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मणिपुर की पथ प्रदर्शक महिलाएं

  • Updated: 27 Jan, 2014 12:30 PM
मणिपुर की पथ प्रदर्शक महिलाएं

उत्तर पूर्व में बसे छोटे-से राज्य मणिपुर की राजधानी इम्फाल में हर ओर तैनात सैनिक दिखाई देते हैं परंतु शहर के एक बाजार में एक अलग ही दुनिया दिखाई देती है जिसे पूर्णत: महिलाएं चलाती हैं। इम्फाल के इमा केइथेल या ‘मदर्स मार्कीट’ नामक इस बाजार में तरह-तरह के रंग दिखाई देते हैं जहां सरोंग (मणिपुर का पारम्परिक परिधान) में सजी-धजी कई सौ महिलाएं फूल, मसाले, फल, हस्तकला और अन्य कई सारी चीजें बेचती हैं। कइयों के माथे पर चंदन का बड़ा टीका लगा होता है। वे दिन की शुरूआत अगरबत्ती जला कर अच्छे व्यवसाय की प्रार्थना से करती हैं।

मणिपुर भारत के सर्वाधिक आतंकवाद ग्रस्त राज्यों में से एक है जहां 20 से अधिक आतंकी गुट सक्रिय हैं इसीलिए यहां सेना तैनात है। यह राज्य दशकों से सेना की निगरानी में है। राज्य में गरीबी काफी है। राज्य बेरोजगारी की उच्च दर, नशाखोरी और एड्स के अधिक मामलों से ग्रस्त है।

इन परेशानियों के बीच मणिपुर की महिलाएं रोशनी की किरण बनी हुई हैं। वे अधिकारों के लिए संघर्ष करती हैं, मानवाधिकार उल्लंघनों, ड्रग्स एवं अपराध के खिलाफ अभियान चलाती हैं। उनके आंदोलनों से समाज में बदलाव आया है। देश के सबसे शक्तिशाली महिला आंदोलन इसी राज्य में हुए हैं।

राज्य में महिलाओं की सक्रियता देश के उन अन्य हिस्सों से अलग है जहां जन्म से मृत्यु तक महिलाएं हिंसा तथा भेदभाव का शिकार हो रही हैं। उन्हें भ्रूण हत्या, यौन एवं हर तरह के शोषण का शिकार होना पड़ रहा है। ‘मदर्स मार्कीट’ महिला सशक्तिकरण का एक बड़ा प्रतीक है। यहां हस्तकला दुकान चलाने वाली सुनीता रानी कहती है, ‘‘जहां अर्थव्यवस्था से लेकर कानून सब कुछ अस्त-व्यस्त हो, यह बाजार परिवार पालने में महिलाओं की बड़ी सहायता कर रहा है। मेरे पति बेरोजगार हैं। अपने दो बच्चों का पेट भरने के लिए मैं यहां काम करती हूं।’’

मणिपुरी समाज है तो पुरुष प्रधान परन्तु महिलाएं घरों, कार्यस्थलों तथा समुदायों में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रही हैं। बाजार में महिलाएं एकजुट होती हैं। सामाजिक तौर पर जागरूक तथा सक्रिय होने का भी उन्हें मौका मिलता है। बाजार की जनरल सैक्रेटरी लाइश्राम ओंगबी मेमा बताती हैं, ‘आर्थिक रूप से सक्षम होने की अपनी कोशिश से महिलाएं आज समाज के लिए एक उदाहरण बन चुकी हैं। हमने हत्याओं, नशे तथा भ्रष्टाचार के खिलाफ अनेक प्रदर्शन किए हैं।’’

इतिहास पर नजर डालें तो 1904 तथा 1939 में महिलाएं अंग्रेजों के शोषण के खिलाफ उठ खड़ी हुई थीं जिसे नूपी लाल यानी ‘महिलाओं की लड़ाई’ का नाम दिया गया था। राजनीतिक विशेषांक बिमोला देवी के अनुसार राज्य में महिलाओं के नेतृत्व में अहिंसक आंदोलन का 100 सालों से लम्बा इतिहास है जो शायद एशिया में सबसे पुराना है।
 
