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कामवाली बाई से बन गई लेखिका, ऐसा रहा जिंदगी का दर्दभरा सफर!

  • Updated: 27 May, 2018 05:51 PM
कामवाली बाई से बन गई लेखिका, ऐसा रहा जिंदगी का दर्दभरा सफर!

जिंदगी में नाम कमाने के लिए उम्र मायने नहीं रखती। बस इंसान में आगे बढ़ने का जुनून होना जरूरी है। ऐसा ही कहानी है एक साधारण-सी कामवाली बाई बेबी हलदर की, जिन्होने पूरी लगन से अपनी जिंदगी को बदल दिया। लोग आज उन्हें मशहूर लेखिका के तौर पर जानते हैं। कई मुश्किलों का सामना करते हुए भी उन्होंने कभी हार नहीं मानी। उनकी अब तक चार सफल किताबें छप चुकी हैं।

 


ऐसा रहा बेबी हलदर की जिंदगी का सफर
बेबी हलदर नाम की महिला गुडगांव में लोगों के घर काम करती थी। ‘आलो आंधारि’ नाम की किताब लिखकर बेबी हालदार देश ही नहीं बल्कि दुनिया की मशहूर लेखिकाओं में शुमार हो गई हैं। आलो आंधारि बेबी हलदार की दुख भरी जिंदगी का दास्तान है। बचपन में मुश्किल हालातों के कारण वह उन्हें अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी। 12 साल की उम्र में उनसे 14 साल बड़े आदमी के साथ बेबी की शादी हो गई और 13 साल की उम्र में बेबी ने एक बच्चे को जन्म दिया। कम उम्र में उन्होने 3 बच्चों को जन्म दिया। आए दिन पति की प्रताड़ना से तंग आकर एक दिन बेबी की हिम्मत जवाब दे गई तब उन्होंने अपने बच्चों को लेकर कहीं दूर जाने का फैसला कर लिया। शादी से पहले भी उनकी जिंदगी मुश्किलो भरी रही। सौतेली मां के व्यवहार से वह पूरी तरह से तंग आ चुकी था। कम उम्र में शादी से उनकी मुश्किलें और भी बढ़ गई। 

 


फिर अनजाने शहर गुड़गाव आकर बेबी हलदार ने लोगों के घर कामबाली बाई का काम करना शुरू कर दिया। वहीं पर उन्हें प्रोफेसर प्रबोध कुमार के घर काम करने का मौका मिला। यहीं से उनकी जिंदगी बदली। 

 


कामवाली बाई से ऐेसे बनी लेखिका
प्रोफेसर प्रबोध कुमार के घर लेखिका के रूप में बेबी हलदार का दूसरा जन्म हुआ।बेबी हलदार को पढ़ने का शौंक था, प्रबोध कुमार के घर कई किताबें थी। झाड़ू-पोंछा लगाकर वह किताबों को देखा करती। प्रबोध कुमार ने बेबी की पढ़ाई को लेकर उसे प्रोत्साहित किया और अपनी जिंदगी के बारे में लिखने के लिए प्रेरित किया। बेबी काम से फुर्सत मिलते ही लिखती रहती। उसके मन की बातें शब्दों का रूप लेने लगी। आखिरकार उसनेे अपनी जिंदगी की पूरी कहानी लिख डाली। प्रबोध जी ने उनकी कहानी को पढ़ा और बाद में उसे किताब का रूप दे दिया। जिसका नाम ' आलो आंधारी' रखा गया। 

 

 

मूल रूप से बंगाली में लिखा गया उनका जिंदगी नामा पहले हिंदी में प्रकाशित हुआ। बाद में किताब का अंग्रेजी में 'अ लाइफ लेस्स ऑर्डिनरी' नाम से अनुवाद किया गया। लोगो ने इसे खूब पसंद किया। न्यूयॉर्क टाइम्स ने उनकी आत्मकथा को 'Angela's Ashes' का भारतीय संस्करण लिखा है। धीरे-धीरे इस किताब को कई भारतीय एवं विदेशी भाषाओं में अनुवादित किया गया। इस तरह कामवाली बाई से बेबी हालदार लेखिका बन गई। 

 


लेखिका बनने के बाद ऐसा रहा सफर
लेखिका बनने के बाद बेबी हलदार फेमस होने लगी। उन्हें पेरिस और फ्रैंकफर्ट जैसी जगहों पर जाने का मौका भी मिला वहां पर वह कई साहित्यिक समारोहों का हिस्सा भी बनीं। वह दुनिया के कई देशों में लिट्रेचर फेस्टिवल अटेंड कर चुकी हैं। बेबी हलदार की ख्वाहिश है कि वह अपनी किताबों से कमाए हुए पैसे से कोलकाता में एक घर बना सकें ताकि भविष्य में वो कभी कोलकाता वापस लौट सकें लेकिन अपनी कामयाबी के साथ वह प्रोफेसर प्रबोध कुमार की पूरी तरह से अहसान मंद है। प्रबोध कुमार की चौखट से उनका आज भी नाता टूटा नहीं है। 

 


जिस प्रोफेसर प्रबोध कुमार ने बेबी हलदार का पूरा साथ दिया, वह एंथ्रोपोलॉजी के एक रिटायर्ड प्रोफेसर हैं। वही उनके अनुवादक है और हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध लेखक मुंशी प्रेमचंद के पोते हैं। साधारण कामवाली से लेखिका बनने का बेबी हलदार सफर प्रेरणादायक है। 

 

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