यहां खुद से मिले जमाना हो गया
और लोग कहते हैं कि हमें भुल गए हो तुम।
शायरी का दूसरा नाम गुलजार साहब, उनकी कविताएं-शायरी लोगों के दिलों में इस कद्र बसी है कि जब तक जहान है उनके जादुई शब्द भी जहन में जिंदा रहेंगे। आज गुलजार साहब का जन्मदिन है। वो शख्स जिन्होंने जिंदगी में बहुत से उतार-चढ़ाव देखें। उनकी जिंदगी से जुड़े बहुत से किस्से ऐसे हैं जो आपके लिए अनसुने होंगे। चलिए, आज उन्हीं किस्सों के बारे में आपको बताते हैं।
सिख परिवार से ताल्लुक रखने वाले गुलजार साहब का असली नाम संपूर्ण सिंह कालरा है लेकिन प्रोफेशनली लोग उन्हें गुलजार के नाम से ही जानते हैं। उन्होंने कवि, गीतकार, लेखक और फिल्म डायरेक्टर के रूप में हिंदी सिनेमा में पहचान बनाई। अपने करियर की शुरुआत में उन्होंने म्यूजिक डायरेक्टर एस.डी. बर्मन के साथ फिल्म बंदिनी में गीतकार के रूप में काम किया। करियर की बुलंदियों को छूते हुए उन्होंने 5 नेशनल फिल्म अवाॅर्ड, 22 फिल्मफेयर अवाॅर्ड, साहित्य अकादमी अवाॅर्ड, पद्मश्री और दादा साहेब फाल्के अवाॅर्ड सम्मान प्राप्त किया। 2010 में उन्हें 'स्लमडॉग मिलेनियर' के गाने 'जय हो' के लिए ग्रैमी अवॉर्ड भी मिल चुका है लेकिन यहां तक पहुंचना उनके लिए इतना आसान नहीं था।
झेलम जिले के दीना गांव में जन्मे थे गुलजार
18 अगस्त 1934 में बंटवारे से पहले पंजाब में झेलम जिले के दीना गांव में उनका जन्म हुआ जो आज पाकिस्तान में है। बंटवारे के बाद उनका परिवार पंजाब के अमृतसर में आकर बस गया। गुलजार शुरू से ही लेखक बनना चाहते थे इसीलिए तो परिवार की मर्जी के खिलाफ वो मुंबई पहुंचे। हालांकि उनका झुकाव म्यूजिक की तरफ भी रहा लेकिन उनके पिता और भाई को गुलजार साहब का लिखना भी पसंद नहीं था। उन्हें लगता था कि गुलजार साहब बस समय की बर्बादी कर रहे हैं इसलिए वो डांट से बचने के लिए पड़ोसी के घर जाकर लिखने की प्रैक्टिस करते थे।
रोजी-रोटी के लिए किया गैराज में मैकेनिक का काम
मुंबई जाकर रोजी-रोटी के लिए वह एक गैराज में मैकेनिक के तौर पर काम करने लगे जब तक लोग उन्हें गुलजार के रूप में जानने नहीं लगे वह गैराज में ही काम करते रहे। वहां वह एक्सीडेंटल गाड़ियों की खंरोंचों पर होने वाले पेंट का रंग तैयार करने का काम करते थे क्योंकि गुलजार की रंगों को लेकर समझ अच्छी थी। वह इस काम को बखूबी करते थे साथ ही अपने शौक जी रहे थे। मुंबई में रहते हुए गुलजार साहब निर्देशक बिमल रॉय, ऋषिकेश मुखर्जी और संगीतकार हेमंत कुमार के साथ सहायक के तौर पर काम करने लगे। इसके बाद उन्हें बिमल रॉय की फिल्म 'बंदिनी' के लिए पहला गाना लिखने का अवसर मिला और यह गाना था- 'मोरा गोरा अंग'। यह गाना खूब पसंद किया गया और इसने गुलजार साहब की किस्मत के दरवाजे खोल दिए। फिर उन्होंने पीछे मुड़ कर नहीं देखा। इस फिल्म की सफलता के बाद बिमल दा ने गुलजार साहब को एक असिस्टेंट के तौर अपने पास रख लिया था।
