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जया दुग्गल जिन्होंने विकलांग बेटे की आंखों में सपने भरे

  • Updated: 18 Feb, 2014 07:39 AM
जया दुग्गल जिन्होंने विकलांग बेटे की आंखों में सपने भरे

इक हस्ती है, जो जान है मेरी,
जो आन से बढ़कर मान
है मेरी ,
खुदा हुक्म दे तो कर दूं
सजदा उसे,
क्योंकि वो कोई और नहीं मां
है मेरी।


मां एक ऐसा शब्द है, जिसे सुनकर सिर श्रद्धा से झुक जाता है। दुनिया का हर धर्म ग्रंथ, हर पीर पैगम्बर, हर सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक जगत की ऊंची से ऊंची शख्सियत भी मां के चरणों में ही अपनी जन्नत पाती है। कहते हैं कि भगवान हर जगह हर किसी के लिए मौजूद नहीं हो सकता, इसलिए उसने मां को बनाया और खुद मां के आंचल में उसके लाड़-प्यार, डांट को अनुभव किया।

सम्पूर्ण विश्व में हर धर्म, जाति के लोग एक बात पर सहमत हैं कि जितना धैर्य, साहस, सहनशीलता मां में होती है, शायद ही कहीं और देखने को मिले। मां के लिए इस संसार में सबसे बढ़ कर उसकी संतान होती है जिसके लिए वह सपने देखती है और उसकी हर खुशी व ख्वाब को पूरा करने की खातिर मर मिटने को तैयार होती है।

लुधियाना की श्रीमती जया दुग्गल भी ऐसी ही मां हैं जिन्होंने अपने साहस व हौसले से लाईलाज बीमारी Mycities Post Viral के कारण न हिलजुल सकने वाले बेटे राहुल को घर बैठ कर कड़ी मेहनत से पढ़ाकर इस काबिल बनाया, कि उसने पंजाब में लगातार 6 बार टॉप किया। इस पर पंजाब के मुख्यमंत्री ने राहुल को 2 बार पंजाब स्टेट अवार्ड से सम्मानित किया। अब तक विभिन्न प्रतिष्ठित संस्थानों द्वारा 55 बार राहुल को सम्मानित किया गया है।

कड़ी मेहनत, लगन व हौसले के साथ बिना डाक्टरों की मदद से जो बच्चा हिलजुल भी नहीं सकता था उसे सहारा लेकर चलने के साथ-साथ तिपहिया स्कूटर चलाने के काबिल बनाया।

आपको इसकी बीमारी के बारे में कब पता चला?
—मेरे बेटे के स्कूल में परीक्षा चल रही थी। इसी तरह एक रोज जब वह घर आया तो उसने तबीयत ठीक न होने की शिकायत की। जब वह बिस्तर पर आराम करने के लिए लेटा तो दोबारा उठ न पाया और गिर पड़ा। तब उसने बताया कि उसकी टांग उसका शरीर नहीं उठा पा रही है।

तब आपको डाक्टर ने क्या कहा?
—मैंने उसके बाद उसके इलाज के लिए अपनी हैसियत के अनुसार प्रयास किया। डाक्टरों ने कहा कि अब मेरा बेटा कभी बिस्तर से नहीं उठ पाएगा, परंतु एक मां का दिल यह मानने को तैयार न था। मैंने बड़े से बड़े अस्पताल में, जहां मुझे कुछ आस बंधी, सब जगह उसे दिखाया, परंतु सभी जगह से यही जवाब मिलता था, कि मेरा बेटा अब शायद ठीक नहीं होगा।

बेटे की बीमारी से आपके जीवन पर क्या असर पड़ा?
—मैं तब स्कूल में पढ़ाती थी। बेटे को संभालने के लिए मुझे नौकरी छोडऩी पड़ी। ऊपर से मेरे पति भी इस बात पर मुझसे लड़ाई-झगड़ा करने लगे कि बेटा ठीक नहीं होगा, तो हम क्यों उसके इलाज पर पैसे बर्बाद करें। मैं अपने बेटे को ऐसे नहीं देख सकती थी, तो उन्होंने मुझसे नाता तोड़ लिया और मुझे तथा मेरे बेटे को छोड़ दिया।
 
जब आपके पति आपसे अलग हुए तो क्या आपने अपने आपको अकेला महसूस नहीं किया?
—तब मैंने और दृढ़ निश्चय किया, कि अब से मेरा सहारा मेरा बेटा और उसका सहारा मैं हूं। दिन-रात राहुल की जिंदगी को बेहतर बनाना ही मेरा मकसद बन गया।

किस बात ने आपको प्रेरित किया कि आप अपने बच्चे को पढ़ाएं?

