इस महीने की शुरुआत से ही लोग होली का बेसब्री से इंतजार करते हैं। देश के कुछ शहरों में होली के त्यौहार के आने से 15 दिन पहले ही होली खेलना लोग शुरू कर देते हैं। इन जगहों में सबसे ज्यादा चर्चा मथुरा, वृंदावन, बरसाना और नंदगांव की होली की होती है। मगर, आज हम आपको एक ऐसी होली के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां के बारे में आपने कम ही सुना होगा। जी हां, हम बात कर रहे हैं भभूत की होली की। यह होली वाराणसी में खेली जाती है। यह आम होली से अलग होती है। इस होली की परंपरा वाराणसी के विश्वनाथ मंदिर में सदियों से निभाई जा रही है। आइए हम आपको बताते हैं भभूत होली से जुड़ी कुछ दिलचस्प बातें-
क्यों खेली जाती है ‘भभूत की होली’
‘भभूत की होली’ को भष्म होली भी कहते हैं। यह होली केवल वाराणसी में खेली जाती है। वाराणसी में इस दिन को रंगभरी एकादशी भी कहा जाता है। इस दिन काशी विश्वनाथ मंदिर में भगवान शिव का विशेष श्रृंगार किया जाता है और माता पार्वती को भी सजाया जाता है। प्राचीन कथा के अनुसार इस दिन मां पार्वती का गौना होता है। महाशिवरात्री के बाद भगवान शिव इसी दिन माता पार्वती का गौना करवाने जाते हैं। इस दिन पूरे बाजे गाजे के साथ भगवान शिव की बारात निकलती है और भगवान शिव के भक्त ‘भभूत की होली’ खेलते हैं।
क्या होता है खास
वाराणसी में यह दिन बेहद खास होता है। हर ओर से ‘जय बाबा भोलेनाथ’ के जयकारे की गूंजे आती हैं। फिजाओं में भांग और भस्म की सोंधी खुशबू घुल जाती है। रंगों से परे इस होली में हर भक्त भस्म से सराबोर होता है। मंदिर के महंत बाबा विश्वनाथ जी की आरती करते हैं और फिर उनकी बारात निकलती है। बारात में भस्म के साथ-साथ भक्त लोग अरबी गुलाल उड़ा कर नाचते हुए देवी पार्वती को लेने जाते हैं। इसके बाद शाम के समय गर्भगृह में विशेष आरती होती है।
आंवला एकादशी
इस दिन को आमलकी एकादशी भी कहा जाता है। इस दिन आंवले के पेड़ की पूजा की जाती है। दरअसल, भगवान विष्णु ने आंवले के पेड़ की उत्पत्ती की थी। इसी पेड़ से भगवान ब्रह्मा उत्पन्न हुए थे और उन्होंने सभी जीव जन्तु बनाए थे। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन अन्नपूर्णा देवी की मूर्ति के दर्शन किए जाते हैं। इससे घर में कभी अन्न की कमी नहीं होती।
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