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बॉन मैरो से दें किसी को नई जिंदगी, इसे देना है बहुत आसान

  • Updated: 25 Apr, 2017 02:09 PM
बॉन मैरो से दें किसी को नई जिंदगी, इसे देना है बहुत आसान

लाइफस्टाइलः हर साल लाखों की तादाद में लोग मौत के चपेट में आ जाते हैं क्योंकि उन्हें सही समय में डोनर नहीं मिल पाता। अंगों के खराब हो जाने या फिर किसी दुर्घटना के कारण ऑर्गन ट्रांसप्लांट करने की जरूरत पड़ती है ताकि व्यक्ति की जान बचाई जा सकें लेकिन यह जान तभी बचाई जा सकती है जब सहीं समय पर ऑर्गन डोनेट करने वाला कोई मिलें। हममें से ऐसे बहुत सारे लोग हैं जो इंसानियत के प्रति अपने फर्ज को निभाने की जिम्मेदारी को भलि-भांति समझते हैं और ऐसे लोगों की तादाद भी बढ़ रही हैं जो अंगदान व देहदान करते हैं ताकि मरने के बाद भी किसी को बेहतर जिंदगी दी जा सकें। लेकिन अंग व देहदान के अलावा आप खूनदान और बॉन मैरो दान करके भी जीते जी किसी को जीवनदान दे सकते हैं। किसी व्यक्ति के शरीर में आए रक्त की कमी को आप अपने रक्त से पूरा कर सकते हैं। उसी तरह आपका बॉन मैरो भी किसी की जिंदगी बचा सकता हैं हालांकि इस बारे में लोगों को अभी ज्यादा जानकारी नहीं हैं लेकिन बॉन मैरो यानी अत्थि मज्जा के बारे में जानकारी होना बहुत जरूरी है। 

चलिए, बॉन मैरो और इससे संबंधित बीमारियों के बारे में जानते हैं ताकि इससे जुड़ी समस्याओं से बचा जा सकें।

*बॉन मैरो क्या है?

बॉन मैरो हमारी हड्डियों के अंदर भरा हुआ एक मुलायम टीशू है, जहां रक्त का उत्पादन होता है। एक व्यस्क के शरीर में यह कुल भार के 4 प्रतिशत समाहित रहता है यानि की लगभग 2.6 किलोग्राम। मैरो (मज्जा) रक्त कोशिकाओं का उत्पादन करने वाली स्टेम कोशिकाओं से भरी होती है, जो सफेद, लाल रक्त कोशिकाओं व प्लेटलेट्स में विकसित होती हैं। सफेद रक्त कोशिकाएं प्रतिरक्षा प्रणाली की संक्रमण से लड़ने में मदद करती हैं जबकि लाल रक्त कोशिकाएं हमारे पूरे शरीर में ऑक्सीजन का आदान-प्रदान करती है। प्लेटलेट्स रक्तस्रव को रोकने के लिए रक्त का थक्का बनाते हैं। बॉन मैरो, स्टेम कोशिकाओं का लगातार उत्पादन करती रहती हैं जो शरीर की जरूरत के अनुसार ही अलग-अलग प्रकार की कोशिकाओं को विकसित करती हैं।
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*कई बीमारियों में उपयोगी

बॉन मैरो ट्रांस्प्लांट ब्लड कैंसर के मरीजों के लिए तो वरदान साबित होता ही है साथ ही में रक्त संबंधी अन्य बीमारियों जैसे thalassemia, sickle cell anaemia (लाल रक्त कोशिकाओं की कमी, aplastic anaemia (एप्लास्टिक एनीमिया) आदि बीमारियों के इलाज में भी इसकी काफी जरूरत पड़ती हैं। ल्यूकेमिया, लिम्फोमा कैंसर जैसी कई गंभीर रक्त विकार बीमारियों में बॉन मैरो ट्रांस्पलांट जीवित रहने का मौका प्रदान करती है। 

*जागरूकता की जरूरत

बॉन मैरो ट्रांस्पलांट के लिए लोगों का जागरूक होना बहुत जरूरी है। पहले की बजाए आज लोग बॉन मैरो ट्रांसप्लांट को लेकर सजग भी हुए हैं। भारत में डोनरों की संख्या 13000 से बढ़कर 2 लाख तक पहुंच गई हैं। इस कार्य को एन.जी.ओ. की मदद से काफी प्रोत्साहित भी किया जा रहा है। 
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*बॉन मैरो देना बहुत आसान

कुछ लोग इस बात से घबरा जाते हैं कि बॉन मैरो काफी पीड़ादायक होगा लेकिन ऐसा कुछ नहीं हैं। सबसे पहले मुंह से HLA सेंपल लिया जाता हैं, जिसमें स्वैब (swab) की मदद से गाल के अंदरूनी हिस्से से सॉफ्ट टीशू निकाला जाता है। इस प्रक्रिया के दौरान किसी भी तरह का दर्द नहीं होता। स्टेम सेल्स का उचित मिलान होने पर व्यक्ति का पूरा मैडीकल चेकअप किया जाता है और इससे जुड़ी पूरी जानकारी दी जाती है। 
इसके बाद डोनर की हड्डी में बिना छेद किए परिधीय रक्त (peripheral blood) से स्टेम सैल्स को निकाला जाता है। डोनर को 4 से 5 दिन के लिए GCFS थैरेपी (छोटा इंजैक्शन) दी जाती है, जिससे ब़ॉन मैरो में जरूरत से अधिक स्टेम कोशिकाओं का उत्पादन होता है।  GCSF थैरेपी के दौरान डोनर को हल्का शरीर दर्द और सिरदर्द होता है लेकिन यह सारी थैरेपी मैडीकल सुपरवाइजर की देखरेख में होती है। इस प्रक्रिया में लगभग 4 से 8 घंटे लगते हैं। कुछ घंटों के आराम के बाद डॉनर को घर भेज दिया जाता है। 

-वंदना डालिया

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