 57 साल तक सुहागन की तरह जिंदगी जीती आईं।

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57 साल बाद उतारी सुहाग की निशानी

मगर 27 फरवरी 2019 के दिन गुट्टू देवी ने अपने खांगटा गांव में पति भीकाराम की एक मूर्ति का अनावरण किया। जैसे ही वो मूर्ति के पास पहुंची, उनकी आंखों से आंसू निकल आए। फिर उन्होंने खुद को संभाला और सिर का बोर (मांग टीका) उतारकर पति के चरणों में रख दिया। 

 

सुने लोगों के ताने लेकिन नहीं मानी गट्टू

57 साल पहले जब गट्टू देवी ने सुहागन की तरह रहने का फैसला किया, तब गांव वालों ने उन्हें कई बार ताने मारे लेकिन उन्होंने सबकुछ सहन किया और सुहागन की तरह हिम्मत से रहीं। इस बीच बच्चों को उनके पिता के किस्से सुनाकर देशभक्ति की भावना उनके मन में जगाई। 

 

सुहागन की तरह जीने की वजह

इतने साल तक अपने पति को जिंदा मानकर सुहागन की तरह रहने के पीछे 2 कारण थे। पहला कहा जाता है कि शहीद अमर हो जाते हैं, दूसरा 50-60 साल समय साल पहले कई बार तो शहीदों का पार्थिव शरीर उनके घर तक पहुंचता ही नहीं थी। ऐसे ही भीकाराम का शरीर भी इनके घर तक नहीं पहुंच पाया था। गट्टू देवी ने कहा कि जब उनके पति का शरीर घर आया ही नहीं, तो वो ये कैसे मान लें कि उनके पति अब जिंदा नहीं हैं। इसलिए वो इतने साल तक सुहागन की तरह रहती रहीं।

 

बखूबी निभाई पिता की जिम्मेदारी 

पति के जिंदा होने की उम्मीद के साथ पिता का फर्श भी बखूबी निभाया। अपने बच्चों को उनके पिता के वीरता के किस्से सुनाए और उन्हें अच्छे से पढ़ाया-लिखाया। आज उनका एक बेटा आर्मी ऑफिसर, दूसरा नेवी में है। इतना ही नहीं उनका पोता भी भारतीय सेना मेें फर्ती है। 

 

सभी फर्ज निभाकर गांव में स्थापित की शहीद पति की मूर्ति

जब गट्टू देवी को लगा कि उन्होंने सारे फर्ज निभा लिए हैं, तब अपने पति को शहीद मानते हुए उनकी मूर्ति गांव में स्थापित करने का फैसला किया।

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