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माता-पिता की इच्छा पूरी की- रणधीर कौर

  • Updated: 28 Feb, 2014 08:13 AM
माता-पिता की इच्छा पूरी की- रणधीर कौर

तरनतारन के गांव सबरा के निवासी आज अपनी बच्चियों को प्रेरणा देते हैं कि जैसे उनके गांव के सरदार महिन्द्र सिंह व हरभजन कौर की सुपुत्री रणधीर कौर ने गांव का नाम एक अफसर बन कर रोशन किया है, वे भी उससे प्रेरणा लेकर पढ़ाई-लिखाई कर रणधीर कौर की तरह अफसर बिटिया बनें। ऐसा इसलिए है कि अपनी लगन व मेहनत के बल पर आज रणधीर कौर आबकारी एवं कर मोबाइल विंग लुधियाना में बतौर सहायक कमिश्रर कार्य निर्वाह कर रही हैं और कई लड़कियों को प्रेरित भी किया है। प्रस्तुत हैं उनसे बातचीत के अंश :

क्या आप शुरू से ही अफसर बनना चाहती थीं?

—मेरी प्रारम्भिक शिक्षा तरनतारन में ही हुई। उसके बाद मैंने अमृतसर से ग्रैजुएशन किया। तब स्कूल-कालेज के दिनों में मेरा रुझान पंजाबी साहित्य की तरफ अधिक था और मैं एक प्रोफैसर के तौर पर अपना करियर चुनना चाहती थी जबकि मेरे माता-पिता चाहते थे कि मैं एक उच्च सरकारी अधिकारी बनूं। मैंने उनकी इच्छा पूरी करने को अपना फर्ज माना और पूरी लगन से जी-जान से एक सरकारी अधिकारी बनने की ठान ली और आज वह सपना पूरा हुआ है।

आपके इस सपने को पूरा करने में किसकी प्रेरणा अधिक थी?
—मेरे भाई तरसेम सिंह गिल ने मुझे बहुत प्रेरणा दी और हमेशा प्रोत्साहित किया कि मैं सिविल सर्विसिज की परीक्षा दूं और एक उच्च प्रशासनिक अधिकारी बनूं।

क्या आज आप इस पद पर अपने आपको पाकर खुश हैं?
—जी हां, मुझे बहुत खुशी है कि मैं अपनी मेहनत एवं परमात्मा की कृपा से आज इस मुकाम पर हूं। मुझे समाज में काफी सम्मान मिलता है और मैं गर्व का अनुभव करती हूं।

किस तरह का साहित्य पढऩा आपको पसंद है?
—जी मुझे शिव कुमार बटालवी, अमृता विर्क का साहित्य बेहद पसंद है और शिव कुमार बटालवी का लिखा गीत : ‘जोबन रुते जी जो मरदा, फुल्ल बने जां तारा’ बेहद पसंद है।

एक प्रशासनिक अधिकारी के तौर पर आप काम करने का क्या तरीका अपनाती हैं?
—हमारे विभाग का काम कर वसूल करना तथा कर चोरी रोकना है। मैं अपने विभाग के कानून के अनुसार व सरकारी दिशा-निर्देशों के अनुसार कार्य करती हूं। मेरी कोशिश होती है कि मैं लोगों को जागरूक करूं ताकि वे स्वयं ही सरकार और विभाग को सहयोग दें।

एक अधिकारी के तौर पर व एक गृहिणी के तौर पर आप इन दोनों में कैसे तालमेल रखती हैं?
—जब मैं अपने आफिस में काम करती हूं तो वहां पर मैं अधिकारी होती हूं लेकिन जब मैं घर पर अपने परिवार-अपने पति और बेटी के साथ होती हूं तो मैं एक पत्नी और मां होती हूं। एक आम गृहिणी की तरह मुझे भी घर में खाना बनाना, घर की सफाई करना, अपने हाथों से सूट सिलना, कढ़ाई करना पसंद है। मैं खुशकिस्मत हूं कि मुझे डा. इकबाल सिंह औजला जैसे जीवनसाथी का साथ मिला जो बहुत ही सहयोग देते हैं और प्रोत्साहित भी करते हैं।

आज समाज में महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों के बारे में आपकी क्या राय है?

