चैस यानी शतरंज का खेल पुराने जमाने से खेला जाने वाला खेल हैं, जिसे खेलने से दिमाग तेज होता है। आज यह खेल अंतर्राष्ट्रीय खेल बन गया है। लोग इसमें बड़ी दिलचस्पी लेने लग गए हैं। शतरंज की खेल में बाजी मारने के लिए अनूठी चालों को सीखना बहुत जरूरी है तभी आप इस खेल में अवल हो सकते हैं।
पुराने जमाने में इसे राजा महाराजा भी खेला करते थे। भारत में शतरंज का जन्म चन्द्रगुप्त वंश के शासन के दौरान करीब (c. 280 - 550 CE) में माना जाता है। तब इसे चतुरंग शब्द से भी जाना जाता था, जिसका अर्थ होता था चतुरंगनी सेना। दरअसल, उस समय किसी भी राजा की सेना हाथी ,घोड़े ,ऊंट ,सैनिक और उसके सेनापति से मिलकर पूरी होती थी यही सब शतरंज के मोहरो के प्रतीक बने। इसका उल्लेख आपको रामायण और महाभारत जैसे ग्रंथों में भी मिलता है। इसके बाद फारसी इसे अपने देश में ले गए जहां से यह यूरोप और अरब देशों में पहुंच गया। इसी तरह यह उत्तरी अमरीका और स्पेन में भी पहुंचा लेकिन सेनापति बाद में यूरोप में जाकर रानी मे तब्दील हो गया। लगभग 10वी शताब्दी के आसपास शतरंज अपने नए ही रूप में आ गया था।
शतरंज को दो लोग साथ में खेल सकते हैं। इसमें दो पक्ष होते हैं और हर पक्ष में 16 मोहरे होते हैं। दोनों पक्षों को मिलाकर 32 मोहरे बनते हैं। शतरंज मे की बिसात पर कुल मिला कर चोसठ (64) खाने होते है। चैस बोर्ड ब्लैक एंड व्हाइट चैक और मोहरो का रंग भी ज्यादातर काला और सफेद होता है लेकिन अब आपको यह बहुत सारे रंगों में आसानी से मिल जाएगी।
पहले राजा महाराजा के जमाने में तो चैस बोर्ड जमीन पर बनाई जाती थी और हाथ से नक्काशी किए मोहरे भी काफी बड़े आकार में होते थे, जिसे शतरंज खिलाड़ी खुद उठाकर चलाते थे। मोहरों का आकार राजा-रानी, वजीर, ऊंट, घोड़े, हाथी और सिपाही के आकार के होते है। वैसे आज भी आपको बड़े आकार की शतरंज आसानी से मिल जाएगी। इसके अलावा कांच की शंतरज भी लोगों को खूब पसंद आती है। इसे आप खेल और शो पीस दोनों के तौर पर इस्तेमाल कर सकते हैं। लकड़ी से बने डिफरैंट आकार की चैस बोर्ड भी बहुत ही खूबसूरत लगती हैं। इसके अलावा मार्बल की बनी शतरंज बहुत ही क्लासी लगती हैं। वहीं कुछ लोग इसके इतने दीवाने होते हैं कि गोल्ड-सिल्वर प्लेट्ड और डायमंड की बनी चैसबोर्ड इस्तेमाल करते हैं ये बहुत ही रॉयल सी लुक देती हैं।