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बहू से पहले बेटी है वो, फिर मायके जाने में इजाजत क्यों?

  • Edited By Anjali Rajput,
  • Updated: 11 Oct, 2020 12:29 PM
बहू से पहले बेटी है वो, फिर मायके जाने में इजाजत क्यों?

शादी के बाद लड़कियों की जिंदगी पूरी तरह बदल जाती है। हर लड़की को शादी के बाद अपनी पुरानी आदतों के साथ माता-पिता को पीछे छोड़ नए घर में जाना पड़ता है। घर की नई जिम्मेदारियां धीरे-धीरे उनकी आदत बन जाती है और घर के जिम्मेदारियों के कारण उसे मायके जाने का भी समय नहीं लगता। वहीं कुछ ससुराल वाले ही अपनी बहू को मायके नहीं जाने देते। मगर सवाल यह है कि आखिर ऐसा क्यों होता है? क्या शादी के बाद लड़की के माता-पिता उसके लिए सचमुच पराए हो जाते हैं? क्या नए रिश्तों में बंधकर पुराने रिश्तों को भुलाना सही है? क्या बहू होने से पहले आप एक बेटी नहीं है। ससुराल वालों के साथ माता-पिता का सम्मान और उन्हें अपनी बेटी से मिलने का भी हक है लेकिन जरूरत है कि लड़कियां इस बात समझें।

 

बहू से पहले वो बेटी है

हमारे समाज को यह समझने की जरूरत है कि आपके घर की बहू पहले किसी की बेटी है। अगर ससुराल वाले बहू को मायके जाने से रोकते हैं तो वह यह जरूर सोचे कि वो पहले बेटी है और यह उसकी जिम्मेदारी बनती हैं कि वो अपनेे मां-बाप का ख्याल रखें।

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लेकिन हमारे समाज में आज भी लोग इस बात को समझ नहीं रहे हैं और लड़कियों के साथ परायों जैसा व्यवहार हो रहा है आज भी बहुत से कामों के लिए उसे घर वालों की अनुमति लेनी पड़ती है, वहीं बेटी की मां-बाप को भी बहुत सी बातों को लेकर समझौता करना पड़ता है जो कि गलत है। जैसे कि...

लड़का-लड़की दोनों सामान

भारतीय समाज में लड़कियों के साथ होने वाले इस व्यवहार का सबसे बड़ा कारण है लड़के-लड़की के बीच असमानता। यही वो मूल कारण है जो भारतीय समाज में कई मुद्दों को जन्म देता है जबकि विदेशों में लड़के और लड़की के बीच कोई भेदभाव नहीं किया जाता।

अरेंज मैरिज में होती है सबसे ज्यादा मुश्किल

अरेंज मैरिज में लड़के के परिवार वाले शादी के दिन को लड़की के घरवालों से गिफ्ट और दहेज ले लेते हैं लेकिन शादी के बाद वही परिवार उनके लिए बुरा हो जाता है। वह ना तो खुद उनसे मिलने जाते हैं और ना ही लड़की को अपने परिवार वालों से मिलने की अनुमति देते हैं।

बेटी का मां-बाप से मिलने का समझौता 

भारतीय समाज में लड़के के माता-पिता तो बहू के ससुराल में कभी भी जाकर रह सकते हैं लेकिन लड़की के माता-पिता को इस बात की अनुमति नहीं होती। वह खुद भी लड़की के घर जाकर रहना सही नहीं मानते। ऐसे में लड़की का फर्ज बनता है कि वह समय-समय पर माता-पिता से मिलती रहे।

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अगर विदेश में हो लड़की की शादी...

अगर लड़की की शादी विदेश में हो जाए तो समझ लें कि वह 4-5 साल तक अपने पेरेंट्स से नहीं मिलेगी लेकिन यह लड़की का ही फर्ज है कि समय-समय पर ना सिर्फ माता-पिता की खबर लें बल्कि उनसे मिलने भी आती रहे। जिस तरह दादी-दादा को अपने पोते-पोतियों के साथ खेलने का हक है उसी तरह नाना-नानी को भी अपने नाती-नातियों को देखने का भी है।

लड़कियों से ज्यादा लड़कों को पसंद करते हैं लोग

लड़की के माता-पिता भारतीय समाज में बहुत पीड़ित हैं। शायद इसलिए लोग लड़कों को पसंद ज्यादा करते हैं क्योंकि वो विदाई के बाद अपनी बेटी से जुदाई बर्दाश्त नहीं कर पाते। वहीं बहू के साथ होने वाले अत्यचारों के कारण लोग सोचते हैं कि काश उन्हें बेटा हुआ होता। कई बार विवाहित बेटी अपने माता-पिता से अपनी पीड़ा छिपाती है और दिखावा करती है कि वह खुश है। वह अपने अकेलेपन को छुपाती है क्योंकि वह अपने माता-पिता को दुखी नहीं करना चाहती है।

आखिर क्यों बहू को नहीं समझ सकते बेटी?

क्या कभी किसी ने सोचा है कि हम 'बहू' जैसे शब्द के साथ कैसे आए? हालांकि बेटियां भी बदल रही हैं और वे अपने ससुराल वालों को माता-पिता की तरह मान नहीं दे रही हैं। मगर सवाल यह है कि इन सीमाओं को आखिर धक्का दिया किसने है? इस आक्रामक रुख के पीछे क्या कारण है? कहीं न कहीं इसके जिम्मेदार हम खुद भी है क्योंकि यह स्थिति हमने खुद बनाई है।

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हम इन सभी नियमों को क्यों नहीं ढाल सकते और एक दूसरे के साथ खुशी से रह सकते हैं? हम एक ही सम्मान के साथ लड़की के माता-पिता के साथ ऐसा व्यवहार क्यों नहीं कर सकते हैं जो हम किसी लड़के के माता-पिता के साथ करते हैं? आज सबको सोचने की जरूरत है कि अगर हम इन छोटी चीजों को नहीं बदल सकते हैं तो अपने आसपास और समाज में बड़े बदलाव कैसे ला सकते हैं?

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