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मुक्ति एवं भक्ति प्राप्त करने का पर्व है नवरात्र

  • Updated: 04 Apr, 2014 08:41 AM
मुक्ति एवं भक्ति प्राप्त करने का पर्व है नवरात्र

हमारी संस्कृति में नारी के अंदर संस्कृति समाई है, जिस कारण उसे पुरुषों के बराबर आदर-सम्मान दिया जाता था, परंतु मध्यकाल में परिस्थितियों के चलते नारी के आदर भाव को लोग भूल गए और उस पर अत्याचार करने लगे, जो आज तक कायम है। आज नारी के प्रति सम्मान देने की शुरूआत हमें अपने घर-परिवार से ही करनी पड़ेगी। मातृ शक्ति की आराधना के लिए हमें वर्ष में नौ दिन अर्थात नवरात्र विशेष रूप से दिए गए हैं। यह नारी शक्ति के प्रति आदर और सम्मान का उत्सव हैं, जो उसे अपने स्वाभिमान और शक्ति का स्मरण दिलाते हैं। नारी जितनी तेजी से आगे बढ़ रही है, वहीं अपना स्थान बनाने के लिए उसे बहुत अधिक संघर्ष करना पड़ रहा है...

शुरूआत घर से

नारी के प्रति संवेदनाओं में विस्तार होना चाहिए, जिस तरह हम नवरात्र में मातृ शक्ति के अनेक स्वरूपों का पूजन करते हैं, उनका स्मरण करते हैं, उसी प्रकार नारी के गुणों का हमें सम्मान करना चाहिए। अपने घर पर अपनी मां, पत्नी, बेटी एवं बहन से ही इसकी शुरूआत करनी होगी।

दोहरी भूमिका
एक नारी में जितनी इच्छा शक्ति होती है, वह पुरुष में शायद ही हो। आज नारी अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति के कारण ही घर और बाहर, ऑफिस एवं सामाजिक कार्य क्षेत्र में स्वयं को स्थापित कर रही है। दोहरी भूमिका लिए वह दोनों ही स्थितियों का बेहतर ढंग से निर्वाह करती है।

परिवार ही सब कुछ
शादी के बाद वह पति के नाम से जानी जाती है, पति के कार्यों एवं ससुराल का ध्यान रखना, हर किसी को यथोचित सम्मान देना, अपनी भावनाओं को एक ओर रख कर त्याग और समर्पण से कार्य करना ही उसके जीवन का उद्देश्य होता है। स्त्री का जीवन अपने परिवार के लिए तपस्या एवं तप है, जो वह निष्काम भाव से करती है।

वह अपने ज्ञान, संघर्ष और कर्म से परिवार के सदस्यों को उचित कार्यों के लिए प्रेरित करती है। विवाह का अवसर हो या घर में कोई कष्ट में हो, स्त्री जितनी भावुकता से समय की नजाकत को पहचानती है, उतना पुरुष नहीं समझ पाता।

संस्कारों का बीजारोपण

नारी का सबसे बड़ा जो गुण उसे भगवान ने प्रदान किया है वह है मातृत्व। एक मां अपने बच्चे के लालन-पालन और उसके अस्तित्व निर्माण में अपने पूरे जीवन की आहुति देती है। मातृत्व से ही वह अपनी संतान में संस्कारों का बीजारोपण करती है।

थकावट हो दूर
नारी के आभा मंडल से घर पवित्र होता है। आप जब बाहर से थक कर आते हैं तो बेटी, पत्नी या मां एक गिलास पानी लेकर आपके सामने खड़ी होती है और आपसे पूछती है कि आज ज्यादा थक गए हो क्या..., इस प्रेम भरे सवाल से सारी थकान उतर जाती है। नारी की ऊर्जा से ही संपूर्ण परिवार ऊर्जावान होता है। भाई-बहन, मां-बेटे तथा पति-पत्नी के प्रेम में एक ऊर्जा जीवन को सही ढंग से जीने को प्रेरित करती है। घर की चारदीवारी में प्रकाश की तरंगें उसके कारण ही व्याप्त होती हैं। यूं ही नहीं कहा गया कि जिस घर में नारी नहीं, वह घर निस्तेज प्रतीत होता है।

होम मैनेजमैंट
घर की प्रत्येक वस्तु को यथावत रखने का कार्य नारी ही करती है। चाहे वह भोजन से संबंधित हो या फिर घर-आंगन में रंगोली सजाने, घर की दीवारों तक को सजानेे से लेकर वस्तुओं के रख-रखाव, घर-आंगन स्वच्छता, वाणी में मधुरता बनाए रखने तक सब नारी सहजता से कर जाती है, जिससे कि घर का सम्पूर्ण वातावरण मधुर बनता है।

बेटी हूं मैं

घर में बेटियां जितना अधिक माता-पिता के मनोभावों को समझती हैं, जितना अधिक वे पिता के कार्यों में सहयोग करती हैं, उतना पुत्र नहीं कर पाते। बेटियां विवाह के बाद अपने पति के घर जाती हैं, तो भी उन्हें अधिक चिंता अपने माता-पिता की रहती है। पुत्री के रूप में स्नेह-प्रेम प्रदान कर, वे माता-पिता के हृदय में करुणा भाव जागृत करती हैं।

तपो भूमि से कर्म भूमि तक
पुरातन काल में अनेक नारियां हैं, जिनके ज्ञान और तपस्या से तीनों लोक प्रभावित होते थे। ऋषि पत्नियां भी ऋषियों के साथ-साथ तप में लीन रहती थीं। वह सतयुग था तथा उसके पश्चात कलियुग में भी नारी शक्तियों ने संस्कृति की रक्षा के लिए अपनी वीरता दिखाई।

अनेक वीरांगनाएं इस देश की मिट्टी में जन्मी हैं, जिनकी प्रेरणा और संकल्पों से परिवार और समाज को समय-समय पर ऊर्जा प्राप्त होती है। आध्यात्मिक, सामाजिक एवं राजनीतिक स्तरों पर नारी शक्ति द्वारा आज भी शंखनाद किया जा रहा है। बड़े-बड़े पदों पर महिलाएं अपनी विद्वता से देश को दिशा दिखा रही हैं।

सम्मान का पर्व

नवरात्र पर्व उनके सम्मान का पर्व है। शक्ति ही हमें मुक्ति एवं भक्ति दोनों प्रदान करती है। इसलिए उपासना के साथ-साथ नारी के सम्मान का संकल्प भी लेना चाहिए।
 

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