मेइरा पाईबी (मशाल वाली महिलाएं) राज्य का विशालतम नागरिक आंदोलन है। इसमें राज्य के सबसे बड़े जातीय समुदाय मेइतीज की महिलाएं शामिल हैं। 1970 के दशक में इसकी शुरूआत शराबनोशी तथा नशाखोरी के खिलाफ आंदोलन के रूप में हुई थी। सदस्याएं रात में गश्त लगा कर शराबियों पर जुर्माना लगातीं और शराब को जला देतीं। इसकी बदौलत राज्य में शराब पर पाबंदी लगी थी।

नागरिकों पर अत्याचार, उनकी हत्याओं और संदिग्धों के गायब होने के मध्य 1980 के दशक में राज्य से मार्शल लॉ हटाने के लिए आंदोलन शुरू हुआ। 2004 में 12 मेइरा पाईबी आंदोलनकारियों द्वारा एक सैन्य छावनी के बाहर नग्र प्रदर्शन ने पूरे देश को हिला कर रखा दिया था। वे महिलाओं से बलात्कार तथा हिरासत के खिलाफ ध्यान दिलाना चाहती थीं। उस प्रदर्शन में हिस्सा ले चुकी संगठन की नेता लॉरेनबाम गाम्बी कहती हैं, ‘‘आज भी बड़े स्तर पर अन्याय हो रहा है लेकिन हम अपने संघर्ष को कभी नहीं छोड़ेंगी।’’

गत 13 सालों से मार्शल राज खत्म करने की मांग को लेकर भूख हड़ताल कर रही इरोम शर्मिला चानो अहिंसक आंदोलन की सबसे बड़ी प्रतीक हैं।

 41 वर्षीय शर्मिला ‘मणिपुर की लौह स्त्री’ के नाम से मशहूर हैं जिन्हें जिंदा रखने के लिए जबरन नाक रास्ते तरल पदार्थ दिए जाते हैं। इस छोटे से राज्य की महिलाओं ने अनेक आंदोलनों को जन्म दिया है। एक बम विस्फोट में अपनी भतीजी को खो चुकी बीना लक्ष्मी नेपराम हथियारों को खत्म करने के लिए अभियान चला रही हैं। उन्होंने कंट्रोल आर्म्स फाऊंडेशन ऑफ इंडिया की स्थापना की है जो छोटे हथियारों की उपलब्धता तथा उनके गलत इस्तेमाल के खिलाफ आवाज उठा रही है। रुथ सिंहसन एक समूह चलाती हैं जो आतंकवाद की शिकार 200 विधवाओं की सहायता करता है। 

5 बार वर्ल्ड बॉक्सिंग चैम्पियन तथा लंदन ओलिम्पिक में पदक जीतने वाली मैरी कॉम मणिपुर से देश की एक अन्य बड़ी स्टार हैं। उन पर एक बॉलीवुड फिल्म ‘मेरी कॉम’ भी बन रही है जिसमें उनकी भूमिका अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा निभा रही हैं। घर पर किसी साधारण गृहिणी के रूप में सबकी देखभाल करने वाली मैरी ने शुरूआत में बॉकिंसग को अपने परिवार से छिपा कर रखा था क्योंकि उन्हें लगता था कि उन्हें बॉक्सिंग खेलने नहीं दी जाएगी क्योंकि वहां इसे पुरुषों का खेल समझा जाता है।

वह कहती हैं, ‘‘लेकिन मैंने खुद को साबित कर दिखाया। जब पुरुष खेल सकते हैं तो महिलाएं क्यों नहीं? मणिपुरी महिलाएं राज्य में संघर्ष के बीच फौलाद बन चुकी हैं, उनके खून में कुछ अलग बात है। हमने काफी रास्ता तय किया है लेकिन अभी भी काफी बाकी है।’’

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