25 अक्टूबर यानि रविवार के दिन पूरे भारतवर्ष में दशहरे का त्यौहार मनाया जाएगा। हालांकि कोरोना काल के चलते इस बार दशहरा मनाने की मनाही है, ताकि भीड़ इकट्ठी ना हो लेकिन फिर भी लोग अपने घर में ही मिठाइयां खाकर इस दिन को सेलिब्रेट करेंगे। कहा जाता है कि इसी दिन भगवान राम ने लंकाधिपति रावण का वध किया था। वहीं, मां दुर्गा ने इसी दिन महिषासुर का संहार कर बुराई पर अच्छाई की वियज प्राप्त की थी। इसके चलते इस दिन को विजयदशमी भी कहा जाता है। जहां इस दौरान रावण के पुतले को जलाकर लोग अपनी खुशी मनाते हैं वहीं इस दिन जलेबी खाने का रिवाज भी काफी प्रचलित है। मगर क्या आप जानते हैं कि इस दिन सिर्फ जलेबी ही क्यों खाई जाती है?
दशहरे पर क्यों खाई जाती है जलेबी?
दशहरे के दिन जलेबी खाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। पुरानी कथाओं की मानें तो भगवान राम को शश्कुली नाम की मिठाई काफी पसंद थी, जिसे अब जलेबी कहा जाता है। यही कारण है कि रावण दहन के बाद लोग जलेबी खाकर खुशी मनाते हैं।
यह है दशहरे की कहानी
यह त्योहार भगवान श्री राम की कहानी बताता है, जिन्होंने 9 दिन तक लगातार चले युद्ध के बाद लंकाधिपति रावण को मार गिराया और माता सीता को उसकी कैद से मुक्त कराया था। इसी दिन मां दुर्गा ने महिषासुर का संहार किया था। ऐसे में यह दिन विजयदशमी के रूप में मनाया जाता है। साथ ही, मां दुर्गा की पूजा भी की जाती है।
यह है दशहरा का अर्थ
दशहरा को बुराई पर अच्छाई की जीत प्रतीक माना जाता है। ऐसे में इसे विजयादशमी या आयुध-पूजा भी कहते हैं। यह भगवान राम की रावण पर जीत व मां दुर्गा द्वारा महिषासुर के संहार के दिन के रूप में मनाया जाता है।
बस्तर का दशहरा है सबसे खास
वैसे तो भारत में हर जगह ही दशहरे का त्यौहार धूम-धाम से मनाया जाता है लेकिन छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले का दशहरा सबसे खास होता है। दरअसल, बस्तर में 75 दिनों तक दशहरे का त्यौहार सेलिब्रेट किया जाता है, जिसके आखिर के 15 दिन सबसे खास होते हैं। खास बात तो यह है कि यहां का दशहरा राम-रावण कथा से संबंधित न होकर मातृशक्ति से जुड़ा हुआ है।
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