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Nari

बांझपन का दर्द

  • Updated: 22 Mar, 2014 08:07 PM
बांझपन का दर्द

पंजाब की आई.टी. कम्पनी में काम करने वाली 30 साल की रश्मि गर्ग को हर महीने अक्सर दर्द के कारण छुट्टी लेनी पड़ती थी। दरअसल माहवारी में दर्द से रश्मि बहुत ज्यादा परेशान रहती थी। वैसे तो आए महीने महिलाओं को माहवारी से थोड़ी-बहुत परेशानी होती ही है लेकिन रश्मि को तो दर्द बर्दाश्त से बाहर हो जाता था। इसी परेशानी के चलते रश्मि और उसके पति स्त्री रोग विशेषज्ञ से मिले तो उन्हें इसका कारण पता चला।

पिछले दो साल से रश्मि गर्भधारण की कोशिश कर रही थी लेकिन कई कोशिशों के बावजूद वह सफल नहीं हो पा रही थी और ऊपर से आए महीने बेहताशा दर्द। जांच से पता चला कि रश्मि एंड्रोमिट्रोसिस से पीड़ित है। इसी बीमारी की वजह से वह न तो गर्भधारण कर पा रही है और माहवारी  में दर्द का भी यही कारण है।

एंड्रोमिट्रोसिस की समस्या महिलाओं में आम है और इसमें गर्भाशय, जहां भू्रण का विकास होता है, प्रभावित होता है। गर्भाशय की लाइन के साथ टिश्यू विकसित होता है, एंड्रोमिट्रोसिस में यह टिश्यू कहीं और विकसित होना शुरू हो जाता है। कई बार यह ओवरीज, गर्भाशय के पीछे, बाऊल या ब्लैडर पर पनपने लगता है। वैसे कभी-कभार यह  शरीर के दूसरे भागों में भी विकसित होने लगता है।

दर्द भरी महावारी (डिस्मनोरिया): माहवारी से कुछ दिन पहले पेल्विक में दर्द और ऐंठन। कई बार पीठ में दर्द के साथ पेट के निचले हिस्से में भी दर्द रहता है।

मल या मूत्रादि त्यागने में दर्द: यह ज्यादातर माहवारी के दिनों में होता है।

भारी रक्तस्राव: कभी-कभार बहुत ज्यादा रक्तस्राव होना (मेनोरिग्यिा) या कभी भी रक्तस्राव (मेनोमैट्रोरिग्यिा) होना।

संभोग के दौरान दर्द: एंड्रोमिट्रोसिस में संभोग के दौरान या बाद में दर्द होना आम है।

बांझपन: जो महिलाएं बांझपन का इलाज करा रही है उनमें से कुछ महिलाओं में पहले एंड्रोमिट्रोसिस की समस्या सामने आई।

रिपोर्टों के मुताबिक 35 से 50 प्रतिशत बांझ महिलाओं को एंड्रोमिट्रोसिस की समस्या होती है, तो 30 से 50 महिलाएं जिन्हें एंड्रोमिट्रोसिस की समस्या है, बांझपन की समस्या से जूझ रही हैं। बांझपन से परेशान महिलाओं (48 प्रतिशत) में एंड्रोमिट्रोसिस के मामले सबसे ज्यादा हैं।

हालांकि एंड्रोमिट्रोसिस की समस्या से महिलाएं काफी परेशान होती हैं लेकिन यह समस्या तभी सामने आती है, जब उन्हें गर्भधारण में दिक्कत आती है। यह जरूरी नहीं कि यह समस्या बांझपन से जूझ रही हर महिला में हो किन्तु बच्चे न होने के कारणों में यह सबसे ऊपर है।

इंर्फिटलिटी की दिक्कत से न सिर्फ दंपतियों को सामाजिक प्रताडऩा का भय रहता है, बल्कि कई बार दोनों के आपसी निजी रिश्तों में भी खटास आने का डर रहता है।लेकिन इस तरह की समस्या होने पर घबराने की जरूरत नहीं है क्योंकि इस समस्या का भी समाधान चिकित्सा के क्षेत्र में है। आधुनिक मैडीकल तकनीकों के इस दौर में इसका सबसे बढिय़ा उपाय है आई.वी.एफ. (इन विट्रो फर्टिलाइजेशन) है। इस तकनीक के जरिए कई नि:संतान दंपतियों को संतान सुख मिला है और इस तकनीक की सफलता 35 से 45 प्रतिशत तक है।

आई.वी.एफ. मूलत एक सहायक प्रजनन तकनीक है, इसके अंतर्गत प्रयोगशाला में पुरुष के शुक्राणु और स्त्री के अंडा निषेचन संयुक्त किए जाते हैं। फिर भ्रूण बनने के बाद स्त्री के  गर्भाशय में स्थानांतरित किया जाता है। यह तकनीक उन दम्पतियों के लिए आशा की किरण है, जिनमें पुरुष के शुक्राणुओं की संख्या कम होती है।

पहले तो एंड्रोमिट्रोसिस को सर्जरी या दवाइयों से ठीक किया जाता है और इसके बाद अगर महिला गर्भधारण करने में असमर्थ होती है तो उनके लिए आई.वी.एफ. बढिय़ा समाधान है।

यह बहुत जरूरी है कि समस्या के गंभीर होने से पहले ही स्त्री रोग विशेषज्ञ की सलाह ली जाए ताकि समस्या इससे जुड़े दर्द से न सिर्फ शारीरिक रूप से बल्कि मानसिक रूप से भी छुटकारा जल्द से जल्द मिल जाए और गर्भधारण न होने जैसी समस्याओं से भी बचा जा सके।   

 

—डा. मनिका खन्ना

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