जिंदगी का एक किस्सा और उनसे जुड़ा है जब उन्होंने 5 सालों तक अपने पिता की अस्थियों को बचा कर रखा था। हाउसफुल: द गोल्डन ईयर्स ऑफ बॉलीवुड किताब में उन्होंने इस बात का जिक्र किया था कि जब उनके पिता का निधन हुआ था, उस समय वो मुंबई में थे। 2 दिन बाद उन्हें इस बात की जानकारी हुई थी। उनके भाई तो फ्लाइट से दिल्ली चले गए थे लेकिन टिकट के पैसे ना होने के कारण उन्होंने ट्रेन पकड़ ली थी, जिस कारण वह 24 घंटे की देरी से पहुंचे जब वो दिल्ली पहुंचे थे तब तक उनके भाई, पिता का अंतिम संस्कार कर चुके थे तब गुलजार साहब ने अपने पिता की अस्थियां को बचाकर रख लिया था। जब 5 साल बाद उनके करीबी बिमल दा का निधन हुआ तब उन्होंने बिमल दा के साथ अपने पिता की अस्थियों को विसर्जित किया था।
गुलजार को सताती थी बचपन की यादें
गुलजार का बचपन पाकिस्तान में बीता था, वह 8 साल के थे लेकिन वह अपने बचपन घर और गलियों को एक बार फिर देखना चाहते थे। अपनी इसी ख्वाहिश को पूरा करने के लिए गुलजार साहब साल 2015 में पाकिस्तान गए। पाक से लौटे गुलजार ने अपने अनुभव भी शेयर किए थे कि वह बस एक कोने में बैठकर रोना चाहते थे। उन्होंने अनुभव करते हुए कहा कि, उस समय मेरा कुछ पल अकेले रहने का मन था लेकिन जब लोग आपको जानते हो तो ये आपके लिए कई बार अड़चन भी बन जाता है क्योंकि लोगों की भीड़ आपके आसपास हो तो आप वो गली कैसे देखेंगे, भीड़ हटती तो पूरी गली देखता।
तेरा बाप आता था तो किराए के 5 रुपए लेता था...
इस बारे में उन्होंने आगे कहा था, 'पाकिस्तानी लोग बहुत अच्छे थे। उन्होंने मुझे मेरा घर अंदर से देखने दिया। कुछ बुज़ुर्ग वहां मिले। कुछ तो मेरे परिवार वालों को जानते भी थे। एक मेरे बड़े भाई को जानते थे, एक को मेरी बहन का नाम पता था और एक को मेरी मां का नाम भी याद था। यही नहीं एक बुज़ुर्ग तो मेरे मामा को भी जानते थे। उन्होंने मेरे कई ऐसे रिश्तेदारों के बारे में भी पूछा जिनके बारे में हमें ही पता नहीं था कि वो अब कहां जाकर बस गए। इसी के साथ गुलजार साहब ने एक और बात साझा की और कहा ‘वहां मौजूद लोगों में एक ने पंजाबी में हंसकर बोला, ‘तेरा बाप आता था तो किराए के 5 रुपए लेता था अब मालिक मकान तू है और यहां आया है तो पांच रुपए ले जा।‘
गुलजार साहब ने कहा था कि ये सब सुनकर और देखकर उनका मन इतना भर आया कि वह वहां से बिना कुछ खाए चले गए। लोगों ने बहुत इंतजाम भी किए थे लेकिन उस वक्त उनका कुछ खाने का मन नहीं था और वह वहां से निकल गए। बता दें कि गुलजार साहब के इसी कदम को बाद में लोगों ने बुरा बर्ताव बताया था।
पर्सनल लाइफ की बात करें तो बॉलीवुड में काम के दौरान गुलजार की मुलाकात फिल्म अभिनेत्री राखी से हुई। दोनों ने एक दूसरे से शादी भी की और दोनों की एक बेटी हुई, जिनका नाम मेघना गुलजार है। मेघना भी बॉलीवुड की जानी-मानी डायरेक्टर व प्रोड्यूसर हैं। हालांकि राखी और गुलजार की शादी लंबी नहीं चली। कहा जाता है कि शादी के कुछ सालों बाद ही वह अलग हो गए। गुलजार चाहते थे कि राखी फिल्मों में काम ना करें लेकिन राखी काम करना चाहती थी जिसके चलते उन्होंने राखी पर हाथ उठाया था जिसके बाद दोनों के रास्ते अलग हो गए हालांकि 4 दशकों से अलग रहते हुए भी दोनों का तलाक नहीं हुआ। बता दें कि अप्रैल 2013 में, गुलजार साहब को असम यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर के रूप में नियुक्त किया गया था।