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बंगला साहिब की रसोई नहीं देखती जात-पात, भर रही हजारों भूखों का पेट

  • Edited By Anjali Rajput,
  • Updated: 08 Jul, 2020 05:09 PM
बंगला साहिब की रसोई नहीं देखती जात-पात, भर रही हजारों भूखों का पेट

कोरोना काल में हर किसी को अपने घरों में कैद होना पड़ गया था, जिसका सबसे ज्यादा असर गरीबों पड़ा। घर में कुछ खाने के लिए ना होने की वजह से गरीब लोगों को लॉकडाउन में काफी मुसीबतें झेलने पड़ी। ऐसे में गरीब लोगों के लिए मसीहा बनकर सामने आई बंगला साहिब की रसोई।

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भर रही हजारों भूखों का पेट

दरअसल, कोरोना काल में जब हर किसी ने अपने दरवाजे बंद कर लिए थे, तब हजारों भूखों का पेट भर रही थी दिल्ली के बंगला साहिब गुरुद्वारे की रसोई। यही नहीं, लॉकडाउन खत्म होने के बाद भी गुरुद्वारा कमेटी के मेंमबर्स लोगों की सेवा में लगे हुए है।

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40,000 लोगों का बनता है खाना

बता दें कि यहां 40 लोग रोजाना करीब 40,000 लोगों का खाना बनाते हैं। वहीं, बाकी 20 लोग इन्हें गरीबे, बेसहारा व भूखे लोगों तक बांटने का काम करते हैं। वैसे आम दिनों में भी यहां लंगर की सेवा मौजूद होती है लेकिन कोरोना काल की वजह से गुरुद्वारा कम्यूनिटी ने खाने के इंतजाम बढ़ा दिए। यही नहीं, बाढ़,भूकंप या कोई और प्राकतिक आपदा के समय भी गुरुद्वारे के सेवक तुरंत मदद के लिए पहुंच जाते है।

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रोजाना बनती हैं 1.5 क्विंटल रोटियां

लंगर प्रभारी ने बताया कि यहां खाने बनाते समय सभी प्रोटोकॉल का पालन किया जाता है रोटी बनाने के लिए ऑटोमैटिक मशीन भी है, जिसमें से हर घंटे 1.5 क्विंटल रोटियां तैयार की जाती है। वहीं, खाना बनाने के लिए बड़े बर्तनों का इस्तेमाल किया जाता है, ताकि भोजन की कमी ना हो ज्यादा से ज्यादा लोगों का पेट भर सके और कोई भूखा ना रहे।

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 25 मार्च से घर नहीं गए सेवन

यही नहीं, सेवक 25 मार्च से ही गुरुद्वारे के गेस्ट हाउस में रुके हुए हैं, ताकि समय बचाया जा सके। लॉकडाउन के बाद से ही वह अपने परिवार से नहीं मिले। सेवक सामुदायिक रसोई में 18-18 घंटे काम करते हैं, जो सुबह 3 बजे से सुबह 9 बजे तक चलता है। इसके बाद लोगों तक खाना पहुंचाने का काम किया जाता है।

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कोरोना काल के इस मुश्किल दौर में जिस तरह गुरुद्वारा भूखे लोगों का पेट भर रहा है, वो वाकई काबिले तारीफ है।

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