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मेहनत, समर्पण और जज्बे ने दिलाई बेअंत कौर को मंजिल

  • Updated: 26 Feb, 2015 04:14 PM
मेहनत, समर्पण और जज्बे ने दिलाई बेअंत कौर को मंजिल

कौन कहता है कि आसमां में सुराख नहीं होता।
एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो।।
एक शायर की लिखी ये पंक्तियां सटीक बैठती है तलवंडी साबो (भटिंडा) के किसान परिवार की बेटी बेअंत कौर पर, जिन्होंने अपनी मेहनत, समर्पण और जज्बे से न सिर्फ मंजिल हासिल की है बल्कि अन्य लड़कियों के लिए भी मिसाल कायम की है । महिला थाना भटिंडा में बतौर प्रभारी सब-इंस्पैक्टर कार्यभार संभाल रही बेअंत कौर बतौर अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ी असंख्य राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय मैडल जीत चुकी है ।

परिवार और शिक्षा
33 वर्ष पूर्व तलवंडी साबो  में जन्मी बेअंत कौर के मन में बचपन से ही पिता को जी-तोड़ मेहनत करता देखकर मेहनत और समर्पण की भावना पैदा हुई और उन्होंने समाज में अपनी एक सशक्त पहचान बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया ।

इन्होंने बारहवीं तक की शिक्षा खालसा स्कूल, तलवंडी साबो और ग्रैजुएशन सरकारी राजिंद्रा कालेज भटिंडा से की । आठवीं कक्षा से ही उन्होंने खेलों में रुचि लेनी शुरू की । 1997 से 2000 दौरान उन्होंने आल इंडिया इंटरवर्सिटी चैम्पियनशिपों में लगातार 5 रिकॉर्ड बनाए । यही नहीं, पुलिस में भर्ती होने के पश्चात उन्होंने लगातार 3 बार वर्ष 2001, 2 और 3 में क्रास कंट्री फैडरेशन कप में गोल्ड मैडल, सीनियर नैशनल एथलैटिक्स मीट, बैंगलोर में 3 गोल्ड व 1 सिल्वर मैडल, मैराथन-2000 चंडीगढ़ में दूसरा स्थान व मैराथन-2002 मुंबई में तीसरा स्थान हासिल किया ।

कांस्टेबल से सब-इंस्पैक्टर
खेल उपलब्धियों के बल पर जुलाई 2000 में पुलिस में कांस्टेबल भर्ती किया गया। वर्ष 2002 में उन्हें ए.एस.आई. रैंक दिया गया और उनकी सेवाओं के चलते वर्ष 2012 में उन्हें बतौर सब इंस्पैक्टर पदोन्नत किया गया और महिला थाना में बतौर प्रमुख पारिवारिक विवादों को सुलझाने और पीड़ितों को न्याय दिलाने में जुटी हैं । 

असंख्य अवार्ड
खेल उपलब्धियों के लिए विभिन्न अवार्डों के अलावा 2007 में मुख्यमंत्री पंजाब प्रकाश सिंह बादल ने उन्हें ‘एक्सीलैंस अवार्ड’ से सम्मानित किया। ‘मान धीआं दा’ व कई अवार्ड और मैडल्स भी उनकी झोली में हैं ।

सहनशीलता की कमी
बिखरते घरौंदे बसाने हेतु प्रयासरत बेअंत कहती हैं कि आज के दौर में घर टूटने का सबसे बड़ा कारण युवाओं में सहनशीलता की कमी है । सहनशीलता महिलाओं का महत्वपूर्ण गुण और ताकत मानी जाती है परन्तु आज की लड़कियों में भी सहनशीलता की कमी है । यही कारण है कि छोटी-सी बात को लेकर शुरू हुई कहा-सुनी तलाक तक पहुंच जाती है । आज लड़का-लड़की में फर्क नहीं। कोई भी लड़की सशक्त पहचान बना सकती है। जरूरत है मजबूत इरादे, कड़ी मेहनत और नेक जज्बे की ।

— पायल बांसल, भटिंडा  (नैब सिद्धू)
 

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