आज दशहरा का पावन दिवस है। दशहरे को बुराई पर अच्छाई की जीत माना जाता है। लोग इस दिन का बड़ी ही बेसब्री से इंतजार करते है और जगह-जगह पर रावण के पूतले बना कर जलाए जाते है। आज हम बस्तर में आयोजित होने वाले दशहरा के बारे में बताएंगे, यह बस्तर में सबसे सर्वश्रेष्ठ दशहरा माना जाता है। बस्तर दशहरे की पहचान राष्ट्रीय स्तर तक ही सीमित नहीं है बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी स्थापित हो चुकी है। बस्तर के दशहरे को देखने देश-विदेश से लोग आते है।
यह त्योहार संपूर्ण रूप से स्थानीय मान्यताओं एवं आदिवासी प्रथाओं का मिश्रण है। दंतेश्वरी देवी के मंदिर में कई लोग इकट्ठे होते है। कहा जाता है कि जब राजा पुरुषोत्तम देव जब पुरी धाम से बस्तर लौटे तभी से गोंचा और दशहरा पर्वों में रथ चलाने की प्रथा चलाई गई। बस्तर दशहरे की शुरुआत श्रावण की हरेली अमावस्या से होती है और अश्विन महीने की पूर्णिमा की 13वीं तिथि को खत्म होती है। इस त्योहार पर आदिवासी समुदाय ही नहीं बल्कि पूरा छत्तीसगढ़ गर्व करता हैं। बस्तर दशहरे में होने वाली रस्में बेहद अनूठी हैं जैसे पाट यात्रा, काछिन गादी, नवरात: जोगी बिठाई, रथपरिक्रमा, दुर्गाष्टमी निशाजात्रा, जोगी उठाई, मावली परघाव, विजयादशमी भीतर रैनी, बाहिर रैनी, मुरिया दरबार, ओहाड़ी आदि।