23 APRTUESDAY2024 11:16:59 AM
Nari

सोरायसिसः इलाज कराएं, बेहतर जिंदगी बिताएं

  • Updated: 02 Apr, 2017 12:49 PM
सोरायसिसः इलाज कराएं, बेहतर जिंदगी बिताएं

सेहतः त्वचा से जुड़ी आटोइम्यून सोरायसिस की बीमारी से दुनियाभर में लगभग 3 फीसदी लोग प्रभावित हैं। इस बीमारी में त्वचा की कोशिकाएं तेजी से बनने लगती हैं जो त्वचा की ऊपरी सतह पर मोटी परत बना लेती हैं। लाल रंग की मोटे चकत्तों में कभी-कभार खुजली भी होने लगती है। सोरायसिस की ये समस्या सिर्फ शरीर तक ही सीमित नहीं है बल्कि इससे ग्रस्त रोगी के रोजमर्रा जिंदगी के छोटे -छोटे पहलू भी प्रभावित होने लगते हैं जो धीरे-धीरे डिप्रैशन में बदल जाते हैं। 

 

भारत में किए गए एक सर्वे के अनुसार, 36 फीसदी लोगों ने माना कि उन्हें अपनी त्वचा की वजह से शर्मिंदगी महसूस होती हैं और 48 फीसदी रोगियों का कहना था कि इस बीमारी से उनकी प्रोफेशनल जिंदगी पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। 30 फीसदी सोरायसिस ग्रस्त लोगों ने महसूस किया कि इस बीमारी की वजह से उनके अतीत और वर्तमान में रिश्ते प्रभावित हुए हैं। सर्वों के परिणामों से उनकी आशा और आत्मविश्वास की कमी का पता चलता है और यही वजह है कि 31 फीसदी लोगों को विश्वास है कि अब उनकी त्वचा कभी भी साफ नहीं हो सकती।

 

सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि सोरायसिस की बीमारी छूआ-छूत की नहीं है। रोगी को छूने से यह बीमारी बिलकुल भी नहीं फैलती। इसलिए सोरायसिस रोगियों के साथ भेदभाव करना या उन्हें अपमानित करना गलत है। भारत में इस बीमारी की जानकारी बहुत कम लोगों को है। इसलिए बीमारी के प्रति लोगों को जागरूक करवाना बहुत जरूरी है।

 

सोरायसिस रोगियों की जिंदगी की गुणवत्ता को बहुत ज्यादा प्रभावित करती है।जब तक इस बीमारी से भ्रांतियां जुड़ी रहेंगी तब तक रोगी को यह बीमारी बार-बार परेशान करेगी क्योंकि इस बीमारी के बार बार बढ़ने का कारण मानसिक तनाव और डिप्रैशन है। इसलिए इसके लक्षणों और इससे होने वाले रोगी की स्थिति के प्रति जागरूकता बढ़ाना बहुत जरूरी है क्योंकि सोरायसिस सिर्फ त्वचा तक ही सीमित नहीं है। आजकल कई बेहतरीन थेरैपियां मौजूद हैं जिनसे रोगी बिलकुल या लगभग साफ त्वचा पा सकते हैं। त्वचा विशेषज्ञों को सोरायसिस रोगियों को ऐसे इलाज और थेरैपियों के बारे में बताना चाहिए, जिससे उनकी त्वचा साफ हो जाए ताकि उनकी जिंदगी बेहतर हो सकें।


सोरायसिस रोगियों के लिए सबसे जरूरी है कि बीमारी को स्वीकार करें और अपनी सोच सकारात्मक रखें। इससे उन्हें मानसिक शांति मिलेगी और प्रोफेशनल निजी जीवन में आत्मविश्वास बढ़ेगा। इसके साथ रोगी को सोरायसिस से जुड़े ट्रिगर्स से बचने की कोशिश करनी चाहिए जिसमें तनाव भरी जिंदगी, शराब, धूम्रपान,स्ट्रेप्टोकोसस संक्रमण, त्वचा में चोट, कुछ दवाइयां, कुछ कैमिकल, चिंता और ओरल स्टीरॉयड शामिल हैं। 

 

डॉ. राजीव सीकरी

Related News