25 APRTHURSDAY2024 10:14:23 PM
parenting

एक दशक में दोगुनी बढ़ी सिजेरियन डिलीवरी चिंता का विषय

  • Updated: 30 Jan, 2018 12:55 PM
एक दशक में दोगुनी बढ़ी सिजेरियन डिलीवरी चिंता का विषय

मां बनना हर औरत के जीवन की सबसे सुखदायी पल होता है लेकिन गर्भावस्था में महिला को सेहत संबंधी बहुत सी परेशानियों का सामना भी करना पड़ता है। इसके बावजूद भी वह डिलीवरी का दर्द सहन करने में अपनी खुशी समझती है। पहले जमाने में औरते नॉर्मल प्रसव के द्वारा बच्चे को जन्म देती थीं लेकिन अब एक रिपोर्ट के मुताबिक एक दशक में सिजेरियन डिलीवरी में दोगुणा वृद्धि हुई है। नेशनल हैल्थ सर्वे की तीसरी रिपोर्ट के मुताबिक सिजेरियन डिलीवरी के द्वारा बच्चों को जन्म देने का आंकड़ा साल 2005-06 में 8.5 प्रतिशत था। इसकी चौथी रिपोर्ट प्रकाशित होने तक यानि 2015-16 यह आंकड़ा बढ़कर 17.2 फीसदी तक पहुंच गया।
 

इस मामले में एक दशक में दोगुनी वृद्धि का पाया जाना चौंकाने वाला नतीजा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन यानि डब्ल्यूएचओ के मानको के मुताबिक इस रिपोर्ट के मानक कहीं ज्यादा है। साल 2015 में डब्ल्यूएचओ के एक बयान के जरिए यह कहा गया था कि आबादी के हिसाब से अगर सी सैक्शन डिलीवरी की दर 10 फीसदी से ज्यादा है तो यह मातृ एवं शिशु मृत्यु दर को कम करने से जुड़ा मामला बिल्कुल भी नहीं है। 
 

इस मामले से चिंतित होकर केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने राज्यसभा को भी इस रिपोर्ट से अवगत करवाया था। इसकी गंभीरता को समझते हुए उन्होंने राज्यों को दिशा-निर्देश भी जारी किया था। 
 

एक और सर्वे के मुताबिक देशभर की 72 फीसदी ग्रामीण आबादी निजी अस्पतालों में इलाज करावाती है। सरकारी अस्पताल के मुकाबले उन्हें इलाज पर चार गुना ज्यादा खर्च करना पड़ता है। देश के अलग-अलग हिस्सों की प्रसव ऑप्रेशन दर को देखा जाए तो आंध्र प्रदेश के हालात सबसे गंभीर हैं, यहां ऑपरेशन के जरिए 40.1 फीसदी बच्चे,लक्षद्वीप में 37.1, केरल 35.8, तमिलनाडु 34.1, पुडुचेरी 33.6, जम्मू एवं कश्मीर 33.1 और गोवा में 31.4 फीसदी बच्चों का जन्म हुआ। दिल्ली में 23.7 प्रतिशत,
 उत्तर प्रदेश में  9.4, नागालैंड में 5.8 फीसदी बच्चे ऑपरेशन के माध्यम से पैदा होते हैं। 
 

इस गंभीर मुद्दे पर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष व प्रख्यात चिकित्सक के.के. अग्रवाल ने आईएएनएस से कहा कि "देश के अलग-अलग हिस्सों में सामान्य रूप से और ऑपरेशन के जरिए पैदा होने वाले बच्चों का अंतर अस्पताल में गर्भावस्था में पहुंची मां पर निर्भर करता है। अगर मां अस्पताल में देरी से पहुंचती है तो फिर चिकित्सकों के पास ऑपरेशन करना पहला विकल्प रहता है क्योंकि उन्हें बच्चे को बचाना होता है।"
 

के.के. अग्रवाल का यह भी मानना है कि पहले के मुकाबले आज के चिकित्सक जोखिम लेने से डरते हैं, पहले डॉक्टर्स मां के देरी से आने के बाद भी जोखिम लेकर नॉर्मल डिलीवरी के जरिए बच्चे को बचाने की कोशिश करते थे लेकिन बदलते हालातों में यह संभव नहीं है।
 

अस्पतालों में अनाप-शनाप बिल के मामले में ईएमए के पूर्व अध्यक्ष का कहना है कि "अस्पताल कभी भी गलत बिल नहीं वसूलते वह दवाइयों पर छपे एमआरपी और अपने चार्ज लेते हैं। इसमें सरकार को आगे आना चाहिए और एमआरपी पर उनसे बात करनी चाहिए। एक दवाई पर प्रिंट 150 रुपय है तो वह 150 ही वसूलेंगे। ऐसे में सरकार को चाहिए कि वह अस्पतालों के प्रशासनों के साथ बैठें और उनसे इस मामले पर बातचीत करे।"


 

फैशन, ब्यूटी या हैल्थ महिलाओं से जुड़ी हर जानकारी के लिए इंस्टाल करें NARI APP

Related News