—जब भी कोई रिश्तेदार, कोई भी यह बात करता कि अब यह पढ़ नहीं पाएगा और इसको बिस्कुट, टॉफी की छोटी-सी कोई दुकान करवा देना, तो मेरा मन रो उठता, बस तब से मैंने ठान लिया कि मैं यह करके दिखाऊंगी कि एक दिन मेरा बेटा इतना पढ़ लिख कर योग्य बने कि सब देखें।

आपने कैसे अपने बेटे में यह जज्बा पैदा किया?
—मेरा बेटा बहुत समझदार है, वह जब भी ऐसे ताने सुनता, तो हमेशा कहता कि मां तू फिक्र मत कर एक दिन मैं तुम्हारे ख्वाब पूरे करूंगा। मैंने उसे एक ही बात बताई कि बेटा इन सब बातों का जवाब केवल तुम पढ़ाई के द्वारा ही दे सकते हो।

किन-किन लोगों ने आपका साथ दिया?
—मैं आभारी हूं श्री विजय कुमार चोपड़ा (पंजाब केसरी), मास्टर मोहन लाल, सतीश शर्मा शोमैन, सतपाल गोसाईं व विशेष तौर पर पंजाब के मुख्यमंत्री सरदार प्रकाश सिंह बादल की, जिन्होंने मेरे बेटे की सारी पढ़ाई का खर्च दिया और उसे आगे बढऩे का हौसला मिला। भारतीय विद्या मंदिर स्कूल की प्रिंसीपल श्रीमती सुनील अरोड़ा व मदन मोहन व्यास जी ने मेरे बेटे को दाखिला व हर तरह से सहूलियत दी और स्कूल में सारी क्लास की व्यवस्था उसके हिसाब से की।

पंजाब की लगभग सभी बड़ी शख्सियतों से आपने राहुल को मिलाया और उनसे सम्मान प्राप्त किया?

—जी हां मैं चाहती थी, कि  इसकी प्रतिभा को ये लोग जानें व इसकी पीठ थपथपाएं व इसके साथ-साथ ऐसे और दूसरे बच्चे व उनके परिवार भी यह बात जान लें, कि ऐसी स्थिति में भी पढ़ाई कितना महत्वपूर्ण रोल अदा कर सकती है और एक विकलांग की जिंदगी में रोशनी लाकर उसकी पहचान बना सकती है। मुझे खुशी है कि मैं काफी हद तक उस मकसद में कामयाब रही। मेरे बेटे की प्रतिभा को पहचान मिली और जब भी उसे कोई  सम्मान मिलता, तो उसका हौसला बढ़ता।

आज राहुल की सफलता से आप खुश हैं?

—जी, राहुल ने अपनी मां का जो सपना था, पढ़ कर अपनी पहचान बनाने का, वो पूरा कर दिखाया। उसे बैंक में नौकरी भी मिल गई है परंतु अभी उसने सपने देखना शुरू किया है। वह अपनी जिंदगी में और उन्नति करना चाहता है।

ऐसे और न जाने कितने राहुल दुनिया में हैं, उनके लिए आप क्या संदेश देना चाहती हैं?

—मैं उनसे यही कहना चाहती हूं कि मेरे राहुल की तरह मेहनत करें, पढ़ाई करें। विकलांगता को भूलें और पढ़ाई को अपनी पहचान बनाएं तो सफलता मिलेगी। तभी हर पल पे तेरा ही नाम होगा।

तेरे हर कदम पर दुनिया का सलाम होगा।
मुश्किलों का सामना हिम्मत से करना। देखना  एक दिन वक्त भी तेरा गुलाम होगा।


                                                                                                                                                      —प्रस्तुति : रवि नंदन शर्मा 

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