अमिताभ बच्चन के गेम शो 'कर्मवीर स्पेशल एपिसोड' केबीसी में समाज सेविका सिंधुताई सपकाल ने हिस्सा लिया। अमिताभ खुद खड़े होकर ना सिर्फ उनका स्वागत किया बल्कि उनके पैर भी छुकर उन्हें हॉट सीट पर बैठाया। आज लाखों बच्चों के लिए सहारा बन चुकी सिंधुताई को कभी अपनी रातें श्मशान में गुजारनी पड़ी। जब उन्होंने अपनी कहानी सुनाई तो सभी के आंखों से आंसू छलक आए। चलिए आपको बताते हैं सिंधुताई का मामलू औरत से मदर टेरेसा बनने तक का सफर...
अनाथों की 'मदर टेरेसा' है सिंधुताई
एक महिला के 3 या 4 बच्चे हो सकते हैं लेकिन सिंधुताई सपकाल एक या दो नहीं बल्कि 1400 बच्चों की मां है। सिंधु ताई सपकाल को महाराष्ट्र की 'मदर टेरेसा', 'अनाथों की मां सिंधुताई' कहा जाता है। सिंधु ताई एक ऐसी मां हैं, जिनके आंचल में एक-दो नहीं, बल्कि हजारों बच्चे दुलार पाते हैं।
10 साल की उम्र में शादी
पुणे (महाराष्ट्र) की सिंधुताई सपकाल ने अपने दम पर जो हासिल किया, वह कल्पना से परे है। इनका जन्म 14 नवंबर 1948 को वर्धा (महाराष्ट्र) के पिपरी गांव में हुआ था। पिता को छोड़ सिंधु को कोई पसंद नहीं करता था क्योंकि वह लड़की थीं। उनके पिता अनपढ़ चरवाहा होते हुए भी सिंधु को पढ़ाना चाहते थे, ताकि वह आत्मनिर्भर बन सके। पत्नी के विरोध के बावजूद उन्होंने सिंधु को स्कूल भेजा लेकिन आर्थिक कारणों से उन्हें स्कूल छोड़ना पड़ा और वह चौथी तक ही पढ़ सकी। जब वह 10 साल की की थी तो उनकी शादी 30 वर्षीय श्रीहरि से हो गई। 20 की आयु में वह 3 बेटों की मां बन चुकी थीं।
पति के घर से निकाला लेकिन नहीं हारी हिम्मत
उन्होंने बताया, 'मैं 20 साल की थी और मेरी बच्ची ममता सिर्फ 10 दिन की। उस वक्त मेरे ससुराल वालों ने मुझे पत्थर मार-मार कर घर से निकाला। दरअसल, उनके पति को बेटी नहीं चाहिए थी इसलिए उसने सिंधुताई को घर से निकाल दिया। मेरे पिता नहीं रहे थे और मेरी मां मुझे अपने साथ नहीं रखना चाहती थी।'
ट्रेन में गाना गाकर भरती थी पेंट
आगे उन्होंने बताया कि उस वक्त मुझे समझ नहीं आया कि मैं क्या करूं? इतनी छोटी बच्ची को लेकर कहां जाऊं? मेरे पास रहने के लिए जगह और खाने के लिए पैसे भी नहीं थी। तब पेट भरने के लिए मैंने ट्रेन में गाना शुरू कर दिया।
श्मशान में गुजारी रातें...
मैं दिन तो भिखारियों के साथ खाना खा लेती थी लेकिन सवाल रात का था। समझ नहीं आया कहां जाऊं, तो मैं श्मशान में जाकर सोती थी क्योंकि रात में वहां कोई नहीं जाता। मरने के बाद ही कोई वहां जाता है। अगर कोई मुझे रात में वहां देखता था तो भूत-भूत कहकर भाग जाता था।'
ऐसे बनी 'अनाथों की मां'
सिंधुताई ने कहा, 'मैं श्मशान में रहती थी और भूखी होती थी इसलिए मुझे दूसरों की भूख का भी अंदाजा था। तब मैंने मिल बांटकर खाया और अनाथों की मां हो गई, जिसका कोई नहीं उसकी मैं मां।' इसके बाद उन्होंने सभी अनाथ बच्चों की देखरेख का काम शुरू कर दिया। जब सिंधुताई ने यह काम शुरू किया तो सबसे पहले उन्होंने अपनी बेटी को दूर कर दिया। उन्होंने ऐसा इसलिए किया ताकि दूसरों बच्चों को ये ना लगे कि उनके साथ भेदभाव हो रहा है।
1400 बच्चे, 36 बहुएं और 272 दामाद
सिंधुताई जब किसी बच्चे को सड़क के किनारे रोता, अनाथ देखती हैं तो उसे अपना बना लेती हैं। उनके परिवार में 207 जमाई, 36 बहू और 450 से भी ज्यादा पोते-पोतियां हैं और 1400 से भी ज्यादा बच्चे हैं। इन्हें पालने के लिए पहले तो सिंधुताई ने भीख मांगी लेकिन अब स्पीच देकर पैसे जमा करती हैं। वह उन्हें पढ़ाने का साथ लड़कियों की शादी भी कराती हैं। उनकी बेटी भी एक अनाथालय चलाती है।
अनाथ बच्चों के लिए चलाती हैं कई संस्थाएं
सिंधुताई ने सबसे पहले दीपक नाम के बच्चे को गोद लिया था, उसे रेलवे ट्रैक पर पाया। उन्होंने अपना पहला आश्रम चिकलधारा (अमरावती, महाराष्ट्र) में खोला। वर्तमान में सिंधुताई पुणे में सन्मति बाल निकेतन, ममता बाल सदन, अमरावती में माई का आश्रम, वर्धा में अभिमान बाल भवन, गुहा में गंगाधरबाबा छात्रालय और पुणे में सप्तसिन्धु महिला आधार, बालपोषण शिक्षण संस्थान चलाती हैं।
एक बच्ची को जन्म लेते ही रात के 12 बजे लेकर आई थीं सिंधू ताई
एक बार एक अस्पताल से फोन आया कि एक बच्ची ने जन्म लिया है। क्या सिंधूताई उस बच्ची को लेंगी अगर नहीं तो... इसका सीधा मतलब होता है कि वे बच्ची को मार देंगे। यह सुनते ही सिंधूताई ने बच्ची को लेने के लिए हाथ आगे बढ़ा दिया।
मिल चुके हैं कई 750 अवॉर्ड
2016 में डीवाई पाटिल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एंड रिसर्च पुणे ने डॉक्टरेट इन लिट्रेचर से सम्मानित किया। महाराष्ट्र सरकार ने 2010 में अहिल्याबाई होल्कर पुरस्कार दिया। 2012 में सीएनएन-आईबीएन और रिलायंस फाउंडेशन द्वारा रियल हीरोज अवार्ड्स और इसी साल कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग पुणे द्वारा गौरव पुरस्कार दिया गया। 2018 में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने नारी शक्ति पुरस्कार से सम्मानित किया। बता दें कि सिंधुताई को अब तक 750 अवॉर्ड दिए जा चुके हैं।