रविवार यानि कल भारत का 72वां गणतंत्र दिवस सेलिब्रेट किया जाएगा। जहां इस दिन लोग देशभक्ति के रंग में रंग जाते हैं वहीं देश की राजधानी दिल्ली समेत भारत के कोने-कोने में तिरंगा फहराया जाता है। केसरी, सफेद व हरे रंग का तिरंगा भारत की शान है, जो भारतीयों के संघर्ष को बयां करता है।
मगर, क्या आप जानते हैं कि तिरंगा अपना यह रुप पाने से पहले कई रंग व रुपों का लंबा सफर तय कर चुका है। जी हां, भारत के राष्ट्रीय ध्वज के रंग व रुप को 6 बार बदलने के बाद ऐसा बनाया गया। चलिए आज हम आपको तिरंगे से जुड़ी कुछ ऐसी बातें बताते हैं, जो शायद किसी को पता हो।
इस शख्स ने बनाया तिरंगा
1921 में पिंगली वेंकैया ने हरे और लाल रंग का इस्तेमाल कर झंडा तैयार किया था, जो हिंदू और मुस्लिम समुदाय के प्रतीक थे।मगर, गांधी जी के सुझाव के बाद इसमें सफेद रंग की पट्टी और चक्र को जोड़ा गया, जो अन्य समुदाय के साथ देश की प्रगति का प्रतीक हैं।
तिरंगे के हर रंग का अपना महत्व
भारत के तिरंगे में शामिल हर एक रंग का अपना ही महत्व हैं। केसरी रंग बलिदान-हिम्मत, सफेद रंग स्वच्छता-ज्ञान और हरा रंग विश्वास, उर्वरता, खुशहाली व प्रगति का संदेश देते हैं। वहीं इसमें मौजूद नीला च्रक, जिसे अशोक चक्र भी कहते हैं, वो न्याय व धर्मचक्र का प्रतीक है।
6 बार बदला तिरंगे का रंग रुप
तिरंगा बनने से पहले इसे कई रग-रुप दिए जा चुके हैं। भारत के सबसे पहला तिरंगा 7 अगस्त, 1906 में, फहराया गया था, जिसमें पीले रंग की पट्टी पर वंदे मातरम लिखा हुआ था तो लाल की लाल पट्टी पर अर्ध चंद्र व सूरज और ऊपर की हरी पट्टी पर कमल का फूल बना हुआ था।
-दूसरा झंडा 1907 में मैडम भीकाजी कामा ने फहराया था, जो काफी हद तक पहले झंडे से मेल खाता था। इसमें ऊपर की पट्टी पर कमल के फूल की जगह 7 तारे बने हुए थे।
-तीसरे तिरंगे में 5 लाल व 4 हरी पट्टियों पर 7 तारे अंकित किए गए। इसके ऊपर साइड पर नीले, सफेद व लाल रंग से आयताकार प्लस बनाया गया था।
चौथे झंडे में सफेद रंग ऊपर, हरा रंग बीच में तो लाल रंग सबसे नीचे थे। इस झंडे पर सेंटर में नीले रंग से चरखा बनाया गया था।
वहीं पांचवे झंडे में सफेद पट्टी पर गांधी जी का चरखा अंकित किया गया था।
-आखिरकार में खादी के कपड़े से तिरंगे झंडे का निरमाण हुआ, जिसमें सफेद, हरा और केसरी रंग शामिल किया गया, जिसने 26 जनवरी 1950 राष्ट्रध्वज का रुप लिया।
कर्नाटका की महिलाएं बनाती हैं तिरंगा झंड़ा
कर्नाटका की तुलसीगरी देश की एकमात्र तिरंगा बनाने वाली कंपनी है, जिसमें औरतें मिलकर तिरंगा झंड़ा तैयार करती हैं। इस कंपनी में 400 के लगभग कर्मचारी काम करते हैं, जिसमें औरतों की संख्या पुरुषों से काफी ज्यादा है। कंपनी की सुपरवाइजर अन्नपूर्णा कोटी का कहना है कि औरतों के मुकाबले पुरुषों में धैर्य की कमी होती है। वे माप लेने में जल्दी करते हैं, जिससे गलती हो जाती है। यही कारण है कि उनकी कंपनी में पुरुषों की बजाए महिला कर्मचारी ज्यादा है।
तिरंगे से जुड़े नियम
देश में ‘फ्लैग कोड ऑफ इंडिया’ (भारतीय ध्वज संहिता) नाम का एक कानून है, जिसमें तिरंगे को फहराने के कुछ नियम-कायदे निर्धारित किए गए हैं।
-अगर कोई शख्स गलत तरीके से तिरंगा फहराने का दोषी पाया जाता है तो उसे 3 साल जेल और जुर्माना देना होगा।
-तिरंगा हमेशा सही शेप (अनुपात 3 : 2) और कॉटन, सिल्क या खादी का ही होना चाहिए। प्लास्टिक का झंडा बनाने की मनाही है।
-झंडे का यूज यूनिफॉर्म या सजावट के सामान में नहीं हो सकता। साथ ही झंडे पर कुछ भी बनाना या लिखना गैरकानूनी है।
-जब तिरंगा फट जाए या रंग उड़ जाए तो इसे फहराया नहीं जा सकता। ऐसा करना राष्ट्रध्वज का अपमान करने वाला अपराध माना जाता है।
-झंडा केवल राष्ट्रीय शोक के अवसर पर ही आधा झुका रहता है। वहीं किसी भी स्तिथि में झंडा जमीन पर टच नहीं होना चाहिए।