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Women Power: सैनेटरी पैड बनाने वाली स्नेहा को मिला ऑस्कर अवॉर्ड, कभी सुने थे लोगों के ताने

  • Edited By Sunita Rajput,
  • Updated: 27 Feb, 2019 04:05 PM
Women Power: सैनेटरी पैड बनाने वाली स्नेहा को मिला ऑस्कर अवॉर्ड, कभी सुने थे लोगों के ताने

हाल ही में अमेरिका के कैलिफॉर्निया के डॉल्‍बी थिएटर में हॉलीवुड के 91वें Oscar Awards 2019 हुआ जिसमें हॉलीवुड की कई हसीनाओं को सम्मानित भी किया गया। वहीं, भारत की एक शॉर्ट डॉक्यूमेंट्री फिल्म ने भी ऑस्कर अवॉर्ड अपने नाम किया। जी हां, फिल्म 'पीरियड : द एंड ऑफ सेंटेंस' को 'डॉक्यूमेंट्री शॉर्ट सब्जेक्ट' श्रेणी में ऑस्कर अवॉर्ड मिला है। क्या आप जानते है फिल्म में अहम किरदार निभाने वाली स्नेहा पेशे से एक्ट्रेस नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश के छोटे से गांव की रहने वाली साधारण लड़की हैं जिसकी जिंदगी इस एक फिल्म ने बदल डाली। चलिए जानते है आखिर स्नेहा को यह फिल्म कैसे और कब मिली। साथ ही जानते है उनकी जिंदगी से संघर्ष की कहानी।

 

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सैनेटरी पैड बनाकर जमा की कोचिंग फीस

आपको बता दें कि फिल्म की कहानी और कलाकार दोनों ही भारत के हैं। स्नेहा ने बताया कि डॉक्यूमेंट्री में जिस संस्था के बारे में दिखाया गया है वह उसमें काम करती थीं। दरअसल, स्नेहा पुलिस ऑफिसर बनना चाहती थी जिसकी तैयारी के लिए उन्हें पैसों की जरूरत थी। ऐसे में उन्होंने गांव काठी खेड़ा में सैनेटरी पैड बनाने वाली यूनिट में काम करना शुरू किया। काम के बदले में मिले पैसों से वो कोचिंग की फीस जमा करती थी।

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पिता से छुपाकर किया संस्था में काम  

इस संस्था से जब पैड बनाने के काम का ऑफर मिला तो मेरे दिमाग में यही था कि इन पैसों से अपनी कोचिंग की फीस जमा कर दूंगी। मां को तो सही-सही बता दिया, लेकिन पिता को बताया कि बच्चों के डायपर बनाने का काम करना है। उन्होंने बताया कि मेरे इस काम के कारण मुझे गांव की महिलाओं के ताने भी सुनने को मिले। उनके ताने सुनकर मुझे भी कभी-कभी अजीब लगने लगता था लेकिन सच तो यहीं था कि हम महिलाओं की बेहतर जिंदगी के लिए प्रयास व खुद की जरूरतें पूरी कर रहे थे। मुझे खुशी है कि गांव की लगभग 70% महिलाएं पीरियड्स पर खुलकर बात करती हैं।  

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तनाव का भी करना पड़ा था सामना

जब स्नेहा से पूछा गया कि उन्हें कभी डिप्रेस महसूस हुआ है तो उन्होंने बताया,  'बिल्कुल, मैं सुबह उठकर घर की साफ-सफाई करती हूं। जानवरों को चारा देना, फिर मंदिर जाना और अपनी पढ़ाई और प्रैक्टिस करना। साथ ही संस्था का भी काम करती हूं लेकिन जब पिछले साल दिल्ली पुलिस में भर्ती नहीं हो पाई, तब बहुत दुख हुआ।  तब पिता ने मुझे संभाला। तब तक मेरी मां ने उन्हें बता दिया था कि मैं संस्था में क्या काम करती हूं? इसके बावजूद उन्होंने मुझे मोटिवेट किया और मुझे संस्था के साथ बने रहने का हौसला दिया।'

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संस्था में काम करते हुए मिला फिल्म का ऑफर 

उन्होंने बताया, 'संस्था से जुड़ने की वजह से डायरेक्टर की नजर मुझपर गई। फिर उन्होंने मुझे फिल्म में काम करने का ऑफर किया, पहले तो मुझे काफी शर्म आई लेकिन बाद में मैंने सोचा कि जब आगे बढ़ना है तो शर्म क्यों करूं।' स्नेहा ने बताया कि फिल्म में उनकी रियल लाइफ को दिखाया गया है।
 

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