—आज समाज में औरत सुरक्षित नहीं है। जो हो रहा है, वह चिंता का विषय है लेकिन ये सब कानून बनाने से नहीं परन्तु तब खत्म होगा जब लोगों में इंसानियत जागेगी। खुद अंदर से जब इंसान इन बातों पर पश्चाताप करेगा तभी सुधार संभव है। इसके लिए सभी को प्रयास करने चाहिएं ताकि बुराई को जड़ से खत्म किया जा सके।

अपनी यहां तक की सफलता पर आप क्या अनुभव करती हैं?

—आज मैं जो कुछ भी हूं, अपनी पढ़ाई के कारण ही हूं। इसलिए अभिभावकों को चाहिए कि बेटा हो या बेटी, वे उनको खूब पढ़ाएं ताकि समाज में उनका भी नाम हो और अगर पढ़ाई की दौलत आपके पास है तो अवश्य ही आप अपनी जिंदगी को बेहतर बना सकते हैं।

क्या आप मानती हैं कि आज भी समाज में नारी के उत्थान के लिए कार्य करने की आवश्यकता है?
—पुराने समय से ही यदि देखा जाए तो आज नारी की स्थिति काफी बेहतर है। जहां पहले नारी को अबला समझा जाता था, वहीं आज नारी ने अपनी योग्यता के दम पर सिद्ध कर दिया है कि वह कमजोर नहीं है और हर कार्य व हर जिम्मेदारी का निर्वाह भली-भांति कर सकती है लेकिन कई क्षेत्रों में आज भी समाज में नारी की हालत काफी पिछड़ी हुई है। उसके लिए शिक्षा का प्रचार-प्रसार बहुत आवश्यक है ताकि महिलाएं अपने अधिकारों के लिए जागरूक हों।

जीवन में सफलता का मूल मंत्र आप क्या मानती हैं?

—सफलता का मूल मंत्र है मेहनत और लगातार प्रयास करना। यदि आप अपने लक्ष्य के लिए असफलताओं के बावजूद प्रयास करते हैं तो सफलता निश्चित ही मिलती है। किसी शायर ने कहा भी है :

वे खुद ही तय करते हैं, मंजिल आसमानों की,
परिंदों को नहीं दी जाती तालीम उड़ानों की।
रखते हैं जो हौसला आसमां छूने का,
उनको नहीं परवाह कभी गिर जाने की।


कन्या भ्रूण हत्या एक गंभीर सामाजिक बुराई बन गई है। इसे कैसे दूर किया जा सकता है?

—कन्या भ्रूण हत्या महापाप है। इसे दूर करने के लिए सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता है। जहां सरकार द्वारा कड़े कानूनों का प्रावधान है, वहीं सामाजिक संस्थाओं को भी चाहिए कि वे इस विषय में लोगों को जागरूक करें ताकि कन्या भ्रूण हत्या की रोकथाम हो सके। महिलाओं की उपलब्धियों को प्रोत्साहन देना चाहिए। जैसे अभी लुधियाना की संस्था ‘नोबल फाऊंडेशन’ ने विभिन्न क्षेत्रों से चुनकर महिला शक्ति का सम्मान किया। इससे समाज में सही सोच का संचार होता है कि लड़कों की तरह लड़की भी डाक्टर, इंजीनियर, ऑफिसर बन सकती है। उसे बोझ न समझ कर उसे पढ़ाएं-लिखाएं। इस तरह के प्रोत्साहन कार्यक्रम गांव-गांव में होने चाहिएं ताकि लोगों की सोच में बदलाव लाया जा सके।

                                                                                                                                                 —प्रस्तुति : रवि नंदन शर्मा

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