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हाइपर एक्टिव बच्चों के गुस्से को ऐसे करें कंट्रोल

  • Updated: 02 Feb, 2018 01:10 PM
हाइपर एक्टिव बच्चों के गुस्से को ऐसे करें कंट्रोल

बच्चे का मन बहुत कोमल होता है। शुरू से ही बच्चों में आसपास का माहौल उसके स्वभाव में देखने को मिलता है। कुछ बच्चे बहुत जिद्दी होते हैं। बात-बात पर गुस्सा करना, चिड़चिड़ापन, बात को सुनने में आनाकनी करना आदि से कई बार उनके मां-बाप भी परेशान हो जाते हैं लेकिन इसके पीछे की वजह खुद मां-बाप का व्यवहार भी है। जिसका असर बच्चे के कोमल मन पर भी पड़ता है। हो सकता है कि आप जाने-अनजाने अपने लाड़ले के सामने कुछ ऐसी गलतियां कर रहे हैं, जिसका असर भी उस पर पड़ रहा है। आप अपने बच्चे के हाइपर एक्टिव स्वभाव से चिंतित हैं तो इन बातों पर ध्यान देना बहुत जरूरी है।

1. बच्चों के आत्मसम्मान का रखें ख्याल

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हाइपर एक्टिव बच्चों में आत्मसम्मान की भावना 3 से 4 साल की उम्र में ही शुरू हो जाती है। अगर आप ऐसे बच्चों को किसी के सामने चिल्लाकर या फिर मारपीट कर समझाते है तो इससे उनके आत्मसम्मान को धक्का लगता है और उनके अंदर कुछ भी सीखने की भावना खत्म हो जाती है। ऐसे में आपका बच्चा कोई गलती करता है तो आप उसे अकेले में प्यार से समझाएं।

2. छोटी-छोटी गलतियों को प्यार से सुधारे
बचपन में गलतियां करना बच्चों का प्राकर्तिक स्वभाव होता है। इसका मतलब यह नहीं होता कि आप उन्हें छोटी-सी गलती करने पर मारने-पीटने लग जाएं। ऐसे सभी के सामने उन्हें मारने से उनका स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाएगा और उन्हें बहुत जल्दी गुस्सा आने लगेगा और आपके प्रति सम्मान भी कम होगा। इसलिए बच्चों को जरा-सी गलती करने पर मारना-पीटना नहीं चाहिए, बल्कि उन्हें गलती सुधारने के लिए प्यार से  समझाना चाहिए। 

3. बच्चों की गतिविधियों पर रखें नजर

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कुछ बच्चों को बहुत जल्दी गुस्सा आने के कारण वह अपने दोस्तों से भी जल्दी झगड़ा करने लगते हैं। ऐसे में इस तरह के बच्चों की गलतियों को नजरअंदाज नही करना चाहिए। उनकी स्कूल टीचर या स्कूल ले जाने वाली गाड़ी के ड्राइवर से भी उनके बारे में पूछते रहना चाहिए और उनकी गलतियों के सुधारने की कोशिश करनी चाहिए।

4. पढ़ाई के साथ व्यवहारिक ज्ञान भी दें
हाइपर एक्टिव बच्चे अपना स्कूल का काम बहुत जल्दी खत्म करके खेलने-कूदने लग जाते हैं। ऐसे में मां-बाप उन्हें हर समय पढ़ने के लिए कहते रहते है। अगर आपके बच्चें पढाई में होशियार है इसका मतलब यह नहीं कि वह हर वक्त पढ़ाई में लगे रहें। इसलिए बच्चों को पढ़ाई के साथ व्यवहारिक ज्ञान भी होना चाहिए। 

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